
- बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें विपक्ष ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सवाल उठाए.
- कोर्ट ने कहा है कि आधार कार्ड नागरिकता के लिए नहीं हो सकता. ये आपका काम नहीं, गृह मंत्रालय का काम है.
- विपक्षी पक्ष का तर्क है कि इस प्रक्रिया से लाखों मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं, क्योंकि आवश्यक दस्तावेज बहुत कम लोगों के पास उपलब्ध.
बिहार में मतदाता गहन पुनरीक्षण (Intensive Revision) के मसले ने जिस तरह देश में सियासी तूल पकड़ा है, अब वही मामला देश की सबसे बड़ी अदालत की चौखट तक पहुंच गया है. तमाम आरोप-प्रत्यारोप, संशय और सियासी शोर के बीच सुप्रीम कोर्ट आज इस अहम मुद्दे पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वो आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, राशन कार्ड को मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए उपयोग करे.
कोर्ट में सुनवाई की 5 बड़ी बातें
- कोर्ट ने ADR वकील से पूछा आप विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनावों से क्यों जोड़ रहे हैं?
- ADR वकील ने सफाई दी हम अधिकार नहीं, प्रोसेस के खिलाफ हैं
- कोर्ट की नागरिकता के मुद्दे पर सिब्बल ने खड़े किए सवाल
- कोर्ट ने कहा नागरिकता का काम चुनाव आयोग का नहीं, गृह मंत्रालय का है
- सिब्बल बोले, नागरिक नहीं हैं ये चुनाव आयोग सिद्ध करे
आपको बताते हैं कोर्ट में दोनों पक्षों ने किस तरह से अपनी दलीलें कोर्ट में पेश की...
ADR वकील - कानून के मुताबिक चुनाव आयोग को SSR और स्पेशल इंटेंसिव कराने का अधिकार है. सिर्फ 11 डॉक्यूमेंट ही लिए जा रहे हैं. आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड जैसे दस्तावेज नहीं मांगे जा रहे. आज तक स्पेशल इंटेंसिव रिविजन शब्द का उपयोग नहीं हुआ
जज - चुनाव आयोग जो कर रहा है उसे उसका आधिकार संविधान में दिया है. सवाल है कि क्या चुनाव आयोग को इंटेंसिव रिविजन का अधिकार है या नहीं. आप अधिकार को चैलेंज नहीं कर रहें है?
ADR वकील - हम अधिकार का नहीं बल्कि जिस तरीके से ये प्रक्रिया की जा रही है उसके खिलाफ हैं.
ADR वकील - कानून में संशोधन कर आधार कार्ड को वोटर कार्ड के दस्तावेज के तौर पर शामिल किया गया है. 2021 में संशोधन किया गया और 2022 में इसे लागू किया गया. लेकिन चुनाव आयोग आधार कार्ड को SIR में शामिल नहीं कर रहा है.
जज - क्या वोटर कार्ड दस्तावजे SIR में शामिल है?
ADR वकील - नहीं. फॉर्म 6 में आधार कार्ड, मनेरगा, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे दस्तावेज शामिल है लेकिन SIR में इसे शामिल नहीं किया गया.
ADR वकील - बिहार में एन्यूमरेशन फॉर्म 7.89 करोड़ मतदाताओं को देना है. ये नया फॉर्म चुनाव आयोग ने बनाया है इससे पहले ये फॉर्म नहीं था. अभी तक सिर्फ फॉर्म-6 था, जब नए वोटर का नाम मतदाता सूची में जोड़ा जाता था.
जज - आधार कार्ड नागरिकता के लिए नहीं हो सकता. ये आपका काम नहीं, गृह मंत्रालय का काम है.
चुनाव आयोग- हमें समय दें. अभी प्रक्रिया चल रही है. पता नहीं है कि कितने लोग बाहर होंगे.
कपिल सिब्बल- संविधान के आर्टिकल 10 और 11 में लिखा है कि सिटीजन बनने के लिए 3 कैटेगरी है. चुनाव आयोग कहता है हर व्यक्ति जो 18 साल और भारत का नागरिक है वो वोटर बन सकता है. तो फिर चुनाव आयोग कैसे पूछ सकता है कि अगर आप ये फॉर्म नहीं भरेंगे तो आप वोट नहीं कर पाएंगे.. ये हैरानी की बात है. जो 11 दस्तावेज उसके आधार पर मतदाता सूची में नाम जोड़ने की बात कही गई है, वो बहुत ही कम लोगों के पास हैं.
जज- क्या आप बोल रहे हैं कि बहुत बड़ी आबादी के पास ये 11 दस्तावेज नहीं है?
सिब्बल- यही हम बात हम कहना चाहते हैं. नागरिकता साबित करने का दायित्व मुझ पर नहीं है. मुझे मतदाता सूची से हटाने से पहले, उन्हें ये दिखाना होगा कि उनके पास कोई ऐसा दस्तावेज है जो साबित करता है कि मैं नागरिक नहीं हूं.
अभिषेक मनु सिंघवी- बिहार में करीब 4 करोड़ लोगों को अपने आप को मतदाता सूची में जोड़ने के लिए 3 अलग तरह के दस्तावेज देने होंगे.
अभिषेक मनु सिंघवी: ये नागरिकता का मामला है. एक भी मतदाता को मताधिकार से वंचित करने से लोकतंत्र और बुनियादी ढांचे पर असर पड़ता है.
जज: हम इस मामले में आपके साथ हैं.
जज- समरी रोल कराने को लेकर समय और उसकी प्रक्रिया संविधान में दिया गया है. लेकिन स्पेशल इंटेंसिव रिविजन को लेकर समय नहीं दिया गया.
अभिषेक मनु सिंघवी- क्यों चुनाव आयोग ने जून के आखिरी में SIR की घोषणा की? अब ये SIR बंगाल में कराने वाले हैं. अगर ये प्रक्रिया पहले हुई होती तो कोई दिक्कत नहीं थी.
जज: याचिकाकर्ता न सिर्फ आपके अधिकार बल्कि पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं और SIR के समय को लेकर सवाल है. (चुनाव आयोग के वकील से सवाल)
चुनाव आयोग के वकील- इलेक्टोरल रोल बनाने का अधिकार चुनाव आयोग को आर्टिकल 1 में दिया गया है.
जज- याचिकाकर्ता सीधे तौर पर आपके अधिकार पर नहीं, SIR की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं.
चुनाव आयोग के वकील- चुनाव आयोग का सीधे मतदाताओं से रिलेशन है. अगर मतदाता नहीं होंगे तो चुनाव आयोग का कोई काम नहीं.
जज- हम पिछले 20 साल से चुनाव में शामिल हो रहें हैं तो अचानक से क्यों ये डॉक्यूमेंट मांग रहे?
चुनाव आयोग के वकील- कौन लोग हैं जो ये सवाल पूछ रहें है, जो बिहार में मतदाता भी नहीं हैं.
जज- हम 28 जुलाई को फिर से केस की सुनवाई करेंगे. आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, राशन कार्ड - मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए आयोग उपयोग करे.
क्या है वोटर लिस्ट मामला?
बिहार विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है. विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया' ने इस प्रक्रिया को सत्तारूढ़ सरकार को लाभ पहुंचाने की साजिश करार दिया है, जबकि निर्वाचन आयोग ने इन आरोपों को खारिज किया है. विपक्ष का आरोप है कि यह कवायद मतदाताओं को निशाना बनाने के लिए की जा रही है.
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