गांधी बनने के लिए कई जन्मों की तपस्या करनी पड़ती है। चरख़ा कातने की ऐक्टिंग करने से कोई गांधी नहीं बन जाता, बल्कि उपहास का पात्र बनता है https://t.co/rIDqQM3IUW
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) January 12, 2017
ट्विटर यूज़र @shaikhlalshaikh लिखते हैं कि खादी के ब्रांड एम्बेसेडर सिर्फ बापू हैं और हमेशा रहेंगे. वहीं, मधुमिता लिखती हैं कि 'क्या चरखे के पीछे बैठकर गांधी की नकल करने से कोई गांधी बन जाता है.'
खादी के ब्रैंड अम्बिसेडर सिर्फ बापू हैं और हमेशा बापू ही रहेंगे #KhadiCalendar
— shaikhlal shaikh (@ShaikhlalSakal) January 13, 2017
If only sitting behind a Charkha imitating Gandhi could make one Gandhi! #KhadiCalendar
— Madhumita (@madhuchak) January 13, 2017
ट्विटर यूज़र राजीव मलिक ने लिखा है -
वैसे अपने नाम के सूट और चरखा चलाते चित्र जैसे बेवजह के विवादों से देश के प्रधानमंत्री को निश्चित रूप से बचना चाहिए ! #KhadiCalendar
— rajiv malik (@rajivhtc) January 13, 2017
वहीं कुछ लोग इस फैसले का बचाव करते हुए भी नज़र आए -
#KhadiCalendar : पिछले 4 साल से डायरी पर गांधी जी नहीं छपे , तब किसी का ध्यान नहीं गया। कुछ लोगों को गांधी कैलेंडर में ही अच्छे लगते हैं।
— snehanshu shekhar (@snehanshus) January 13, 2017
वहीं कैलेंडर पर चुटकी लेने वाले भी कम नहीं हैं. वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी लिखते हैं -
चरखे के बाद प्रधानमंत्री का अगला पोज़ क्या होगा - (खानदानी नाम से सज्जित) लंगोट?
— Om Thanvi (@omthanvi) January 13, 2017
For a change, khadi calendar is trending instead of Kingfisher calendar#KhadiCalendar #Kingfishercalendar2017 #Namo
— pallavi (@paree7dec) January 13, 2017
He came. He saw. He sat down. #KhadiCalendar
— Dayananda A (@bavalimanava) January 13, 2017
वहीं केवीआईसी में काम करने वाले लोग, सरकारी कर्मचारी होने की वजह से खुलकर कुछ नहीं कह पा रहे लेकिन गुरुवार को लंच के समय उन्होंने खाना न खाकर अपना विरोध दर्ज किया.
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