पठानकोट हमले के बाद सुरक्षा तैयारियों पर उठते सवाल

पठानकोट हमले के बाद सुरक्षा तैयारियों पर उठते सवाल

नई दिल्ली:

बेशक पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पर घुसे आतंकवादियों को जवानों ने मार गिराया, लेकिन इस हमले ने देश की सुरक्षा तैयारियों की पोल खोल दी है। खासकर तब जब हमले के बारे में खुफिया अलर्ट हो, बचाव की तैयारियां भी की जाएं, बावजूद इसके हमला हो जाए।

इस हमले के बारे में आतंकी साजिश के बारे में सुरक्षा अमले को पूरी जानकारी थी। खुफिया रिकॉर्डिंग से पता चल चुका था कि आतंकवादी घुस चुके हैं और इसी इलाके में हमला करने वाले हैं। इसीलिए वायुसेना स्टेशन में सेना के स्पेशल फोर्सेज के 2 कॉलम तैनात किए गए। इसके अलावा वायुसेना के गरुड़ कमांडो अलग से मौजूद थे। बावजूद इसके आतंकवादी न सिर्फ सुरक्षा का पहला घेरा तोड़ पाने में कामयाब रहे, बल्कि उन्होंने तीन जवानों को शहीद भी कर दिया।

हालांकि गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इसको चूक मानने से इनकार कर दिया और कहा कि अगर आतंकवादी आगे बढ़ जाते, तो बेहद नुकसान होता।

गौरतलब है कि सुरक्षा एजेंसियों के कान तभी खड़े हो गए थे, जब आतंकवादियों ने गुरुदासपुर के एसपी को अगवा किया। उन्होंने एसपी को छोड़ दिया और ड्राइवर को मार कर कार लेकर भाग खड़े हुए। इसके बाद एसपी के फोन से अपने आकाओं से बातचीत की जिसमें आकाओं ने पूछा कि एसपी को ज़िंदा क्यों छोड़ दिया। यही वो कॉल था, जिसको सुरक्षा एजेंसियों ने रिकॉर्ड किया और एनएसए ने उच्च स्तरीय बैठक बुला कर अलर्ट जारी कर दिया।

अगर आतंकवादी दूसरा घेरा तोड़ पाने में कामयाब होते तो नुकसान का अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है। अगर आतंकवादी एयरफोर्स स्टेशन के तकनीकी एरिया में दाखिल हो जाते तो उनके सामने मिग-21 बाइसन और एमआई-35 और एमआई-25 जैसे अटैक हेलिकॉप्टर भी होते। यह अपने फ्यूल टैंकों के कारण किसी बम से भी ज़्यादा ख़तरनाक साबित हो सकते हैं। लेकिन सुरक्षा बलों की दाद देनी होगी कि उन्होंने आतंकवादियों को पहले ही ट्रैप कर लिया और वो तकनीकी एरिया में जाने में सफल नहीं हो सके।

यह पहला मौका नहीं है जब सुरक्षा में चूक हुई हो। तमाम तैयारी, खर्चों और दावों के बावजूद पिछले छह महीनों में यह तीसरा बड़ा आतंकवादी हमला है। चूक बीएसएफ की भी है और राज्य पुलिस की भी। बड़ी बात यह है कि हमले की ज़िम्मेदारी लेने के बजाए कोशिश अपनी गरदन बचाने की है।

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पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का कहना है कि आतंकवादियों को रोकने की ज़िम्मेदारी राज्य की नहीं है। हम अलर्ट थे, इसीलिए नुकसान कम हुआ। अब दिल्ली में एक के बाद एक बैठकों का दौर जारी है और जोर चूक को दूर कर सुरक्षा चाक चौबंद करने की है।