यह ख़बर 09 जुलाई, 2014 को प्रकाशित हुई थी

प्राइम टाइम इंट्रो : अमित शाह के बीजेपी अध्यक्ष बनने पर विवाद क्यों?

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। लोकतंत्र में राजनीतिक दल वह जैविक इकाई है जिसके ज़रिये जनता अपनी आकांक्षाओं को न सिर्फ व्यक्त करती है बल्कि उन्हें पूरा करने की ज़िम्मेदारी भी सौंपती है। टीवी में इसी टाइप की परिभाषा चलेगी। अब बलिहारी उस मीडिया की जो अमित शाह के नाम से शाह उठाकर उनके अध्यक्ष बनने को ऐसे पेश कर रही है मानो बीजेपी का नहीं किसी मुग़लिया जागीर का कोई मनसबदार बना हो। इसका जि़क्र इसलिए महत्वपूर्ण है कि हम लोकतांत्रिक प्रकियाओं के बयान के लिए किस हद तक अलोकतांत्रिक शब्दों का सहारा लेते हैं। जैसे शपथ ग्रहण की जगह ताजपोशी। फिर एक तर्क यह भी हो सकता है कि सामंती पदनामों वाले शब्दों का अब वो मतलब नहीं रह गया होगा। तमाम चैनलों पर बीजेपी के नए शाह टाइप के कैप्शन अर्थात शीर्षक से सुशोभित अमित शाह की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा तब शुरू होती है जब उन्हें सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी और चश्मदीद गवाह तुलसीराम प्रजापति के फर्ज़ी एनकाउंटर से जुड़े मामले में मुख्य आरोपी बनाया जाता है।
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में उन्हें नामित किया है। मुंबई हाईकोर्ट इस शर्त पर ज़मानत देती है कि वे गुजरात नहीं जाएंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात जाने पर लगी रोक हटा दी। इसी मामले में अमित शाह तीन महीने जेल रह चुके हैं। मामला अभी अदालत में है। इशरत जहां मामले में नाम तो उछला लेकिन आरोपी नहीं बने। फिर एक लड़की के कथित रूप से जासूसी करने के मामले में फोन पर हुई गुफ्तगू सार्वजनिक हो जाती है। अंग्रेजी अखबार इसे स्नूपगेट की संज्ञा देते हैं।
फिलहाल उक्त लड़की ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वो इस बात की शुक्रगुज़ार है कि गुजरात पुलिस ने सुरक्षा के लिए निगरानी की और इस मामले की जांच को बंद कर देना चाहिए। मनमोहन सरकार ने भी रिटायर्ड जज से जांच का फैसला किया था, पर कोई जज मिला नहीं। नई सरकार का अंतिम फैसला अभी नहीं आया है। गुजरात सरकार ने भी इस मामले की जांच के लिए एक सदस्य का आयोग बनाया था जिसे इसी 30 जून को 31 अक्तूबर तक का विस्तार दिया गया है।

यूपी चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने अमित शाह पर प्रतिबंध लगा दिया था तब अमित शाह को लिखित देना पड़ा था कि भड़काऊ भाषा का इस्तमाल नहीं करेंगे। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के वकील गोपाल सुब्रम्णयम ने चीफ जस्टिस को लिखी अपनी चिट्ठी में कहा था कि सरकार उन्हें अमित शाह के खिलाफ मुकदमा चलाने का सुझाव देने के कारण जज नहीं बनाना चाहती है। शाह तमाम आरोपों को राजनीतिक षड्यंत्र बताते हैं।

आरोप अभी साबित नहीं हैं और मुकदमें अभी चल रहे हैं। इन सबके बावजूद जब अमित शाह को यूपी का प्रभारी बनाया तो किसी को यकीन नहीं था कि चंद महीनों के भीतर यह शख्स मायावती और अजीत सिंह को ज़ीरो पर पहुंचा देगा। मुलायम सिंह को चार पर अटका देगा और कांग्रेस को दो पर लटका देगा। यूपी में बीजेपी को 71 सीटें मिलीं। अपना दल मिला लें तो 73। इस तरह कैलकुलस और भौतिकी की तरह यूपी की राजनीति को समझने वाले तमाम जानकारों को अमित शाह ने राजनीति में बायोकेमेस्ट्री का नया फार्मूला दिया जिसका अभी तक अलग-अलग स्तरों पर अध्ययन हो रहा है। वैसे अमित शाह बायोकेमेस्ट्री में बीएससी हैं।

