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This Article is From May 16, 2018

किसी भी नागरिक के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटके रहना सभ्य समाज नहीं : SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट

SC/ST एक्ट को लेकर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कोर्ट का पुराना आदेश बना रहेगा.

किसी भी नागरिक के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटके रहना सभ्य समाज नहीं : SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: SC/ST एक्ट को लेकर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कोर्ट का पुराना आदेश बना रहेगा. इस मामले में कोर्ट छुट्टियों के बाद सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर एकतरफा बयानों के आधार पर किसी नागरिक के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी रहे तो समझिए हम सभ्य समाज में नहीं रह रहे हैं. 

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जस्टिस आदर्श गोयल ने कहा कि यहां तक कि संसद भी ऐसा कानून नहीं बना सकती जो नागरिकों के जीने के अधिकार का हनन करता हो और बिना प्रक्रिया के पालन के सलाखों के पीछे डालता हो. कोर्ट ने ये आदेश अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार को सरंक्षण देने के लिए दिया है. कोर्ट ने कहा कि जीने के अधिकार के लिए किसी को इनकार नहीं किया जा सकता.

वहीं अटॉनी जनरल (AG) केके वेणुगोपाल ने कहा कि जीने का अधिकार बडा व्यापक है. इसमें रोजगार का अधिकार, शेल्टर भी मौलिक अधिकार हैं, लेकिन विकासशील देश के लिए सभी के मौलिक अधिकार पूरा करना संभव नहीं है. क्या सरकार सबको रोजगार दे सकती है? 

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गौरतलब है कि जस्टिस आदर्श गोयल 6 जुलाई को रिटायर हो रहे हैं. ऐसे में इस मामले में सुनवाई का क्या होगा ? ये सवाल है. SC/ST एक्ट को लेकर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई हुई. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मिली उन शिकायतों पर ही गिरफ्तारी से पहले जांच की जरूरत है जब शिकायत मनगढ़ंत या फर्जी लगे. 

अदालत ने कहा कि हर शिकायत पर प्रारंभिक जांच की दरकार नहीं है. साथ ही शीर्ष अदालत ने एक बार फिर अपने आदेश पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है. अदालत ने 20 मार्च के आदेश को रक्षात्मक कदम बताया है. 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट केतहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी से पहले प्रारंभिक जांच होनी चाहिए. इसके अलावा अन्य और निर्देश दिए गए थे.

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सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि एससी-एसटी एक्ट केतहत होने वाली कुछ शिकायतों में तो कुछ दम होता है जबकि कुछ में कुछ भी नहीं होता. जिन शिकायतों में ऐसा लगता हो कि वह मनगढ़ंत या फर्जी है, उन मामले में प्रारंभिक जांच की जरूरत है. कुछ ऐसी शिकायतें होती हैं जिसकेबारे में पुलिस अधिकारी भी यह महसूस करते हैं कि उसमें दम नहीं है. इस तरह की शिकायतों पर ही प्रांरभिक जांच होनी चाहिए न कि सभी शिकायतों पर. कोर्ट ने कहा कि हमने अपने आदेश में प्रारंभिक जांच को आवश्यक नहीं बताया था बल्कि यह कहा था कि प्रारंभिक जांच होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि फिलहाल ऐसा हो रहा है कि सभी मामलों में गिरफ्तारी हो रही है, भले ही पुलिस अधिकारियों भी यह महसूस करते हो कि इनमें से कई शिकायतें फर्जी हैं. 

 

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