मीठी नदी के खतरे के निशान से ऊपर होने के क्‍या हैं मायने

मीठी नदी के खतरे के निशान से ऊपर होने के क्‍या हैं मायने

मुंबई में भारी बारिश से परेशान लोग (फाइल फोटो)

मुंबई:

हर साल की तरह इस साल भी मुंबई भारी बारिश की चपेट में है और बारिश की वजह से लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी अस्‍तव्‍यस्‍त हो गई है। एक बार फिर मीठी नदी चर्चा में है क्‍योंकि इसने फिर से खतरे के निशान को पार कर लिया है।

जुलाई 2005 में आई बाढ़ को मुंबईवासी कभी भूल नहीं सकते। 26 जुलाई 2005 को एक ही दिन में मुंबई में 944 मिमी पानी बरस गया था और शहर में जलनिकासी की चरमराई व्‍यवस्‍था के कारण निचले इलाकों में भीषण बाढ़ आ गई थी। इस बाढ़ में करीब 1000 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। उस वक्‍त भी मीठी नदी चर्चा में रही थी।

माहिम में अरब सागर में मिलने से पहले 15 किलोमीटर की लंबाई में बहने वाली मीठी नदी मुंबई शहर के लिए बस एक गंदा नाला बनकर रह गई है।

बुरी तरह प्रदूषित होने से पहले मीठी नदी समुद्र में ज्‍वार के समय ज्‍यादा पानी को अपने अंदर समाहित कर लेती थी और शहर के कई इलाकों में जलजमाव को रोकती थी। लेकिन आज जबकि यह केवल शहर के गंदे पानी को ढोने का जरिया बनी हुई है, ऐसे में ज्‍वार आने की स्थिति में मीठी नदी कई बार शहर के लिए खतरे का रूप इख्तियार कर लेती है। ज्‍वार आने की स्थिति में जब इसमें समुद्र का पानी भरता है तो कई इलाकों में इसका गंदा पानी भर जाने का खतरा पैदा हो जाता है।

हालांकि इस नदी को साफ करने की कई योजनाएं बनी लेकिन पूरी तरह कामयाबी अब तक नहीं मिली है। 26 जुलाई 2015 की बाढ़ का फिर सामना ना करना पड़े, इसके लिए बीएमसी ने सफाई अभियान की शुरुआत की।

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2009 में पुरस्‍कार विजेता संरक्षणविद राजेंद्र सिंह ने एक पर्यावरण संरक्षण समूह का गठन किया। मृत हो रही मीठी नदी को बचाने के लिए हालांकि बीएमसी अभी जितना काम होना चाहिए था उसका केवल 60 फसीदी काम ही पूरा कर सकी है।