
लालू प्रसाद यादव द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी में नीतीश कुमार (पीटीआई फोटो)
पटना:
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने दो सहयोगी दलों आरजेडी और कांग्रेस की आलोचनाओं के बावजूद यह साफ कर दिया है कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में वह प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के उम्मीदवार का समर्थन करेगी. नीतीश ने बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष के साझा उम्मीदवार खड़ा करने के प्रस्ताव के खिलाफ जाकर हुए घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी जेडीयू राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद का समर्थन करेगी, जो पिछले हफ्ते तक बिहार के राज्यपाल के पद पर थे.
बिहार की महागठबंधन सरकार में जेडीयू की सहयोगी पार्टियों - कांग्रेस और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी ने इसे लेकर साफ तौर पर अपनी नाखुशी जाहिर की. लालू ने तो नीतीश के फैसले को 'ऐतिहासिक भूल' तक करार दिया. लेकिन अपनी आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए नीतीश ने साफ कर दिया कि वह अपने फैसले पर कायम हैं. उन्होंने कहा, महागठबंधन बिहार तक ही सीमित है, इसलिए इसके घटक दल राष्ट्रीय मुद्दों पर अपना (अलग) स्टैंड तय करने के लिए स्वतंत्र हैं. नीतीश कुमार दरअसल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता सीपी जोशी के एक पुराने बयान का जिक्र कर रहे थे. 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों से पहले सीपी जोशी ने ऐसा ही बयान दिया था, जब उनसे सवाल किया गया था कि तीनों दल (कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू) अहम मुद्दों पर अपने विरोधों को कैसे दरकिनार कर पाएंगे.
कांग्रेस और आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने 17 जुलाई को वाम दलों के साथ मिलकर पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष का उम्मीदवार बनाने के वास्ते अपनी पार्टियों समेत 17 दलों को मनाने के प्रस्ताव पर काम किया था. हालांकि इसका नतीजा सिफर ही रहा. बीजेपी और इसके सहयोगी दलों ने क्षेत्रीय पार्टियों का समर्थन हासिल कर राष्ट्रपति चुनाव के लिए 63 फीसदी वोटों का जुगाड़ कर लिया है. नीतीश के विपक्ष का साथ छोड़ने के बाद तस्वीर और साफ हो गई.
नीतीश ने कोविंद के समर्थन की वजह बताते हुए कहा कि बिहार के राज्यपाल के रूप में उन्होंने बिना किसी पक्षपात के काम किया. उन्होंने कहा कि एक ऐसे व्यक्ति का समर्थन करने में उन्हें गर्व महसूस हो रहा है, जिसका बिहार से गहरा नाता रहा है.
नीतीश का यह तर्क लालू के उस दलील के जवाब में है, जिसमें वह बार-बार मीरा कुमार को 'बिहार की बेटी' बताते रहे हैं. मीरा कुमार पांच बार सांसद रह चुकी हैं और वह पूर्व उपप्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी हैं. कोविंद की तरह वह भी दलित हैं, इसी वजह से मायावती और शरद पवार जैसे विपक्षी नेताओं ने बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन नहीं दिया.
नीतीश ने मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाए जाने पर कहा, 'क्या बिहार की बेटी को हारने के लिए चुना गया है?' उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि क्या यह वही रणनीति है, जो विपक्ष 2019 के चुनावों के लिए अख्तियार करेगा.
हालांकि नीतीश, कांग्रेस और लालू सभी ने जोर देकर कहा है कि राष्ट्रपति चुनाव में टकराव का बिहार में गठबंधन पर असर नहीं पड़ने जा रहा है.
नीतीश कुमार ने साल 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद बीजेपी से 17 साल पुराना रिश्ता तोड़ लिया था. लेकिन बीते कुछ समय से दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के दो सबसे अहम फैसलों पर अपना समर्थन व्यक्त किया था. पीएम मोदी ने बिहार में शराबबंदी के नीतीश के फैसले की सराहना की तो नीतीश ने प्रधानमंत्री के नोटबंदी के निर्णय का खुलकर समर्थन किया. अब नीतीश ने यह संकेत दे दिया है कि वह पीएम मोदी से अपने पुराने बैर को भुला चुके हैं. वह अपने सहयोगी दलों के गुस्से से डरने वाले नहीं हैं. अगर नीतीश अपने मौजूदा साथियों से रिश्ता तोड़ने का फैसला करते हैं, तो ऐसी स्थिति में बीजेपी के पास पर्याप्त विधायक हैं, जिनके दम पर वह मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं.
