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सेना को कौन से नए हथियार मिलने वाले हैं? DRDO चीफ ने NDTV को दी जानकारी

एनडीटीवी को दिए एक खास इंटरव्यू में डीआरडीओ के प्रमुख डॉक्टर संजीव वी कामत ने भारत की रक्षा तैयारियों और ऑपरेशन सिंदूर में स्वदेशी रक्षा प्रणालियों के योगदान पर विस्तार से बातचीत की.

नई दिल्ली:

भारत ने पिछले महीने पाकिस्तान के खिलाफ ''ऑपरेशन सिंदूर'' शुरू किया था. इसमें भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित आतंक के अड्डों को निशाना बनाया था. इसके अलावा भारत की कार्रवाई के जद में पाकिस्तान के सैन्य अड्डे भी आए थे. भारत ने पाकिस्तानी वायुसेना के 10 से अधिक ठिकानों को नुकसान पहुंचाया था. भारत की इस कार्रवाई ने दुनिया भर का ध्यान अपनी ओर खींचा था. भारत ने इसमें बहुत से स्वदेशी हथियारों और एअर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल किया था.एनडीटीवी ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के प्रमुख समीर वी कामत से बात की. इस दौरान ''ऑपरेशन सिंदूर''में इस्तेमाल की गईं मिसाइलों, एयर डिफेंस सिस्टम से लेकर उन परियोजनाओं तक पर विस्तार से जानकारी दी,जिन पर डीआरडीओ काम कर रहा है. इस बातचीत में उन्होंने यह भी बताया कि इन परियोजनाओं के पूरा होने पर भारत का सुरक्षा तंत्र और कितना मजबूत होगा और हथियारों का निर्यात कितना बढ़ेगा. पेश हैं इस बातचीत के संपादित अंश.

प्रश्न: आजकल हर जगह स्वदेशी हथियारों की धूम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर रक्षा मंत्री तक इसकी चर्चा कर रहे हैं. क्या कहेंगे आप. 

उत्तर: मुझे बहुत खुशी है कि 'ऑपरेशन सिंदूर' में डीआरडीओ के वेपन सिस्टम ने अच्छा काम किया है. देश के सामने जो संकट आया था, उसमें उसका अच्छे से निर्वहन हुआ है. देखिए यह काम हम काफी टाइम से कर रहे थे 'ऑपरेशन सिंदूर' की वजह से उसका बैटल टेस्टिंग हुआ है. उन्होंने बैटल में अपना काम दिखाया है. मुझे पूरी उम्मीद है कि आने वाले दिनों में हमारे और भी बहुत सारे हथियार इंडक्ट हो जाएंगे. प्रधानमंत्री जी का जो सपना है कि हम पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन जाएं, तकनीकी लीडर बन जाएं, 2047 तक उस सपने को साकार करने में हम पूरी तरह कामयाब होंगे.

प्रश्न: 'ऑपरेशन सिंदूर' की बात करें तो उस समय हर जगह देसी हथियारों की चर्चा हो रही थी, कोई देश के बाहर बने हथियारों की चर्चा नहीं कर रहा था.

उत्तर: देखिए ब्रह्मोस एक बहुत अच्छा वेपन सिस्टम है. इसे हमने रूस के साथ मिलकर बनाया है. यह सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है. यह बिल्कुल सटीक हमला करता है. जो टारगेट आप देते हैं, उस पर जाकर लगता है. इसे इंटरसेप्ट करना बहुत मुश्किल होता है. इसकी स्पीड भी बहुत हाई है.ब्रह्मोस की वजह से हम दुश्मन पर बिल्कुल सटीक निशाना साध सकते हैं. हमारा आकाशतीर सिस्टम है. एक और है एमआरएसएएम (MRSAM). उन्होंने भी इस ऑपरेशन में बहुत अच्छा काम किया. आकाशतीर ने सारे सिस्टम को नेटवर्क करके हमारी क्षमता को बहुत अच्छी बढ़त दिलाई. अगर कोई भी सेंसर उसे डिटेक्ट करता तो वह कॉमन पिक्चर कमांड सेंटर पर आता है फिर आप उसके खिलाफ उपयुक्त हथियार का इस्तेमाल करते हैं. आकाशतीर ने हमारे एयर डिफेंस सिस्टम को सफल बनाने में बहुत बड़ा योगदान दिया. 

