देश में राजमार्गों के खस्ता हाल पर तैयार श्वेत-पत्र में ठीकरा पर्यावरण मंत्रालय पर फोड़ा गया है। 13 पन्नों के इस श्वेत पत्र में यह भी कहा गया है कि यूपीए सरकार ने आंकड़े बढ़ाने के लिए ज्यादा परियोजनाओं की घोषणा के लिए नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया पर दबाव डाला, जबकि इनके लिए न तो जमीन अधिग्रहित हुई थी और न ही जरूरी पर्यावरण और वन मंजूरी ली गई थी। ठेके देना आंकड़ों का खेल बन गया था।
श्वेत पत्र के मुताबिक, पर्यावरण मंत्रालय ने लफार्ज मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या करते हुए सभी रोड परियोजनाओं को वन मंजूरी के नाम पर रोका, जबकि वहां जंगल नाममात्र को थे।
जबकि वित्तीय सेवा विभाग ने ये कहा कि जब तक सौ फीसदी जमीन नहीं मिल जाती, तब तक बैंक इन परियोजनाओं के लिए कर्ज नहीं दे सकते। इन दोनों ही विभागों ने पूरे सड़क क्षेत्र को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, जबकि नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने अचानक ही रेत का खनन बंद कर दिया, जिससे न सिर्फ अवैध खनन को बढ़ावा मिला बल्कि वैध तरीके से रेत मिलनी भी बंद हो गई और इसकी कीमतें बढ़ गईं। न्यायिक सक्रियता के चलते कई इलाकों में खनन गतिविधियां रुकीं, जिससे माल ढुलाई प्रभावित हुई।
श्वेत पत्र में पिछले पांच साल में आई आर्थिक मंदी को भी जिम्मेदार बताया गया है। यह कहा गया है कि जीडीपी में एक फीसदी की गिरावट पर यातायात वृद्धि दर में 1.2 फीसदी की गिरावट आती है। पिछले पांच साल में जीडीपी 9.5% से घट कर 4.5% रह गई है इसी दर से यातायात वृद्धि दर में भी गिरावट आई, जिससे राजमार्ग परियोजनाओं से मिलने वाले मुनाफे में कमी हुई।
श्वेत पत्र के मुताबिक, आने वाले समय में इस क्षेत्र को मजबूती देने के लिए जरूरी है कि केंद्र सरकार एनएचआईए के काम में दखलंदाज़ी कम करे। नीतियों में बदलाव तभी हो जब उसकी व्यावहारिक समस्याओं के बारे में अध्ययन हो गया हो। विवादों के निपटारे के लिए केंद्रीय व्यवस्था हो। जब तक राज्य सरकारों से मदद न मिले तब तक एनएचएआई को कोई नया राजमार्ग न दिया जाए।
सरकार केंद्रीय बैंकों से कहे कि वह सड़क क्षेत्र के लिए खास रियायतें दे।
एक अध्ययन के मुताबिक, एनएचएआई के पास करीब 27 हज़ार किलोमीटर राजमार्ग बनाने के लिए करीब सवा दो लाख करोड़ रुपये की 332 परियोजनाएं चल रही हैं, लेकिन इनमें 27 हज़ार करोड़ रुपये की करीब दो सौ परियोजनाएं विवादों में उलझी हुई हैं।
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