Mufti Abdul Qayyum
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अक्षरधाम हमले के 'आरोपी' की आपबीती '11 साल सलाखों के पीछे' हो रही है लोकप्रिय
- Thursday May 14, 2015
किताब की इस शुरुआती सफलता से उत्साहित होकर मुफ्ती अब्दुल कय्यूम अब गुजराती और हिन्दी में भी इसका अनुवाद छपवाने की तैयारी कर रहे हैं। फिलहाल यह किताब गुजराती लिपि में उर्दू में तथा अंग्रेजी में प्रकाशित की गई है।
- ndtv.in
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गुजरात पुलिस की शर्तों ने नहीं छलकने दिया '11 साल सलाखों के पीछे' का दर्द
- Friday April 17, 2015
इस किताब के सामने आने से गुजरात पुलिस की और किरकिरी होने का जैसे डर हो, उस तरह पुलिस ने इस कार्यक्रम के लिए ये शर्त रखकर उन्हें मंजूरी दी थी कि वो इस कार्यक्रम में न किताब पेश करेंगे और न ही अक्षरधाम हमले के बारे में ज़िक्र करेंगे।
- ndtv.in
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आतंकवादी के लेबल के साथ 11 साल जेल में रहे कयूम ने किताब में बयां किया दर्द
- Thursday May 14, 2015
रिहाई के एक साल बाद आज भले ही मुफ्ती अब्दुल कयूम दोबारा मदरसे में पढ़ाने लगे हैं, लेकिन वह दुनिया को बताना चाहते हैं कि कैसा महसूस कराता है, एक ऐसे अपराध के लिए 11 साल जेल में बिताना, जो उन्होंने किया ही न हो; कैसा महसूस कराता है बिना किसी सबूत के आतंकवादी का लेबल लगा दिया जाना।
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अक्षरधाम हमले के 'आरोपी' की आपबीती '11 साल सलाखों के पीछे' हो रही है लोकप्रिय
- Thursday May 14, 2015
किताब की इस शुरुआती सफलता से उत्साहित होकर मुफ्ती अब्दुल कय्यूम अब गुजराती और हिन्दी में भी इसका अनुवाद छपवाने की तैयारी कर रहे हैं। फिलहाल यह किताब गुजराती लिपि में उर्दू में तथा अंग्रेजी में प्रकाशित की गई है।
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गुजरात पुलिस की शर्तों ने नहीं छलकने दिया '11 साल सलाखों के पीछे' का दर्द
- Friday April 17, 2015
इस किताब के सामने आने से गुजरात पुलिस की और किरकिरी होने का जैसे डर हो, उस तरह पुलिस ने इस कार्यक्रम के लिए ये शर्त रखकर उन्हें मंजूरी दी थी कि वो इस कार्यक्रम में न किताब पेश करेंगे और न ही अक्षरधाम हमले के बारे में ज़िक्र करेंगे।
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आतंकवादी के लेबल के साथ 11 साल जेल में रहे कयूम ने किताब में बयां किया दर्द
- Thursday May 14, 2015
रिहाई के एक साल बाद आज भले ही मुफ्ती अब्दुल कयूम दोबारा मदरसे में पढ़ाने लगे हैं, लेकिन वह दुनिया को बताना चाहते हैं कि कैसा महसूस कराता है, एक ऐसे अपराध के लिए 11 साल जेल में बिताना, जो उन्होंने किया ही न हो; कैसा महसूस कराता है बिना किसी सबूत के आतंकवादी का लेबल लगा दिया जाना।
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