
केंद्र की मोदी सरकार के नए किसान कानूनों (Farm Laws) के खिलाफ पंजाब सहित कई राज्यों के किसानों ने बड़ा आंदोलन (Farmers Protest) शुरू कर दिया है. दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रदर्शन करने की योजना बनाकर चले किसानों को दिल्ली में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही है, इस पूरे मुद्दे पर जबरदस्त राजनीति हो रही है. जहां सरकार इस कानून के समर्थन में पूरी तरह जुटी हुई है, वहीं, किसान अपनी मांग पर अड़े हुए हैं और सरकार से बिना किसी शर्त के बात करना चाहते हैं.
इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी केंद्र सरकार के समर्थन में उतर आए हैं. नीतीश ने किसान आंदोलन पर बोलते हुए कहा कि यह विरोध-प्रदर्शन किसान कानूनों पर गलतफहमी के चलते हो रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को केंद्र से बातचीत करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए.
न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, नीतीश ने मीडिया से कहा, 'केंद्र सरकार फसलों की खरीद को लेकर किसानों में बने डर को बातचीत कर दूर करना चाहती है तो मुझे लगता है कि बातचीत होनी चाहिए. ये विरोध-प्रदर्शन गलतफहमी की वजह से हो रहे हैं.'
The central govt wants to talk to farmers to dispel the fear of issues in the procurement mechanism. So I believe that dialogue should take place. The protests are happening on account of misconceptions: Nitish Kumar, Bihar CM, on farmers protesting against new farm laws pic.twitter.com/tJsdsxhQFE
— ANI (@ANI) November 30, 2020
बता दें कि केंद्र सरकार भी बार-बार यही कह रही है कि ये नए किसान कानून किसानों की मदद के लिए हैं, लेकिन किसानों में डर है कि इससे मंडियां खत्म हो जाएंगी और फसल की खरीद और उचित दाम के लिए किसान कॉरपोरेट कंपनियों के मोहताज हो जाएंगे. इसे लेकर हजारों की तादाद में किसान दिल्ली की सीमाओं पर इकट्ठा हुए हैं, जहां उन्हें रोकने की कोशिशें की जा रही हैं.
उनके आंदोलन के बीच कृषि मंत्रालय ने सोमवार को कृषि कानूनों पर अपना पक्ष और कुछ आंकड़ें साझा किए हैं. इन आंकड़ों में मोदी सरकार ने कई दावे किए हैं कि उसके कार्यकाल में किसानों को उनकी फसल के भुगतान भी ज्यादा किया गया है. इसमें कहा गया है कि वर्ष 2009 से 2014 के यूपीए के शासनकाल के दौरान किसानों को दालों के लिए MSP के तौर पर 645 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान किया गया जबकि 2015 से 2020 के एनडीए यानी पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान यह भुगतान 49, 000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.
इन आंकड़ों के जरिए सरकार ने यह जताने की कोशिश की है उसे देश के अन्नदाताओं की चिंता है लेकिन फिलहाल आंदोलनरत किसानों ने इरादा जताया है कि वो यहां लंबे समय तक टिके रहने को तैयार हैं.
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