प्रतीकात्मक तस्वीर.
नई दिल्ली:
बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा 'दलित' शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने के फैसले के बाद सूचना प्रसारण मंत्रालय ने भी सलाह दी है कि इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाए. अब इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस शुरू होती नज़र आ रही है. अपनी अनुसूचित पहचान के बल पर दिल्ली से बीजेपी के सांसद बनें उदित राज मानते हैं कि इस शब्द के इस्तेमाल पर रोक का कोई अच्छा असर नहीं पड़ेगा. नाम बदल देने से हालात नहीं बदलते. उदित राज ने NDTV से कहा, 'इस पर रोक नहीं लगना चाहिये. लोगों की स्वेच्छा पर छोड़ देना चाहिये. ये शब्द समुदाय की एकता को संबोधित करता है. इससे कोई फायदा नहीं होगा. ये शब्द संघर्ष का प्रतीक बन गया है. इस पर कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिये.'
कांग्रेस के भी अनुसूचित जाति के नेताओं की इस मामले में यही राय है. कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया ने कहा, 'ये कोई अपमानजनक शब्द नहीं है. इसके इस्तेमाल पर रोक लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है.' जानकारों के मुताबिक इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार पांच दशक पहले 1967 में किया गया जब इस नाम से एक संगठन खड़ा हुआ. इसका सीधा मतलब उत्पीड़ित है. उत्पीड़न का शिकार है.
VIDEO: कोर्ट ने 'दलित' शब्द पर लगाई रोक
एससी विचारक चंदभान प्रसाद कहते हैं, 'अप्रैल में भारत बंद के दौरान जिस तरह युवा सड़क पर उतरे, भारतीय समाज इसको स्वीकार नहीं कर पाया. जाति व्यवस्था में जो सवर्णता है उसको इसकी वजह से परेशानी हुई. ये तो विद्रोह का शब्द है. हरिजन शब्द से किसी को परेशानी नहीं है.' इस साल जनवरी में मध्य प्रदेश की ग्वालियर बेंच ने केंद्र और राज्य सरकारों को इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी थी, लेकिन बॉम्बे हाइकोर्ट ने इसे मीडिया पर भी लागू करने का फ़ैसला किया.
कांग्रेस के भी अनुसूचित जाति के नेताओं की इस मामले में यही राय है. कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया ने कहा, 'ये कोई अपमानजनक शब्द नहीं है. इसके इस्तेमाल पर रोक लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है.' जानकारों के मुताबिक इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार पांच दशक पहले 1967 में किया गया जब इस नाम से एक संगठन खड़ा हुआ. इसका सीधा मतलब उत्पीड़ित है. उत्पीड़न का शिकार है.
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एससी विचारक चंदभान प्रसाद कहते हैं, 'अप्रैल में भारत बंद के दौरान जिस तरह युवा सड़क पर उतरे, भारतीय समाज इसको स्वीकार नहीं कर पाया. जाति व्यवस्था में जो सवर्णता है उसको इसकी वजह से परेशानी हुई. ये तो विद्रोह का शब्द है. हरिजन शब्द से किसी को परेशानी नहीं है.' इस साल जनवरी में मध्य प्रदेश की ग्वालियर बेंच ने केंद्र और राज्य सरकारों को इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी थी, लेकिन बॉम्बे हाइकोर्ट ने इसे मीडिया पर भी लागू करने का फ़ैसला किया.
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