प्रतीकात्मक तस्वीर
दिल्ली के शेख सराय में रहने वाली शीला को अपने आठ महीने के पोते के लिए आधार कार्ड बनवाने जाना पड़ा, क्योंकि उन्हें उसका नाम राशन कार्ड में शामिल करवाना था। शीला कहती हैं, 'उन्होंने कहा कि बच्चे का नाम राशन कार्ड में तभी लिखा जाएगा, जब आधार कार्ड होगा। मैंने आधार की अर्जी लगाई और हमें नंबर (इनरोलमेंट नंबर) दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे नहीं माना।'
आज शीला का पोता डेढ़ साल का हो गया है, लेकिन उसका नाम राशन कार्ड में नहीं चढ़ पाया है। महज़ एक कमरे में रहने वाले शीला के परिवार की कुल सालाना कमाई पचास हज़ार रुपये से भी कम है। खाद्य सुरक्षा कानून के तहत सस्ता राशन इन लोगों का अधिकार है लेकिन इन लोगों को कोई राशन नहीं मिल रहा।
यह समस्या दिल्ली के कई लोगों की है। गरीबों को सस्ते अनाज का अधिकार दिलाने में लगी सामाजिक कार्यकर्ता सुमन कहती हैं, 'यहां लोग काफी गरीब हैं और उनके लिए खाद्य सुरक्षा बिल के तहत मिलने वाला राशन काफी अहम है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद राशन कार्ड बनाने या उसमें नाम शामिल करने से पहले आधार कार्ड मांगा जा रहा है।'
दक्षिण दिल्ली में मालवीय नगर के पास रहने वाली 34 साल की गीता देवी के साथ भी यही दिक्कत आई। उनके पास आधार कार्ड का इनरोलमेंट नंबर होने के बाद भी राशन कार्ड में नाम नहीं चढ़ाया जा रहा। गीता ने हमें बताया 'पहले उन्होंने कहा कि आधार कार्ड बनवाओ। मेरे पास आधार कार्ड का इनरोलमेंट नंबर है, लेकिन अधिकारी उसे मानने को तैयार नहीं हैं।'
गीता और उसके पति मज़दूरी कर औसतन हर रोज़ साठ से सत्तर रुपये तक ही कमा पाते हैं। वह कहती हैं, 'महीने में कुछ दिन ही काम मिल पाता है। यहां हर रोज़ काम नहीं मिलता। आप यहां से कुछ दूर मज़दूर चौक पर जाइये वहां लोग बेकार बैठे मिल जाएंगे।'
शीला और गीता जैसे परिवारों के लिए खाद्य सुरक्षा बिल की बड़ी अहमियत है, लेकिन बेवजह की लालफीताशाही इनको अपना संवैधानिक हक मिलने से रोक रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च 2014 को जारी किए अपने निर्देश में कहा कि नागरिकों को सुविधा देने में आधार की अनिवार्यता कतई नहीं होनी चाहिए। कोर्ट का निर्देश है कि किसी भी व्यक्ति को आधार नंबर न होने की वजह से किसी ऐसी योजना के लाभ से वंचित नहीं किया जाएगा, जिसके लिए वह योग्य है। सभी विभागों को निर्देश दिया जाता है कि वह अपने फॉर्म और सर्कुलर में ज़रूरी बदलाव करें ताकि आधार नंबर की अनिवार्यता न हो।
आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर और अर्थशास्त्री ऋतिका खेरा कहती हैं, 'सुप्रीम कोर्ट के साफ निर्देश के बाद आधार की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए, लेकिन हम देख रहे हैं कि अदालत के आदेश का उल्लंघन हो रहा है। न केवल अनाज देने में बल्कि पेंशन, वज़ीफा और यहां तक कि लोगों को अपनी शादी का पंजीकरण कराने में भी दिक्कत हो रही है।'
इस बारे में हमने दिल्ली सरकार से बात करने की कोशिश की जिसका अभी तक कोई जवाब हमें नहीं मिला है। वित्तमंत्री अरुण जेटली देश की अर्थव्यवस्था कि लिए नया खाका बना रहे हैं। गुरुवार को उन्होंने संसद में कहा कि देश के भीतर ऐसा माहौल न बनाया जाए जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर और उद्योग गंदे शब्द लगें।
सरकार और वित्तमंत्री को राजधानी के बीचोबीच समाज के सबसे कमज़ोर तबके के साथ हो रहे अन्याय को देखने की ज़रूरत है, ताकि उन्हें पता चले कि उनके गंदे शब्दों की फेहरिस्त में खाने का अधिकार भी शामिल हो गया है।
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