ऐसी स्थिति में यह तो साफ है कि लालू या कांग्रेस दोनों में से कोई भी गठबंधन का अंत नहीं चाहेंगे. भ्रष्टाचार के मामलों में लालू के परिवार के सदस्यों (उनके दो बेटे बिहार सरकार में मंत्री हैं) के खिलाफ जांच चल रही है और राजनीतिक सत्ता के दम पर उन्हें केस लड़ने में कुछ तो मदद मिलेगी. वहीं मौजूदा समय में कांग्रेस के पास गिने-चुने ही राज्य हैं, जहां वह सत्ता में शामिल है, इसलिए वह नहीं चाहेगी कि उसके हाथ से कोई राज्य छिन जाए.
लालू के बेटे और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा है कि पहले से यह मान लेना कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की हार होगी, गलत है. उन्होंने यह भी कहा कि चुनावी लड़ाई विचारधारा को लेकर है. उन्होंने अपने पिता के रुख को दोहराते हुए कहा कि बीजेपी के 'फासीवाद' के खिलाफ लड़ने के लिए विपक्षी दलों को आगे आना जरूरी है.
हालांकि नीतीश के करीबियों का कहना है कि दरअसल यह लालू यादव और अन्य लोग हैं, जो बीजेपी के असली मकसद को समर्थन दे रहे हैं. इसको और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि मीरा कुमार एक जाटव दलित हैं, जबकि रामनाथ कोविंद गैर-जाटव दलित हैं. यह वो तबका है जिसे बीजेपी लुभाने में सफल रही है. उनका कहना है कि बीजेपी ने इस तरह संकेत दे दिया है कि वह दलितों के एक उप-समूह का समर्थन कर रही है, जिसका झुकाव उसकी ओर है, जबकि विपक्ष ने प्रतिस्पर्धी उप-जाति से उम्मीदवार खड़ा कर एक भूल की है.
बीते शाम को नीतीश कुमार ने लालू यादव द्वारा आयोजित की गई इफ्तार पार्टी में शिरकत की. दोनों अगल- बगल ही बैठे थे और मुख्यमंत्री के विदा होने से पहले दोनों गले भी मिले. हो सकता है यह राष्ट्रपति चुनाव को लेकर पैदा हुई दूरी को कम करने का प्रयास रहा हो.
बिहार की महागठबंधन सरकार में जेडीयू की सहयोगी पार्टियों - कांग्रेस और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी ने इसे लेकर साफ तौर पर अपनी नाखुशी जाहिर की. लालू ने तो नीतीश के फैसले को 'ऐतिहासिक भूल' तक करार दिया. लेकिन अपनी आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए नीतीश ने साफ कर दिया कि वह अपने फैसले पर कायम हैं. उन्होंने कहा, महागठबंधन बिहार तक ही सीमित है, इसलिए इसके घटक दल राष्ट्रीय मुद्दों पर अपना (अलग) स्टैंड तय करने के लिए स्वतंत्र हैं. नीतीश कुमार दरअसल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता सीपी जोशी के एक पुराने बयान का जिक्र कर रहे थे. 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों से पहले सीपी जोशी ने ऐसा ही बयान दिया था, जब उनसे सवाल किया गया था कि तीनों दल (कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू) अहम मुद्दों पर अपने विरोधों को कैसे दरकिनार कर पाएंगे.
कांग्रेस और आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने 17 जुलाई को वाम दलों के साथ मिलकर पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष का उम्मीदवार बनाने के वास्ते अपनी पार्टियों समेत 17 दलों को मनाने के प्रस्ताव पर काम किया था. हालांकि इसका नतीजा सिफर ही रहा. बीजेपी और इसके सहयोगी दलों ने क्षेत्रीय पार्टियों का समर्थन हासिल कर राष्ट्रपति चुनाव के लिए 63 फीसदी वोटों का जुगाड़ कर लिया है. नीतीश के विपक्ष का साथ छोड़ने के बाद तस्वीर और साफ हो गई.
