
सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि आधार कार्ड से जुड़े बायोमेट्रिक या किसी अन्य प्रकार के आंकड़े गोपनीय हैं और लिखित सहमति के बगैर किसी भी दूसरे प्राधिकार के साथ इसे साझा नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर की दो सदस्यीय पीठ ने बंबई हाईकोर्ट की गोवा पीठ के आदेश पर रोक लगाते हुए यह आदेश दिया। हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक मामले को सुलझाने के लिए नागरिकों को आधार कार्ड देते समय एकत्र किए गए आंकड़े सीबीआई से साझा करने का निर्देश दिया था।
इस मामले में जांच एजेंसी ने गोवा के लोगों के बायोमेट्रिक्स नमूनों सहित आंकड़ों का विवरण मांगा था ताकि वासको के स्कूल परिसर में एक नाबालिग से बलात्कार के मामले की जांच के सिलसिले में घटनास्थल से मिले आंकड़ों का मिलान किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश दिया था। उच्च न्यायालय ने प्राधिकरण से कहा था कि वासको बलात्कार कांड की गुत्थी सुलझाने में मदद के लिए सीबीआई के साथ बायोमेक्ट्रिक आंकड़े साझा करने पर विचार किया जाए।
इसके साथ ही कोर्ट ने आज कहा कि सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य बनाने का यदि कोई निर्देश है, तो केंद्र सरकार से उसे वापस लेने को कहा है। शीर्ष अदालत ने पिछले साल सितंबर में अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि सरकारी सेवाओं का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य ही बनाया जा सकता और किसी भी व्यक्ति को यह कार्ड नहीं होने के कारण सुविधाओं से वंचित नहीं किया जा सकता है। (एजेंसी इनपुट के साथ)
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