गुजरात की राजनीति में अमित शाह 2002 से ही नरेंद्र मोदी के करीबी हैं। एक पत्रकार ने बताया कि प्रदर्शनों के दौरान जब लाठी चार्ज होती थी तब सब भाग जाते थे, मगर अमित शाह टिके रहते थे। मुलायम और मायावती को मात देने वाले में कुछ तो एक्स फैक्टर यानी अतिरिक्त गुण होना ही चाहिए।

1997 में सरख़ेज़ विधानसभा से पहली बार जीते और इस सीट से चार बार विधायक रहे। 2012 में नरनपुरा विधानसभा से जीते। गडकरी की तरह वे भी सीधे विधायक से राष्ट्रीय अध्यक्ष। जब नरेंद्र मोदी गुजरात क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष थे तब अमित शाह उपाध्यक्ष हुआ करते थे।

इसी 13 जून को वो गुजरात क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष बनते हैं और 26 दिन बाद यानी 9 जुलाई को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष। अब ये सुनकर गुजरात क्रिकेट बोर्ड के लिए लोग भुवनेश्वर से चुनाव लड़ने न आ जाएं।

अमित शाह भारतीय जनता युवा मोर्चा में भी रह चुके हैं।
33 साल की उम्र में पहली बार विधायक और 49 साल की उम्र में राष्ट्रीय अध्यक्ष। बीजेपी के अब तक के इतिहास में सबसे युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष। आरएसएस और नरेंद्र मोदी का विश्वास बीजेपी की मौजूदा और भावी राजनीति की तरफ काफी कुछ इशारा करता है। विरोधी दलों के नेताओं ने आंतरिक मामला बताते हुए जो बाहरी आलोचना की है उसका भी पाठ ज़रूरी है।

बीजेपी ने उस इंसान को चुना है जिसे भड़काऊ भाषण के कारण यूपी में बैन किया गया था और फर्जी एनकाउंटर मामले में चार्जशीट भी किया गया है। जो दिखाता है कि बीजेपी क्या रास्ता लेना चाहती है। उपरोक्त कथन सीपीएम नेता वृंदा करात का है।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि बीजेपी पहली बार ऐसे अध्यक्ष को चुनती है जो हत्या का आरोपी है और ज़मानत पर है। एक हत्या के आरोपी को छोड़ कर कोई और नहीं मिला।

आम आदमी पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने कहा है कि अमित शाह को अध्यक्ष बनाकर बीजेपी ने राष्ट्रीय नेता बनने के लिए जो न्यूनतम नैतिक पात्रता होती है उसे और गिरा दिया है। योगेंद्र ने अंग्रेजी में मिनिमम मोरल क्वालिफिकेशन शब्द का प्रयोग किया है। ऐसा क्वालिफिकेशन मैंने पहली बार सुना है।

लोक जनशक्ति पार्टी के नए चिराग, चिराग पासवान ने कहा है कि ये अच्छी बात है। हम भी युवा सोच के हैं। वो भी युवा सोच के हैं। उनपर केसेज़ यानी मुकदमों से कुछ इम्पैक्ट नहीं पड़ता है। राजनीति में ये भी एक नया क्वालिफिकेशन है। युवा सोच। युवा सोच और युवा जोश में अंतर है। युवा जोश को पब्लिक ने रिजेक्ट कर दिया था।

कांग्रेस के अमरिंदर सिंह ने कहा है कि अमित शाह को मैं नहीं जानता। हू केयर्स। हू केयर्स हिन्दी में किसे फर्क पड़ता है और पंजाबी में की फर्क पैंदा जी होता है।

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क्या सबसे अलग बताने वाली कम से कम बीजेपी से यह सवाल किया जा सकता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की आंतरिक प्रक्रिया क्या है। विरोधी दल इन प्रक्रियाओं को लेकर मुद्दा क्यों नहीं बनाते हैं। सोहराबुद्दीन मामले में 17 जुलाई को अमित शाह की ज़मानत की सुनवाई होनी है तो क्या बीजेपी के लिए फ्रंटफुट पर जाकर अपने विरोधियों को जवाब देना आसान होगा। आरोपों के रहते अध्यक्ष बनाया गया है। प्राइम टाइम...