
- ग्लेशियर पिघलने से बन रही झीलों के आकार में वृद्धि के कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में मामला पहुंचा है.
- इन झीलों के अचानक फटने से आसपास के गांवों, पुलों और बांधों को गंभीर खतरा हो सकता है.
- भारत के विभिन्न राज्यों में कई झीलों का आकार बढ़ा है, जिनमें से कई खतरे की श्रेणी में हैं.
ग्लेशियर पिघलने से बन रही झीलों का मुद्दा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में पहुंचा है. टिब्यूनल में इस बात पर चर्चा की गई कि ग्लेशियर पिघलने से इन झीलों का आकार कितना बढ़ गया है. कौन से राज्य में कितनी ऐसी झीलें हैं जो आने वाले वक्त में खतरा बन सकती है.ट्रिब्यूनल में सुनवाई के दौरान ये बात भी कही गई कि ऐसी झीलें कभी भी फट सकती हैं. जिससे इसके नीचे बसे गांव, इन्फ़्रास्ट्रक्चर, पुलों और बांधों के लिए खतरा बन सकती हैं. ऐसी झीलों को GLOF यानि Glacial Lake Outburst Flood कहा जाता है.
कितने राज्यों में फटने वाली कितनी झीलें हैं
ग्लेशियर पिघलने से जिन झीलों के आकार में बदलाव हुआ है और जो आने वाले वक्त में खतरा बन सकती है ऐसी झीलों को चार श्रेणियों में बांटा गया है. लद्दाख में कुल 15 झीलें हैं जिनमें 4 झील जम्मू कश्मीर में, 15 में से 5 हिमाचल में, 10 में से 6 उत्तराखंड में, 9 में से 1 सिक्किम में, 42 में से 15 और अरुणाचल में कुल 9 में से 3 झीलें हैं जिनका आकार बढ़ा है. लेकिन हिमाचल प्रदेश में 4 झील मध्यम खतरे वाली और सिक्किम में एक झील सबसे ज़्यादा खतरे और 12 झील मध्यम खतरे वाली चिन्हित की गई है. ये आंकड़ा CWC यानि Centre water commission ने अपने झीलों के Risk Index में दिया है.
झीलों पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने क्या कहा?
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सुनवाई के दौरान national Institute of Hydrology यानि NIH से कहा है कि झीलों के बारे में चार हफ्तों में एक रिपोर्ट और इन झीलों के खतरों को कम करने के लिए क्या किया जा सकता है इस पर सुझाव दें.
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