स्कूटर पर घूमते हुए टीकमगढ़ के सांसद डॉ वीरेंद्र कुमार जिन्हें मोदी कैबिनेट में राज्यमंत्री बनाया गया है.
भोपाल:
मध्यप्रदेश में सागर के रहने वाले और वर्तमान में टीकमगढ़ के सांसद डॉ वीरेन्द्र कुमार मंत्री बने तो सोशल मीडिया पर उनके हरे स्कूटर की तस्वीर भी घूमने लगी. गले में गमछा लपेटे लेकिन बगैर हेलमेट के. खैर छोटे शहरों में बड़े शहरों के कानून नहीं चलते. सागर और टीकमगढ़ की सड़कों में नेताजी की एक पहचान स्कूटर की सवारी भी है... अब हेलमेट पहन लें तो फिर पहचानेगा कौन.
बहरहाल मोदीजी के मंत्रिमंडल में मंत्री बनने के बाद सुर्खियां हैं कि चाय वाले के प्रधानमंत्री बनने के बाद पंचर बनाने वाला मंत्री बना है. वंशवाद की बहस में ऐसे लोगों का राजनीति में आना, फिर मंत्री बनना, लोकतंत्र में सुखद अहसास तो देता ही है सो उनकी कहानी मंत्री बनने के बाद चल निकली है. खटीक पहली बार 1996 में सागर से सांसद बने.
यह भी पढ़ें : जेपी के आंदोलन के दौरान 16 माह जेल में रहे वीरेंद्र कुमार; छह बार से सांसद, अब बने मंत्री
वीरेंद्र कुमार ने बचपन में परिवार के भरण-पोषण के लिए पिता के साथ साइकिल की दुकान पर पंक्चर भी बनाया. इस दौरान पढ़ाई भी चलती रही. सागर यूनिवर्सिटी से एमए किया, बाल श्रम में पीएचडी भी. सुना है अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे के दौरान कोई पंक्चर सुधारता हुआ मिलता है, तो वो तुरंत उसके पास पहुंच जाते हैं. कई बार काम में उसकी मदद कर देते हैं, तो कभी पंक्चर बनाने के टिप्स देने लग जाते हैं. ये नहीं पता कि कोई बाल श्रमिक वहां काम करता मिलता है तो वे क्या करते हैं.
वीरेंद्र कुमार पुराने स्कूटर पर तो वो बगैर किसी तामझाम और सुरक्षा गार्ड के ही नजर आते हैं, वैसे उनके पास स्कॉर्पियो भी है. हालांकि मंत्री बनने के बाद उनका स्कूटर शायद घर में पड़ा रहे, या फिर वो यूं ही बाहर निकलें पता नहीं. मंत्री बने हैं, तो उनकी सादगी, शिक्षा और दलित होने को भी वजह बताया जा रहा है. लेकिन 6 बार सांसद कोई सिर्फ पहचान से तो बनता नहीं. जाहिर है कुछ काम भी रहे होंगे. इलाके में चौपाल लगाकर जनता की समस्याएं सुनने का श्रेय भी खटीक को है.
कुछ ऐसी ही छवि कांग्रेस के प्रदीप जैन आदित्य की थी. वे झांसी के गली-मोहल्लों में स्कूटर से घूमते थे. बुंदेलखंड में घूमते कांग्रेस के युवराज की नज़र आदित्य पर पड़ी तो पहली ही बार में सांसद और फिर मंत्री बन गए. वे बुंदेलखंड में कांग्रेस के चेहरे के रूप में उभरे और उन्हें ग्रामीण विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली. स्कूटर छोड़ा लालबत्ती में घूमे लेकिन तीन साल बाद स्थिति ऐसी बनी की पार्टी ने राज्य में स्टार प्रचारकों की सूची तक में नहीं रखा. चुनाव भी हार गए. उनके सामने उमा भारती थीं.
महाराष्ट्र के हैवीवेट नितिन गडकरी जो सड़क मंत्रालय संभालते हैं, नागपुर में वे भी स्कूटर से संघ मुख्यालय पहुंच जाते हैं. कई बार उनकी तस्वीरें भी आम हुई हैं. ये और बात है कि वे करोड़ों की कंपनी के मालिक हैं.