डीआरडीओ के प्रमुख का कहना है कि ब्रम्होस के ऐसे भी वर्जन तैयार किए जा रहे हैं, जो सुखोई के अलावा दूसरे विमानों से भी फायर किए जा सकें.

डीआरडीओ के प्रमुख का कहना है कि ब्रम्होस के ऐसे भी वर्जन तैयार किए जा रहे हैं, जो सुखोई के अलावा दूसरे विमानों से भी फायर किए जा सकें.

प्रश्न: इस हालात में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है, जब जरूरत पड़ी इन हथियारों ने अपनी विश्वसनीयता साबित की. 

उत्तर: यह बहुत अच्छी चीज है, क्योंकि अंग्रेजी में कहावत है न 'प्रूफ ऑफ द पुडिंग इज इन द ईटिंग' (proof of the pudding is in the eating). जब तक वह साबित नहीं होता तब तक सर्विसेज को भी कॉन्फिडेंस नहीं होता. अब जब इन वेपन ने परफॉर्म किया है तो इससे हमारे सर्विसेज का हौसला बढ़ेगा. कॉन्फिडेंस बढ़ेगा इससे और भी वेपन इंडक्ट होंगे. 

प्रश्न: क्या लगता है अब डीआरडीओ से उम्मीदें और भी ज्यादा बढ़ गई हैं. 

उत्तर: जब सक्सेस मिलती है तो उम्मीद तो बढ़ ही जाती है. इन उम्मीदों को पूरा करने के लिए हमारा ऑर्गेनाइजेशन पूरी तरह तैयार है. 

प्रश्न: केवल फोर्सज की बात नहीं है,'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद आम लोगों की भी उम्मीदें डीआरडीओ से बढ़ गई हैं. 

उत्तर: बहुत अच्छी बात है. यह ऑपरेशन हमारे आर्गेनाइजेशन के लिए एक टर्निंग प्वाइंट था. इससे आर्गेनाइजेशन में भी उत्साह बढ़ गया है. सब लोग जोर-शोर से सिस्टम पर काम कर रहे हैं ताकि जल्द से जल्द प्रोडक्ट इंडक्ट हो जाएं. 

प्रश्न: आजकल डीआरडीओ के ब्रह्मोस की बहुत चर्चा है. क्या इसे और भी घातक और असरदार बनाने पर काम हो रहा है?

उत्तर: ब्रह्मोस को और घातक बनाने पर काम कर रहे हैं, इसकी रेंज भी बढ़ाई जा रही है. इसको छोटा बनाने पर काम हो रहा है. ब्रह्मोस एनर्जी. अभी हम ब्रह्मोस को केवल सुखोई से फायर कर सकते हैं . लेकिन उसे थोड़ा छोटा बनाते हैं तो वह सारे प्लेटफार्म के साथ इंटीग्रेटेड होगा. इस पर भी काम चालू है. एक छोटा और एक बड़ा वर्जन, दोनों पर काम चल रहा है. एक तीसरा वर्जन भी होगा, जो हाइपरसोनिक के करीब होगा, 4 से 4.5 मैक के आसपास. उस पर काम शुरू हो चुका है. 

प्रश्न: दुश्मन के बीच ब्रह्मोस का बहुत खौफ है, क्या डीआरडीओ के पिटारे में और भी ऐसे खतरनाक हथियार हैं जिसका तोड़ किसी के पास नहीं है. 

