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This Article is From Jul 08, 2014

प्राइम टाइम इंट्रो : बुलेट ट्रेन से ही चमकेगा भारतीय रेल?

प्राइम टाइम इंट्रो : बुलेट ट्रेन से ही चमकेगा भारतीय रेल?
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

नमस्कार.. मैं रवीश कुमार। बुलेट ट्रेनें नहीं आईं। एक ही आएगी जिसे लाने का प्रयास पिछले दस साल से भी ज्यादा समय से हो रहा है। लेकिन बुलेट ट्रेन का ज़िक्र होने से अच्छा यह हुआ कि आप घर बैठे तमाम हिन्दी न्यूज़ चैनलों पर चीन, जापान और कोरिया की बुलेट ट्रेनों का नज़ारा देख सके। जिनमें आपको छठ दीवाली के मौके पर बोरा और बक्सा लेकर घुसने की कोई गुंज़ाइश नज़र नहीं आई होगी। बुलेट ट्रेन की इन परिकथाओं से हो सकता है कि आप यह मान बैठें कि एक हमारी ही रेल है जो सबसे गई गुज़री है।

अगर होती तो कैसे ऑस्ट्रेलिया की पूरी आबादी के बराबर रोज़ दो करोड़ तीस लाख से ज्यादा यात्रियों को यहां से वहां पहुंचा देती। इंडिया एंड भारत यू बोथ शूड थिंक अटलिस्ट! 30 लाख टन माल की लदाई ढुलाई कर देती है। ऐसा रिकॉर्ड भारत के साथ चीन, रूस और अमेरिका का ही है। इसके अलावा तेरह लाख कर्मचारियों को नौकरी भी देती है, वह भी तब जब कमाती एक रुपया है और खर्चा 94 पैसा कर देती है।

ज़रूर कई कमियां हैं भारतीय रेल की, मगर एक बुलेट ट्रेन के न होने से यह इतनी भी गई गुज़री नहीं है कि कल से आप सामान्य ट्रेनों में चलते हुए कोफ्त करने लगे और प्लग में चाजर्र ऐसे ठूंस मारे कि टूट ही जाए। आप जिम्मेदार यात्रियों के लिए रेलवे अगर शौचालय में मग को शिकंजे से बांध कर न रखे तो रोज़ मग गायब होने के आरोप में रेलमंत्री से इस्तीफा मांगा जाने लगेगा। चीन में बुलेट ट्रेन इतनी महंगी है कि आप सोच नहीं सकते, लोग भी कम चलते हैं।

वैसे किसी अथर्शास्त्री को इस बात के लिए नोबेल पुरस्कार नहीं मिला है कि बुलेट ट्रेन आने से अर्थव्यवस्था चमक जाती है। उन देशों में भी आर्थिक संकट आया है, जहां ये ट्रेनें चलती हैं। हमारे रेलमंत्री ने बुलेट ट्रेन के लिए कोई समय सीमा नहीं दी है, मगर जिस एकमात्र अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन की बात कही है, सिर्फ उसे बनाने और चलाने के लिए 60,000 करोड़ रुपये लगेंगे। इतना आप किसानों का कर्ज़ा माफ करके देखिये वे अपने बुलेट से चलने लगेंगे।

मुझे गूगल पूर्व काल की जानकारी नहीं है, परंतु गूगल पश्चात यानी पोस्ट गूगल के भग्नावशेषों से मिले प्रस्तरों से पता चलता है कि बुलेट ट्रेन की कल्पना वाजपेयी सरकार के समय से की जा रही है और इस क्रम में पूर्व रेल मंत्री नीतीश कुमार और पूर्व राज्य मंत्री दिवंगत दिग्विजय सिंह के नाम मिलते हैं। पांच छह साल पुराने अखबार की कतरन से पता चला कि सिर्फ ट्रैक और स्टेशन बनाने का खर्चा 50 हज़ार करोड़ का है। इतने पैसे में न जाने कितनी राजधानी चल जाएगी।

जापान के बुलेट ट्रेन की यात्रा नरेंद्र मोदी से पहले लालू प्रसाद यादव भी कर चुके हैं। नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में ज़रूर कहा कि ये देश का दुर्भाग्य है कि हम बुलेट ट्रेन नहीं चला सकते। यह बहुत अच्छा है कि अब हम अपने दुर्भाग्य की सीमा बुलेट ट्रेन तक ले जा चुके हैं, मगर रेलमंत्री जिस हाई स्पीड रेल की बात कर रहे हैं कि उसका भी ज़िक्र हमें गूगल के शिलालेखों में मिलता है कि लालू यादव, ममता बनर्जी और पवन बंसल के कालखंड में भी इसे लेकर सर्वे हुआ है।

मैं यह नहीं कह रहा है कि बीजेपी जो कह रही है नया नहीं है। बल्कि यह कहना चाह रहा हूं कि बीजेपी या मोदी सरकार इसे एक दिन या कम से कम एक साल में पूरा नहीं कर सकती। वैसे भी मुंबई-अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन को लेकर सर्वे ही हो रहा है। शिलान्यास तो दूर की बात है। सबकुछ अगले एक साल में हो भी गया तो इस बुलेट ट्रेन को चलते-चलते अगला चुनाव आ सकता है।

