मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
पटना:
पटना से 180 किमी दूर डुमरी में हर दिन जब शाम को सूरज डूबता है, तो बिना किसी उत्सव के ही हजारों लैंप जल उठते हैं। यह बिहार के उन 1000 गांवों में से एक है जहां अभी तक बिजली नहीं पहुंची है।
त्रिवेणी सिंह (70), जो पुश्तैनी रूप से यहां रह रहे हैं, अपने उन तीन प्रयासों को याद करते हैं, जो उन्होंने डुमरी में बिजली लाने के लिए 1980 से शुरू किए थे। उनके सभी प्रयास कथित रूप से बेकार हो गए। उन्होंने कहा, 'हममें से कई लोगों ने कनेक्शन शुल्क जमा कर दिया था। हमें कहा गया कि यह आएगी, यह आएगी ही। एक ट्रांसफॉर्मर भी लगाया गया था। लेकिन फिर कुछ नहीं हुआ।' उन्होंने दुखी होकर कहा कि वो मरने से पहले अपने घर में एक बल्ब जलता हुआ देखना चाहते हैं।
बिहार में मतदान से दो माह पहले बिजली का मुद्दा गर्माता जा रहा है। हाल ही में आयोजित रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि नीतीश कुमार के लिए समय अब खत्म हो चुका है, जो मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी पारी की तलाश में हैं। "2012 में उन्होंने कहा था, 'यदि मैं आपके लिए बिजली नहीं ला पाऊंगा, तो मैं आपसे 2015 में वोट नहीं मागूंगा।' लेकिन क्या बिजली आई? नहीं। क्या वो वोट मांग रहे हैं? हां।"
मुजफ्फरपुर में मौजूद एक लाख से अधिक की भीड़ ने इस पर जमकर नारे लगाए थे, हालांकि यह अप्रत्याशित नहीं था, क्योंकि यह बीजेपी की पकड़ वाला क्षेत्र है।
नीतीश कुमार का कहना कि उनकी सरकार ने बिहार में बिजली की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया है, जिस पर प्रश्नचिह्न है। उन्होंने पीएम मोदी की अपनी पार्टी के लिए राज्य में बड़ी जीत पर व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, 'चूंकि कई गांवों में बिजली पहुंचा दी गई थी, इसलिए पिछले राष्ट्रीय चुनावों में कई बिहारी टीवी देखकर तथाकथित मोदी लहर का शिकार हो गए।'
नीतीश प्रशासन का कहना है कि दस साल पहले अधिकांश गांवों को प्रतिदिन दो घंटे बिजली मिल रही थी। अब बिजली सप्लाई 10 घंटे हो रही है। राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि 95 प्रतिशत गांवों में बिजली पहुंच गई है।
डुमरी में शिव नंदन प्रसाद जैसे निवासी इस तथ्य से अवगत हैं कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने अपना दायित्व नहीं निभाया है। उन्होंने कहा, 'कुछ साल पहले राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण वाले (केंद्रीय स्कीम) आए थे, बोर्ड पर नाम लगाया, और फिर भूल गए। बिहार सरकार ने बिजली के खंभे जरूर लगाए, लेकिन हमें आज भी बिजली का इंतजार है।'
त्रिवेणी सिंह (70), जो पुश्तैनी रूप से यहां रह रहे हैं, अपने उन तीन प्रयासों को याद करते हैं, जो उन्होंने डुमरी में बिजली लाने के लिए 1980 से शुरू किए थे। उनके सभी प्रयास कथित रूप से बेकार हो गए। उन्होंने कहा, 'हममें से कई लोगों ने कनेक्शन शुल्क जमा कर दिया था। हमें कहा गया कि यह आएगी, यह आएगी ही। एक ट्रांसफॉर्मर भी लगाया गया था। लेकिन फिर कुछ नहीं हुआ।' उन्होंने दुखी होकर कहा कि वो मरने से पहले अपने घर में एक बल्ब जलता हुआ देखना चाहते हैं।
बिहार में मतदान से दो माह पहले बिजली का मुद्दा गर्माता जा रहा है। हाल ही में आयोजित रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि नीतीश कुमार के लिए समय अब खत्म हो चुका है, जो मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी पारी की तलाश में हैं। "2012 में उन्होंने कहा था, 'यदि मैं आपके लिए बिजली नहीं ला पाऊंगा, तो मैं आपसे 2015 में वोट नहीं मागूंगा।' लेकिन क्या बिजली आई? नहीं। क्या वो वोट मांग रहे हैं? हां।"
मुजफ्फरपुर में मौजूद एक लाख से अधिक की भीड़ ने इस पर जमकर नारे लगाए थे, हालांकि यह अप्रत्याशित नहीं था, क्योंकि यह बीजेपी की पकड़ वाला क्षेत्र है।
नीतीश कुमार का कहना कि उनकी सरकार ने बिहार में बिजली की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया है, जिस पर प्रश्नचिह्न है। उन्होंने पीएम मोदी की अपनी पार्टी के लिए राज्य में बड़ी जीत पर व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, 'चूंकि कई गांवों में बिजली पहुंचा दी गई थी, इसलिए पिछले राष्ट्रीय चुनावों में कई बिहारी टीवी देखकर तथाकथित मोदी लहर का शिकार हो गए।'
नीतीश प्रशासन का कहना है कि दस साल पहले अधिकांश गांवों को प्रतिदिन दो घंटे बिजली मिल रही थी। अब बिजली सप्लाई 10 घंटे हो रही है। राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि 95 प्रतिशत गांवों में बिजली पहुंच गई है।
डुमरी में शिव नंदन प्रसाद जैसे निवासी इस तथ्य से अवगत हैं कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने अपना दायित्व नहीं निभाया है। उन्होंने कहा, 'कुछ साल पहले राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण वाले (केंद्रीय स्कीम) आए थे, बोर्ड पर नाम लगाया, और फिर भूल गए। बिहार सरकार ने बिजली के खंभे जरूर लगाए, लेकिन हमें आज भी बिजली का इंतजार है।'
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