VIDEO : कैबिनेट में तीसरा फेरबदल
वैसे अब लालबत्ती तो नहीं मिलेगी, माननीय हूटर लगा सकते हैं. स्कूटर में हूटर थोड़ा अजीब लगेगा, चाहें तो चारपहिया में घूमें लेकिन पैर जमीन पर ही रहें. नहीं तो जनता सारे पहिए निकालकर पैदल चलने को मजबूर कर देती है.
बहरहाल मोदीजी के मंत्रिमंडल में मंत्री बनने के बाद सुर्खियां हैं कि चाय वाले के प्रधानमंत्री बनने के बाद पंचर बनाने वाला मंत्री बना है. वंशवाद की बहस में ऐसे लोगों का राजनीति में आना, फिर मंत्री बनना, लोकतंत्र में सुखद अहसास तो देता ही है सो उनकी कहानी मंत्री बनने के बाद चल निकली है. खटीक पहली बार 1996 में सागर से सांसद बने.
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वीरेंद्र कुमार ने बचपन में परिवार के भरण-पोषण के लिए पिता के साथ साइकिल की दुकान पर पंक्चर भी बनाया. इस दौरान पढ़ाई भी चलती रही. सागर यूनिवर्सिटी से एमए किया, बाल श्रम में पीएचडी भी. सुना है अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे के दौरान कोई पंक्चर सुधारता हुआ मिलता है, तो वो तुरंत उसके पास पहुंच जाते हैं. कई बार काम में उसकी मदद कर देते हैं, तो कभी पंक्चर बनाने के टिप्स देने लग जाते हैं. ये नहीं पता कि कोई बाल श्रमिक वहां काम करता मिलता है तो वे क्या करते हैं.
वीरेंद्र कुमार पुराने स्कूटर पर तो वो बगैर किसी तामझाम और सुरक्षा गार्ड के ही नजर आते हैं, वैसे उनके पास स्कॉर्पियो भी है. हालांकि मंत्री बनने के बाद उनका स्कूटर शायद घर में पड़ा रहे, या फिर वो यूं ही बाहर निकलें पता नहीं. मंत्री बने हैं, तो उनकी सादगी, शिक्षा और दलित होने को भी वजह बताया जा रहा है. लेकिन 6 बार सांसद कोई सिर्फ पहचान से तो बनता नहीं. जाहिर है कुछ काम भी रहे होंगे. इलाके में चौपाल लगाकर जनता की समस्याएं सुनने का श्रेय भी खटीक को है.
कुछ ऐसी ही छवि कांग्रेस के प्रदीप जैन आदित्य की थी. वे झांसी के गली-मोहल्लों में स्कूटर से घूमते थे. बुंदेलखंड में घूमते कांग्रेस के युवराज की नज़र आदित्य पर पड़ी तो पहली ही बार में सांसद और फिर मंत्री बन गए. वे बुंदेलखंड में कांग्रेस के चेहरे के रूप में उभरे और उन्हें ग्रामीण विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली. स्कूटर छोड़ा लालबत्ती में घूमे लेकिन तीन साल बाद स्थिति ऐसी बनी की पार्टी ने राज्य में स्टार प्रचारकों की सूची तक में नहीं रखा. चुनाव भी हार गए. उनके सामने उमा भारती थीं.
महाराष्ट्र के हैवीवेट नितिन गडकरी जो सड़क मंत्रालय संभालते हैं, नागपुर में वे भी स्कूटर से संघ मुख्यालय पहुंच जाते हैं. कई बार उनकी तस्वीरें भी आम हुई हैं. ये और बात है कि वे करोड़ों की कंपनी के मालिक हैं.
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वैसे अब लालबत्ती तो नहीं मिलेगी, माननीय हूटर लगा सकते हैं. स्कूटर में हूटर थोड़ा अजीब लगेगा, चाहें तो चारपहिया में घूमें लेकिन पैर जमीन पर ही रहें. नहीं तो जनता सारे पहिए निकालकर पैदल चलने को मजबूर कर देती है.
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