भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर बैन कर दिया है, सिर्फ सीमा शुल्क विभाग की मंजूरी के इंतजार में बंदरगाहों पर अटके गेहूं के निर्यात को मंजूरी दी है.हालांकि कुछ दिनों पहले ये खबर थी कि भारत के पास बहुत गेहू बहुत देशों को निर्यात किया जाएगा. गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध के मुद्दे पर किसान नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि बिल्कुल साफ है कि किसानों को नुकसान होगा. इस देश में कृषि आयात निर्यात नीति तो केवल व्यापारियों के मुनाफे के लिए चलती है. मगर ये जो उत्पादक किसान हैं वो उनके लिए नीति कहीं नहीं है. अब देखिए क्या नमूना है. ये जो भारत में दुनिया के सामने पेश किया गया. हम देश के सामने पहले कहते थे कि यूक्रेन युद्ध के कारण एक विशेष अवसर था, क्योंकि यूक्रेन बहुत ज्यादा गेहूं दुनिया को देता है .इस बार देने की स्थिति है नहीं है. शुरू में ऐसा लग रहा था कि हमारे गेहूं की फसल बहुत अच्छी होगी तो आपको अवसर था इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता. अब यदि सरकार किसान के बारे में सोचे, उससे चार पैसा किसान को भी मिल जाए. सरकार ने गेहूं की जो खरीद की, उसमें किसान को एक पैसा सामान्य से अधिक नहीं दिया.
हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दाम काफी ऊंचा था. लेकिन बीच में पता लगा कि इस बार तो गेहूं की फसल कमजोर है. आज से एक महीना पहले तो देश के तमाम कृषि विशेषज्ञ कह रहे थे कि इस अंतरराष्ट्रीय स्थिति का फायदा उठेगा. लेकिन किसान को बहुत भारी नुकसान इस बार हो गया है, क्योंकि मार्च के महीने में और अप्रैल के महीने में भीषण गर्मी पड़ी कि दाना छोटा हो गया. पैदावार कम हो गई. लेकिन सरकार दुनिया भर में ढिंढोरा पीट रही थी कि नहीं चिंता मत कीजिए. हमारे पास इतना गेहूं है कि हम निर्यात करेंगे औऱ दुनिया को देंगे. प्रधानमंत्री जाकर कह रहे थे कि हम पूरे दुनिया का पेट भरने में समर्थ है. ये सब बातें हो रही हैं जबकि वास्तविकता कुछ दूसरी .जब वास्तविकता का पता लगा सब अचानक बैंक कर दिया. अब इसका असर क्या होगा? वो किसान जो की अपनी यहां रोक के बैठा था कि इस बार तो लगता अच्छा काम मिलेगा. उसका नाम एकदम डाउन हो गया. असल ये होगा कि वह किसान जिससे सोचा था अच्छी पैदावार होगी.
लेकिन जिसकी पैदावार एकदम कम हो गई उसको एक पैसा मुआवजा नहीं मिला. यहां पर सवाल ये उठता है कि आप सरकार को क्या करना चाहिए क्योंकि अब सरकार के पास एफसीआई में गेहूं नहीं है. जितना वो खरीदते थे, वो पिछले आठ साल के मुकाबले सबसे कम है. अगर आप पूछे कि सरकार को एक डेढ महीना पहले क्या करना चाहिए था तो मैं कई चीजें बता सकता हूं. आज क्या करना चाहिए तो मैं दो ही चीज बता सकता हूं. अभी भी बहुत किसानों के पास गेहूं बचा हुआ है और सरकार ने कल ही फैसला लिया है कि चलिए हम गेहूं की खरीद अब भी जारी रखेंगे. लेकिन क्या किसान को उसके लिए 200-250 रुपये प्रति क्विंटल बोनस नहीं दे सकते. आज भी जितना गेहूं किसानों के घर में पड़ा है. किसानों ने उसे रोक रखा है..सारा गेहूं आएगा, एफसीआई के पास पर्याप्त स्टॉक हो जाएगा अगर बोनस दिया जाए.
एफसीआई ने पिछले साल 44 करोड क्विंटन की खरीद की. इस साल सिर्फ 18 करोड़ की खरीद. 19 करोड़ टन उनके स्टॉक में है जो भी कम है, अभी एफसीआई के पास. लेकिन मेरा सवाल यह है कि इस बार प्राइवेट प्लेयर ने भी खूब खरीदारी की .लोगों से कहा गया कि किसान गेहूं लेकर सरकारी मंडी गया नहीं, वही तो खेल हुआ. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दाम ज्यादा चल रहा था. भारत के अंदर था 2015 रुपये. किसान के साथ पॉलिटिक्स की गई .अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत अच्छा काम मिल रहा था तो 2700-2800 रुपये प्रति क्विंटल से भी ज्यादा तो क्या प्राइवेट प्लेयर ने काफी ज्यादा खरीद की, स्टॉक किया पर सरकार आराम से देखती रही कि चलिए लोग प्राइवेट को दे रहे हैं. हमारे पास खरीद के लिए नहीं है. जबकि करना ये चाहिए था कि सरकार को आगे बढ़कर कहना चाहिए था हम 100 रुपये ज्यादा देंगे .150 रुपया बोनस देंगे, हम खरीद करेंगे वो खरीद के मौके पर सरकार चूक गई. उसके कारण ये संकट पैदा हुआ है .
इसलिए अब भी सरकार के मौका है, जिन किसानों को खास तौर पर उत्तर भारत के हरियाणा, पंजाब कश्मीर, उत्तर प्रदेश में जो है, जहां भीषण गर्मी पड़ रही है, वहां राष्ट्रीय आपदा फंड के तहत किसानों को प्रति एकड़ 5 हजार रुपए किसानों को मुआवजा दिया जाए. इसकी कानूनी व्यवस्था है. जिस कानूनी व्यवस्था का इस्तेमाल करते हुए किसानों को मुआवजा दिया जाए तो फिर भी इसमें किसानों की कुछ हो सकती है .बाजार से किसान का सब कुछ ठीक हो जाएगा तो सब इसका उपभोक्ता के लिए क्या असर होगा? आटा महंगा हो जाएगा तो रोटी कहां से खाएगी गरीब आदमी .आटा तो महंगा हो चुका है .इसीलिए तो सरकार ने अब ताबड़तोड़ इस तरह के कदम उठाए हैं. जबकि सरकार वो जितना गेहूं चाहिए होता है. उतना वो खरीद सकती थी.
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