यह ख़बर 15 अप्रैल, 2013 को प्रकाशित हुई थी

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गुजरात के गिर से मध्य प्रदेश भेजे जाएंगे शेर

खास बातें

  • उच्चतम न्यायालय ने एशियाई शेरों को गुजरात से मध्य प्रदेश के अभयारण्य में स्थानांतरित करने की अनुमति देते हुए सोमवार को कहा कि यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है और उसे दूसरे घर की आवश्यकता है।
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने एशियाई शेरों को गुजरात से मध्य प्रदेश के अभयारण्य में स्थानांतरित करने की अनुमति देते हुए सोमवार को कहा कि यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है और उसे दूसरे घर की आवश्यकता है।

न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति चंदमौलि कुमार प्रसाद की खंडपीठ ने शेरों का स्थानांतरण करने के लिए संबंधित वन्यजीव प्राधिकरणों को छह महीने का वक्त दिया है। इस समय गुजरात के गिर अभयारण्य में करीब चार सौ एशियाई शेर हैं।

न्यायाधीशों ने कहा कि नामीबिया से अफ्रीकी चीते भारत लाने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि जंगली भैंसा और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसी विलुप्त होने की कगार पहुंची देशी प्रजातियों के संरक्षण को प्राथमिकी दी जानी चाहिए।

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 300 करोड़ रुपये के चीता संरक्षण कार्यक्रम के तहत देश में अफ्रीकी चीते लाने का प्रस्ताव तैयार किया था। लेकिन शीर्ष अदालत ने पिछले साल मई में इस परियोजना के अमल पर रोक लगा दी थी।

एशियाई शेरों को गुजरात के गिर अभयारण्य से मध्य प्रदेश के पालपुर कुनो अभयारण्य में भेजने के मसले पर सुनवाई के दौरान ही नामीबिया से चीते लाने का मुद्दा भी उठा था।

गिर के अभयारण्य से एशियाई शेरों को मध्य प्रदेश के अभयारण्य में स्थानांतरित करने के लिए दायर जनहित याचिका का गुजरात सरकार शीर्ष अदालत में विरोध कर रही है।

मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले साल इन शेरों को पालपुर कुनो अभयारण्य में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया था। राज्य सरकार का दावा था कि वहां इस प्रजाति के लिए अनुकूल वातावरण मुहैया कराने के लिए सभी सुविधायें हैं।

मध्य प्रदेश के इस अनुरोध का गुजरात विरोध कर रहा था। गुजरात का तर्क था कि यह राज्य पन्ना अभयारण्य में बाघों को सुरक्षित नहीं रख सका है, ऐसी स्थिति में ये शेर भी वहां सुरक्षित नहीं रहेंगे।

गुजरात की दलील थी कि उसके पास शेरों के संरक्षण के लिए पर्याप्त संसाधन और इच्छाशक्ति है और ऐसी स्थिति में उन्हें स्थानांतरित करना उचित नहीं होगा। गुजरात का कहना था कि लगभग विलुप्त हो चुके दक्षिण अफ्रीकी चीतों को कूनो पालपुर अभयारण्य में स्थानांतरित करना चाहिए और समुचित प्रयासों के बाद ही धीरे-धीरे इन शेरों को अभयारण्य में शामिल किया जाना चाहिए।

अफ्रीकी चीतों को भारत लाने के प्रस्ताव का अनेक पर्यावरणविद विरोध कर रहे हैं। इनका तर्क है कि इस परियोजना को मंजूरी के लिए राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थाई समिति के समक्ष पेश नहीं किया गया है।

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एशियाई चीते 1950 में देश में विलुप्त हो गए थे। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जुलाई, 2010 में भारत में अफ्रीकी चीते लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।