
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के खुद को मजबूत करने की कवायद में जुटी है और इसके लिए पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी खुद मैदान में हैं. लोकसभा चुनाव में राज्य में भले ही कांग्रेस सफलता न मिली हो लेकिन अब पार्टी का पूरा ध्यान विधानसभा चुनाव पर है. शनिवार को कांग्रेस की स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंची पहुंची प्रियंका गांधी ने संकेत दिए हैं कि साल 2022 में होने वाले चुनाव में कांग्रेस यहां अकेले लड़ सकती है. हालांकि साथ में उन्होंने में प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों समाजवादी पार्टी और बीएसपी को भी निशाने पर लिया है. उन्होंने कहा कि दोनों पार्टियां सरकार से डर रही हैं, और वे कुछ नहीं कर रही हैं. लेकिन कांग्रेस को संघर्ष की चुनौती स्वीकार है. इसके साथ ही उन्होंने नसीहत दी है कि उत्तर प्रदेश में विपक्ष को एकजुट होना चाहिए, और अगर ज़रूरत पड़ी तो कांग्रेस अकेले चलने के लिए तैयार है. प्रियंका ने दोनों दलों से कहा, ' अपनी आवाज़ क्यों नहीं उठाते...उनको सरकार के ख़िलाफ़ खड़ा होना चाहिए...वो पहल नहीं लेते, आवाज़ नहीं उठाते... वही जानें क्यों नहीं करते, करना चाहिए...हमें अकेला चलना पड़े तो अकेले चलेंगे...कई महीनों से लड़ रहे, लड़ते रहेंगे.. हम अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ेंगे...2022 में अकेले लड़ सकते हैं...
हालांकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती को प्रियंका गांधी की नसीहत पसंद नहीं आई. उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'कांग्रेस अपनी पार्टी के स्थापना दिवस को 'भारत बचाओ, संविधान बचाओ' के रूप में मना रही है. इस मौके पर दूसरों पर चिंता व्यक्त करने के बजाए कांग्रेस स्वयं अपनी स्थिति पर आत्मचिंतन करती तो यह बेहतर होता, जिससे निकलने के लिए उसे अब किस्म-किस्म की नाटकबाजी करनी पड़ रही है." मायावती ने एक अन्य ट्वीट में कहा, "'भारत बचाओ, संविधान बचाओ' की याद कांग्रेस को तब क्यों नहीं आई जब वह सत्ता में रहकर जनहित की घोर अनदेखी कर रही थी, जिसमें दलितों, पिछड़ों व मुस्लिमों को भी उनका संवैधानिक हक नहीं मिल पा रहा था. जिसके कारण ही आज भाजपा सत्ता में बनी हुई है."
मायावती को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस क्यों नहीं पसंद
लोकसभा चुनाव के दौरान जब बीएसपी ने सपा के साथ गठबंधन किया था तो मायावती ने ही कांग्रेस को इसमें शामिल करने पर रोक लगा दी थी. इसकी वजह यह है कि प्रियंका गांधी की टीम उत्तर प्रदेश में दलितों पर फोकस कर रही है जो मायावती का कोर वोट बैंक है. हालांकि कभी दलित कांग्रेस के साथ हुआ करते थे. लेकिन क्षेत्रीय दलों के ऊभार और राम मंदिर आंदोलन की वजह से कांग्रेस अपने दो बड़े वोट बैंक सवर्ण खासकर ब्राह्मणों और दलितों को संभाल कर रख नहीं पाई.
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