नई दिल्ली:
देश की बेटियों को बचाने के लिए अब देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट आगे आया है. देश भर में घटते लिंगानुपात और भ्रूण हत्या के मामले में अहम आदेश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लड़के की तरह बच्ची को भी समान संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं.
अगर कन्या भ्रूण को गैर कानूनी तरीके से खत्म किया जाता है तो ये एक पैदा होने वाली महिला की गरिमा को नष्ट करना है. ये मानवीय मूल्यों को खुरच देता है. जो लोग या समाज ये सोचे कि महिलाओं को उनकी तरह सोचना चाहिए, ये महिलाओं की इच्छाओं का कत्ल करना है. जिस समाज में महिलाओं को समान रूप से देखा जाता है, वही समाज प्रगतिशील समाज होता है.
केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए जारी की गाइडलाइन
केंद्र और राज्य सरकार गैरकानूनी तरीके से लिंग पहचान करने वाले और भ्रूण हत्या करने वालों पर सख्त कानूनी कार्रवाई करे. हर प्रदेश में रजिस्टर बच्चों और बच्चियों का सेंट्रलाइज्ड डाटा तैयार करे और वेबसाइट पर इसे लोड करे. ये सभी सिविल यूनिटों से लिया जाये.
हर निगम क्षेत्र, जिला, ग्राम पंचायत व इलाकों में पैदा हुए लड़के और लड़कियों का डाटा इकट्ठा किया जाये ताकि लिंगानुपात के लिए चार्ट बनाया जा सके.
सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश एक जनहित याचिका पर जारी किए हैं जिनमें कहा गया था कि कोर्ट ने 2013 में ही भ्रूण हत्या और लिंगानुपात को लेकर आदेश दिए थे लेकिन सरकारों ने उस पर कोई कदम नहीं उठाया.
अगर कन्या भ्रूण को गैर कानूनी तरीके से खत्म किया जाता है तो ये एक पैदा होने वाली महिला की गरिमा को नष्ट करना है. ये मानवीय मूल्यों को खुरच देता है. जो लोग या समाज ये सोचे कि महिलाओं को उनकी तरह सोचना चाहिए, ये महिलाओं की इच्छाओं का कत्ल करना है. जिस समाज में महिलाओं को समान रूप से देखा जाता है, वही समाज प्रगतिशील समाज होता है.
केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए जारी की गाइडलाइन
केंद्र और राज्य सरकार गैरकानूनी तरीके से लिंग पहचान करने वाले और भ्रूण हत्या करने वालों पर सख्त कानूनी कार्रवाई करे. हर प्रदेश में रजिस्टर बच्चों और बच्चियों का सेंट्रलाइज्ड डाटा तैयार करे और वेबसाइट पर इसे लोड करे. ये सभी सिविल यूनिटों से लिया जाये.
हर निगम क्षेत्र, जिला, ग्राम पंचायत व इलाकों में पैदा हुए लड़के और लड़कियों का डाटा इकट्ठा किया जाये ताकि लिंगानुपात के लिए चार्ट बनाया जा सके.
सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश एक जनहित याचिका पर जारी किए हैं जिनमें कहा गया था कि कोर्ट ने 2013 में ही भ्रूण हत्या और लिंगानुपात को लेकर आदेश दिए थे लेकिन सरकारों ने उस पर कोई कदम नहीं उठाया.
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