मतलब बुलेट ट्रेन उस तरह से नहीं आने वाली है, जिस तरह से रेलमंत्री अपने बजट भाषण में पैसेंजर से लेकर एक्सप्रेस ट्रेनों की घोषणा कर देते हैं। ऐसा भी नहीं है कि सरकार ने रफ्तार बढ़ाने का प्रयास छोड़ दिया है। रेल मंत्री ने कहा है कि सरकार 9 रूट पर 160 से 200 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन चलाने पर विचार कर रही है।

साल 2006 में ही आगरा दिल्ली रूट पर 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से परीक्षण हुआ था, मगर 2014 तक कुछ नहीं हुआ। नई सरकार ने महीने डेढ़ महीने में आगरा दिल्ली ट्रैक पर 160 किमी प्रति घंटे से चलाकर परीक्षण कर लिया। परीक्षण में जिस ट्रेन का इस्तमाल हुआ, उसमें 12 कोच थे और एक ईंजन। ज्यादा यात्रियों को ले जाने के लिए अगर 18 या 22 कोच की ज़रूरत हुई तो दो ईंजन की ज़रूरत हो सकती है। लालू यादव ने इसी टेक्निक से माल गाड़ियों की भार क्षमता बढ़ा दी थी।

अरुण जेटली ने कहा है कि जो सेवा आप लेते हैं, उसके लिए भुगतान भी करने पड़ेंगे। मेट्रो रेल के लिए एक किमी का ट्रैक बिछाने में 200 करोड़ की लागत आती है, फिर भी केंद्र से लेकर राज्य सरकारें पीछे नहीं हटतीं। अब गांव कस्बों के लोग नज़र रखें कि उन्हें हाई स्पीड ट्रेन का लाभ मिलता है या मिडिल क्लास वालों के रूट को। आपका ये एंकर तो ज़रूर चाहेगा कि आप अपनी बकरी और टोकरी लेकर बुलेट ट्रेन में मेरे साथ चल सकें।

सदानंद गौड़ा ने कहा है कि पिछली सरकार के निणर्य पर चलते हुए हर छह महीने में रेलवे का किराया बढ़ता रहेगा। यानी रेल किराया का विरोध करने वाले छह महीने बाद दोबारा सड़कों पर आ सकते हैं। रेलवे को पैसा चाहिए।

पिछली सरकार के स्वर्णिम चतुर्भुज नेटवर्क को पूरा करने के लिए ही 9 लाख करोड़ चाहिए। बीजेपी भी डायमंड चतुर्भुज बनाना चाहती है। तो क्या निजीकरण ही रास्ता बचा है या हवाई अड्डों की तरह पीपीपी मॉडल चल सकता है। पर कहीं यहां टोल टैक्स हटाओ टाइप आंदोलन न चलने लगे। वैसे भी रेलवे में पहले से ही अलग अलग तरीके से निजीकरण जारी है।

जम्मू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निजी साझेदारी के बारे में सावर्जनिक बयान दिया था। रेलमंत्री ने सदन में कहा कि पिछले दस साल में 60,000 करोड़ रुपये मूल्य की 99 नई लाइन परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई थी, जिनमें आज की तारीख तक मात्र एक परियोजना को ही पूरा किया गया है। दस सालों में 359 ऐसी परियोजनाएं बची रह गई हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए 1 लाख 82 हज़ार करोड़ रुपये चाहिए। क्या रेलमंत्री ने पुरानी परियोजनाओं को खत्म करने का साहसिक कदम उठाएंगे।

रेल मंत्री ने भी साफ साफ कहा है कि रेल की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए न तो रेलवे के पास पर्याप्त पैसा है न सरकार के पास। इसलिए रेल सेक्टर में एफडीआई की अनुमति के लिए रेल मंत्रालय को मंत्रिमंडल का अनुमोदन चाहिए।

आपको याद होगा कि जब खुदरा बाज़ार में यूपीए सरकार एफडीआई लाने के लिए कानून बना रही थी, तब बीजेपी ने कितना घनघोर विरोध किया था. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बीजेपी सारे सेक्टर में एफडीआई के खिलाफ थी या है। डिफेंस के बाद रेल। रेल मंत्री ने सदन में कहा है कि मैं ईमानदारी से सही दिशा में कार्रवाई करने का प्रयास करूंगा। बड़ी संख्या में भावी परियोजनाओं को पीपीपी यानी सरकार और निजी कंपनियों की साझीदारी से पूरा करने का हमारा लक्ष्य है, जिसमें हाई स्पीड रेल शामिल हैं, जिसके लिए भारी निवेश की आवश्यकता है।

यह कम बड़ी बात नहीं है कि बुलेट ट्रेन के न होने पर भी हमारी रेल घाटे में नहीं है। उसके पास पर्याप्त पैसा ज़रूर नहीं है, मगर कोई तो इसे ढंग से चला ही रहा है कि यह अभी बर्बादे गुलिस्तां की दास्तान नहीं बन सकी है।

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