
नई दिल्ली:
यदि विधि आयोग की सिफारिशें मानी गई तो ऐसे माता-पिता को एक साल की जेल की सजा हो सकती है जो अपने वैवाहिक संबंध में आई खटास के बाद अपने बच्चे को जबरन विदेश ले जाते हैं.
‘अभिभावकीय अपहरण’ पर प्रस्तावित कानून के मसौदे में आयोग ने कहा है, ‘‘जब ऐसी विविध परिवार इकाई टूटती है तो बच्चे (कभी-कभी नवजात) मुश्किलों का सामना करते हैं, क्योंकि वे अपने माता-पिता के बीच की अंतरराष्ट्रीय कानूनी लड़ाई में घसीट लिए जाते हैं.’’
गौरतलब है कि विधि आयोग कानूनी सुधारों पर सरकार को सलाह देने वाली संस्था है.
साल 2009 में ‘अभिभावकीय अपहरण’ के मुद्दे पर विचार कर चुके आयोग ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से तैयार किए गए विधेयक के मसौदे को फिर से लिखा है. आयोग ने मसौदे को फिर से तब लिखा जब फरवरी में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इसे ‘‘परिवारों में अंतर-देशीय, अंतर-अभिभावकीय बच्चे के अलगाव में शामिल कई मुद्दों’’ के परीक्षण के लिए कहा.
आयोग ने कहा कि पति-पत्नी से बच्चों के अलगाव को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण कहा जा सकता है क्योंकि माता-पिता ही अदालत के आदेशों का उल्लंघन कर बच्चों का अपहरण कर लेते हैं और उन्हें भारत या किसी अन्य देश ले जाते हैं.
विधि आयोग ने सिफारिश की है कि यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे को खुद या किसी अन्य व्यक्ति के जरिए माता या पिता के पास से बच्चे को ले जाता है या उसे अपने पास रख लेता है, उसे एक साल तक की जेल की सजा या 10,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.
बच्चे के ठिकाने से जुड़ी सूचना को छुपाने या तथ्यों को जानबूझकर तोड़-मरोड़कर पेश करने वालों को तीन महीने तक की जेल की सजा या 5,000 रुपये तक जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है. विधेयक के मसौदे में एक केंद्रीय प्राधिकरण के गठन का भी प्रस्ताव है ताकि गलत तरीके से अपने माता या पिता से अलग किए गए बच्चे के ठिकाने का पता लगाया जा सके.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
‘अभिभावकीय अपहरण’ पर प्रस्तावित कानून के मसौदे में आयोग ने कहा है, ‘‘जब ऐसी विविध परिवार इकाई टूटती है तो बच्चे (कभी-कभी नवजात) मुश्किलों का सामना करते हैं, क्योंकि वे अपने माता-पिता के बीच की अंतरराष्ट्रीय कानूनी लड़ाई में घसीट लिए जाते हैं.’’
गौरतलब है कि विधि आयोग कानूनी सुधारों पर सरकार को सलाह देने वाली संस्था है.
साल 2009 में ‘अभिभावकीय अपहरण’ के मुद्दे पर विचार कर चुके आयोग ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से तैयार किए गए विधेयक के मसौदे को फिर से लिखा है. आयोग ने मसौदे को फिर से तब लिखा जब फरवरी में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इसे ‘‘परिवारों में अंतर-देशीय, अंतर-अभिभावकीय बच्चे के अलगाव में शामिल कई मुद्दों’’ के परीक्षण के लिए कहा.
आयोग ने कहा कि पति-पत्नी से बच्चों के अलगाव को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण कहा जा सकता है क्योंकि माता-पिता ही अदालत के आदेशों का उल्लंघन कर बच्चों का अपहरण कर लेते हैं और उन्हें भारत या किसी अन्य देश ले जाते हैं.
विधि आयोग ने सिफारिश की है कि यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे को खुद या किसी अन्य व्यक्ति के जरिए माता या पिता के पास से बच्चे को ले जाता है या उसे अपने पास रख लेता है, उसे एक साल तक की जेल की सजा या 10,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.
बच्चे के ठिकाने से जुड़ी सूचना को छुपाने या तथ्यों को जानबूझकर तोड़-मरोड़कर पेश करने वालों को तीन महीने तक की जेल की सजा या 5,000 रुपये तक जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है. विधेयक के मसौदे में एक केंद्रीय प्राधिकरण के गठन का भी प्रस्ताव है ताकि गलत तरीके से अपने माता या पिता से अलग किए गए बच्चे के ठिकाने का पता लगाया जा सके.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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