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This Article is From May 14, 2015

अक्षरधाम हमले के 'आरोपी' की आपबीती '11 साल सलाखों के पीछे' हो रही है लोकप्रिय

अक्षरधाम हमले के 'आरोपी' की आपबीती '11 साल सलाखों के पीछे' हो रही है लोकप्रिय
अहमदाबाद: अहमदाबाद के मुफ्ती अब्दुल कय्यूम की लिखी किताब '11 साल सलाखों के पीछे' बेहद लोकप्रिय हो रही है। इसे पसंद किए जाने का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले शुक्रवार को दिल्ली में एक छोटे-से कार्यक्रम के दौरान लॉन्च की गई किताब की पहले चार दिन में ही 5,000 प्रतियां बिक चुकी हैं, और अब और प्रतियां छपवाने की तैयारी चल रही है।

किताब की इस शुरुआती सफलता से उत्साहित होकर मुफ्ती अब्दुल कय्यूम अब गुजराती और हिन्दी में भी इसका अनुवाद छपवाने की तैयारी कर रहे हैं। फिलहाल यह किताब गुजराती लिपि में उर्दू में तथा अंग्रेजी में प्रकाशित की गई है।

वैसे, आपको बताएं कि इस किताब के लेखक मुफ्ती अब्दुल कय्यूम वर्ष 2002 में गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकवादी हमले के मामले में 11 साल तक जेल में बंद रहे, और पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के बाद उन्होंने यह किताब लिखी।

पुलिस के मुताबिक, कय्यूम अक्षरधाम मंदिर पर हुए हमले के मुख्य आरोपी थे। इस मंदिर पर सितंबर, 2002 में दो फिदायीनों ने हमला किया था और 30 से ज्यादा लोगों की इस वारदात में मौत हुई थी। पूरी रात चली पुलिस कार्रवाई में आखिरकार दोनों फिदायीन भी ढेर कर दिए गए थे। इन फिदायीनों की जेब से कथित तौर पर उर्दू में लिखी एक चिट्ठी पाई गई थी और पुलिस का दावा था कि वह चिट्ठी मुफ्ती अब्दुल कय्यूम ने लिखी थी। वारदात की जांच अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने की और हमले के करीब एक साल बाद मुफ्ती को बतौर आरोपी गिरफ्तार कर लिया गया।

इसके बाद शुरू हुआ पुलिसिया जुल्म का सिलसिला। मुफ्ती का कहना है कि उसके बाद उन पर आरोप कबूल कर लेने के लिए बेहद दबाव डाला गया और उनके साथ काफी बदसलूकी की गई। गलत तरीके से उनके खिलाफ सबूत जुटाए गए और फिर स्थानीय कोर्ट ने उन्हें फांसी की सजा सुना दी। लेकिन उनकी कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। मुफ्ती ने अपने वकीलों के जरिये सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जहां वह निर्दोष करार दिए गए और आखिरकार 11 साल जेल में बिताने के बाद वह आज़ाद हुए।

मुफ्ती कहते है कि उन्हें पुलिस के खिलाफ कोई गुस्सा नहीं है, और उन्होंने ऐसी किसी वजह से यह किताब लिखी भी नहीं है। बल्कि यह किताब लिखने का मकसद उनकी अपनी कहानी को बयान करना और सिस्टम को जाग्रत करना है, ताकि आइंदा किसी बेगुनाह के साथ इस तरह की हरकत न की जाए। उनका दावा है कि यह किताब देश में साम्प्रदायिक सौहार्द पैदा करेगी, क्योंकि उन्होंने किताब में बताया है कि कैसे सुप्रीम कोर्ट में उनकी पैरवी गैर-मुस्लिम वकीलों ने की और कैसे गैर-मुस्लिम जजों ने उनके साथ इंसाफ किया।

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