उत्तर: हम एक लॉन्ग रेंज हाइपरसोनिक मिसाइल पर काम कर रहे हैं. हम एयर टू ग्राउंड मिसाइल पर काम कर रहे हैं. रूद्रम-2  रूद्रम-3 रुद्रम-4 पर काम हो रहा है. एयर टू एयर मिसाइल अस्त्र मार्क-2 और मार्क-3 पर भी काम हो रहा है. अब हम वैरायटी ऑफ एंटीशिप मिसाइल पर भी काम कर रहे हैं. इससे हमारी क्षमता बढ़ती जाएगी. बहुत से वेपन सिस्टम अगले दो-तीन साल में इंडक्ट हो जाएंगे. इससे हमारे सर्विसेज की क्षमता बहुत बढ़ जाएगी.

डीआरडीओ प्रमुख का कहना है कि भारत के पांचवें पीढी के लड़ाकू विमान का विकास 2034 तक पूरी तरह हो जाए.

डीआरडीओ प्रमुख का कहना है कि भारत के पांचवें पीढी के लड़ाकू विमान का विकास 2034 तक पूरी तरह हो जाए.

प्रश्न: जिस हाइपरसोनिक मिसाइल की बात हो रही है, उसका रेंज क्या होगी. अभी उसका क्या स्टेटस है. 

उत्तर: हाइपरसोनिक मिसाइल का हमने पहला टेस्ट कर लिया है. अगले दो-तीन साल में हम इसका डेवलपमेंट खत्म कर लेंगे.उसके बाद इसका इंडक्शन शुरू होगा. यह आठ-नौ मैक वाला स्पीड के आसपास वाला होगा. इसको रडार पर डिटेक्ट करने के बाद भी इंटरसेप्ट करना बहुत मुश्किल होगा. इसकी वारहेड कैपेसिटी ब्रह्मोस से ज्यादा होगी. 

प्रश्न: यह सब शार्ट रेंज और कुछ उससे अधिक है. थोड़ा उन लांग रेंज की मिसाइलों के बारे में बताएं, जिन पर डीआरडीओ काम कर रहा है. 

उत्तर: लॉन्ग रेंज वाली मिसाइल पर जो हम काम कर रहे थे वो तो स्ट्रैटेजिक मिसाइल थी. लेकिन अगर हम लोग कन्वेंशनल मिसाइल फोर्स की तरफ बढ़ते हैं, यह सरकार का फैसला होगा. लांग रेंज मिसाइल को हम टैक्टिकल यूज के लिए भी डेवलप कर सकते हैं. क्षमता तो है पर फैसला सरकार को करना है. 

प्रश्न: क्या अब हमारे हथियारों के निर्यात में बढ़ोतरी होगी, क्योंकि वह लड़ाई के हर पैमाने पर सफल रहे हैं?

उत्तर: इससे उनके एक्सपोर्ट पर बहुत फर्क पड़ेगा. क्योंकि सारे देशों ने देखा है कि ये वेपन  बैटल फील्ड में काम कर चुके हैं. मुझे पूरी उम्मीद है कि जो टारगेट रक्षामंत्री जी ने दिया है कि अगले 2029 तक 50 हजार करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट होना चाहिए, वह हम लोग पूरी तरह मीट कर पाएंगे. कई देशों के साथ बातचीत शुरू हो चुकी है.उनसे ब्रह्मोस, एटैक्स, आकाश, पिनाका, हमारे वैरायटी ऑफ रडार और टारपीडो के बारे में बातचीत हो रही है. 

प्रश्न: हम चाहें इजरायल-ईरान युद्ध की बात करें या रूस-यूक्रेन युद्ध की. हमला वही विफल कर पाया है, जिसके पास मजबूत एयर डिफेंस है. हमारा एयर डिफेंस सिस्टम इनके आगे कहां टिकता है?

उत्तर: हमारा एयर डिफेंस सिस्टम बहुत अच्छा है. आपने देखा होगा 'ऑपरेशन सिंदूर' के समय पाकिस्तान ने बहुत कोशिश की पर उनका कोई भी वेपन सिस्टम और ड्रोन इंडिया में डैमेज नहीं कर पाया. इसका मतलब यह है कि हमारा एयर डिफेंस सिस्टम बहुत अच्छा है. हमारे पास एस-400 है,उसे रूस से लिया गया है. फिर हमारे पास सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम एमआरएसएएम है. इसे हमने इजरायल के साथ मिलकर विकसित किया है. इसके अलावा हमारा अपना आकाशतीर सिस्टम है. हमारे पास एंटी ड्रोन सिस्टम D4 है. हमारे पास लेयर्ड एयर डिफेंस सिस्टम है.ये सब आकाशतीर के द्वारा नेटवर्क में हैं. इससे हमारे एयर डिफेंस की क्षमता बहुत अच्छी है. यह प्रूवन एयर डिफेंस सिस्टम है, पाकिस्तान ने जो भी कोशिश की हमने उसे डिफेंड किया. 

डीआरडीओ की ओर से विकसित एयर डिफेंस सिस्टम आकाशतीर ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के हमलों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

डीआरडीओ की ओर से विकसित एयर डिफेंस सिस्टम आकाशतीर ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के हमलों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

हम अपने एक और एयर डिफेंस सिस्टम कुश पर काम कर रहे हैं. इसका पहला डेवलपमेंट ट्रायल इसी साल होगा.साल 2028 तक इसका पूरा डेवलपमेंट हो जाना चाहिए. उसके बाद इसका इंडक्शन शुरू होगा.इसके बाद हमारा क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर  मिसाइल भी जल्दी ही आने वाला है. ये दोनों सिस्टम जब इंडक्ट होंगे तो हमारे एयर डिफेंस की क्षमता और भी बढ़ेगी. हम D4 सिस्टम में हाई पावर लेजर लगाकर उसकी रेंज भी इंप्रूव कर रहे हैं. कुश का रेंज  S400 के बराबर या उससे थोड़ा ज्यादा होगी. यह वैसे ही इफेक्टिव होगा. इसमें तीन टाइप की मिसाइलें होंगी, एक शार्ट रेंज की, दूसरी मीडियम रेंज की और तीसरी लॉन्ग रेंज की.साल 2028 के बाद इसका इंडक्शन शुरू हो जाएगा.

प्रश्न: आजकल नए किस्म के वॉरफेयर की चर्चा हो रही है, जिसे 'ड्रोन वॉर' कहा जा रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध में भी बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल हो रहा है. इस नए किस्म के वॉरफेयर के लिए डीआरडीओ की क्या तैयारी है?

उत्तर: हमारे इंडस्ट्रीज में इसको लेकर काफी क्षमता है, जो वैरायटी का ड्रोन बना रहे हैं. डीआरडीओ इन इंडस्ट्रीज के साथ मिलकर काम कर रहा है, ताकि इनको बेहतर तरीके से वेपनाइज किया जा सके. डीआरडीओ ड्रोन नहीं बना रहा है. इसको लेकर इंडस्ट्री में क्षमता है. वह इस पर काम कर रही हैं. हम लोग उनकी मदद कर रहे हैं कि कैसे उसमें एंटी जैमिंग फीचर जोड़ा जाए. उसकी कम्युनिकेशन को कैसे मजबूत किया जाए. हम तो बस उनकी मदद कर रहे हैं. इसका मुख्य काम प्राइवेट सेक्टर के पास है.

डीआरडीओ का फोकस दूसरे तरह के ड्रोन पर होगा, जो मीडियम एन्डुरन्स लांग रेंज वाले होंगे. ये ड्रोन 30 से 50 हजार फिट की ऊंचाई पर फ्लाई करेंगे. इसकी एन्डुरन्स 24 घंटे से ज्यादा रहेगी. इसका इस्तेमाल ज्यादातर सर्विलांस के लिए होता है.बैटल फील्ड एरिया को कवरेज देता है. इनका मेन रोल इनका इंटेलिजेंस और सर्विलांस का होता है. इसको दूसरे रोल के लिए भी कन्वर्ट किया जा सकता है,वेपनाइज भी कर सकते हैं.

डीआरडीओ कुश नाम से एक एयर डिफेंस प्रणाली के विकास पर काम कर रहा है. यह रूसी एस 400 से बेहतर होगा.

डीआरडीओ कुश नाम से एक एयर डिफेंस प्रणाली के विकास पर काम कर रहा है. यह रूसी एस 400 से बेहतर होगा.

प्रश्न: पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान एमका कब तक वायुसेना को मिल पाएगा और क्या अप टू मार्क होगा.

उत्तर: हमारा एमका 5th प्लस जेनरेशन का है. इसको सरकार ने मंजूरी दे दी है. इस बार इसके पार्टनर सिलेक्शन में कंपटीशन होगा. यह पार्टनर एचएल हो सकता है या प्राइवेट सेक्टर से भी हो सकता है. यह जॉइंट वेंचर भी हो सकता है. इन सारे ऑप्शन पर विचार हो रहा है. हमें उम्मीद है कि 2029 तक पहले प्रोटोटाइप अप्लाई करेगा. उसके बाद डेवलपमेंटल टेस्टिंग होगी. साल 2034 तक इसका पूरा डेवलपमेंट हो जाना चाहिए उसके बाद इसका इंडक्शन हो जाएगा. इसमें फिफ्थ जेनरेशन एयरक्राफ्ट से थोड़े ज्यादा फीचर होंगे. यह स्टेल्थ होगा, पूरा नेटवर्क होगा. इसके अंदर वेपन सिस्टम होगा.  

प्रश्न: क्या इस प्रोग्राम में थोड़ा ज्यादा देरी नहीं हो रही है. 

उत्तर: आप कहीं भी जाकर देखिए किसी भी एयरक्राफ्ट के डेवलपमेंट में 10 साल का साइकिल लगता है. F-35 को भी 10-15 साल लगे थे. 

प्रश्न: बात केवल डीआरडीओ की नहीं है दूसरे डिफेंस संस्थान को लेकर सेना को शिकायत रहती है कि आप समय पर प्रोडक्ट डिलीवरी नहीं कर पाते हैं?

उत्तर: हां यह शिकायत तो रहती है, पर बहुत से कारण है, जिससे डिले होता है. एक तो सप्लाई चेन का इशु होता है. थोड़ा कंपोनेंट का भी, अभी भी हम ग्लोबल सप्लाई चेन पर डिपेंडेंट हैं. पहले कोविड हुआ फिर देख रहे हैं कि कई जगहों पर जंग छिड़ गई है. कुछ क्रिटिकल कॉम्पोनेंट हैं,जिनके लिए हम डिपेंडेंट है, उसकी वजह से भी प्रोडक्ट डिलीवरी में देरी होती है. आप देखेंगे तेजस मार्क वन ए का डिले इंजन की वजह से हुआ है. अगर फोर्सज की तरफ से देखा जाए तो उनकी शिकायत जेनुइन है. इसको लेकर सारी प्रोडक्शन एजेंसी कोशिश कर रही हैं- टू मीट द टाइम. आप देखिए इंजन के लिए हम जीई पर निर्भर हैं, लेकिन उसकी सप्लाई चेन में प्रॉब्लम आ गई है. जो पार्ट्स उनके सप्लायर दे रहे थे वहां डिले हो गया. अब इसके इंजन आ रहे हैं तो अगले तीन-चार साल में HAL कमिटमेंट मीट कर लेगा. अब हमारी नीति है कि जब हम किसी प्रोजेक्ट का डिजाइन और डेवलपमेंट करते हैं तो उसी वक्त पार्टनर भी जोड़ लेते हैं.उम्मीद है कि आने वाले समय में यह डिले नहीं होगा. आगे की चुनौतियों के लिए भी हम पूरी तरह सक्षम हैं. अब देश में इंडस्ट्रियल इकोसिस्टम तैयार हो रहा है. इससे जो भी सर्विसेज की जरूरत होगी वह हम पूरा कर पाएंगे.

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