नीतीश ने कोविंद के समर्थन की वजह बताते हुए कहा कि बिहार के राज्यपाल के रूप में उन्होंने बिना किसी पक्षपात के काम किया. उन्होंने कहा कि एक ऐसे व्यक्ति का समर्थन करने में उन्हें गर्व महसूस हो रहा है, जिसका बिहार से गहरा नाता रहा है.
नीतीश का यह तर्क लालू के उस दलील के जवाब में है, जिसमें वह बार-बार मीरा कुमार को 'बिहार की बेटी' बताते रहे हैं. मीरा कुमार पांच बार सांसद रह चुकी हैं और वह पूर्व उपप्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी हैं. कोविंद की तरह वह भी दलित हैं, इसी वजह से मायावती और शरद पवार जैसे विपक्षी नेताओं ने बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन नहीं दिया.
नीतीश ने मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाए जाने पर कहा, 'क्या बिहार की बेटी को हारने के लिए चुना गया है?' उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि क्या यह वही रणनीति है, जो विपक्ष 2019 के चुनावों के लिए अख्तियार करेगा.
हालांकि नीतीश, कांग्रेस और लालू सभी ने जोर देकर कहा है कि राष्ट्रपति चुनाव में टकराव का बिहार में गठबंधन पर असर नहीं पड़ने जा रहा है.
नीतीश कुमार ने साल 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद बीजेपी से 17 साल पुराना रिश्ता तोड़ लिया था. लेकिन बीते कुछ समय से दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के दो सबसे अहम फैसलों पर अपना समर्थन व्यक्त किया था. पीएम मोदी ने बिहार में शराबबंदी के नीतीश के फैसले की सराहना की तो नीतीश ने प्रधानमंत्री के नोटबंदी के निर्णय का खुलकर समर्थन किया. अब नीतीश ने यह संकेत दे दिया है कि वह पीएम मोदी से अपने पुराने बैर को भुला चुके हैं. वह अपने सहयोगी दलों के गुस्से से डरने वाले नहीं हैं. अगर नीतीश अपने मौजूदा साथियों से रिश्ता तोड़ने का फैसला करते हैं, तो ऐसी स्थिति में बीजेपी के पास पर्याप्त विधायक हैं, जिनके दम पर वह मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं.
ऐसी स्थिति में यह तो साफ है कि लालू या कांग्रेस दोनों में से कोई भी गठबंधन का अंत नहीं चाहेंगे. भ्रष्टाचार के मामलों में लालू के परिवार के सदस्यों (उनके दो बेटे बिहार सरकार में मंत्री हैं) के खिलाफ जांच चल रही है और राजनीतिक सत्ता के दम पर उन्हें केस लड़ने में कुछ तो मदद मिलेगी. वहीं मौजूदा समय में कांग्रेस के पास गिने-चुने ही राज्य हैं, जहां वह सत्ता में शामिल है, इसलिए वह नहीं चाहेगी कि उसके हाथ से कोई राज्य छिन जाए.
लालू के बेटे और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा है कि पहले से यह मान लेना कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की हार होगी, गलत है. उन्होंने यह भी कहा कि चुनावी लड़ाई विचारधारा को लेकर है. उन्होंने अपने पिता के रुख को दोहराते हुए कहा कि बीजेपी के 'फासीवाद' के खिलाफ लड़ने के लिए विपक्षी दलों को आगे आना जरूरी है.
हालांकि नीतीश के करीबियों का कहना है कि दरअसल यह लालू यादव और अन्य लोग हैं, जो बीजेपी के असली मकसद को समर्थन दे रहे हैं. इसको और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि मीरा कुमार एक जाटव दलित हैं, जबकि रामनाथ कोविंद गैर-जाटव दलित हैं. यह वो तबका है जिसे बीजेपी लुभाने में सफल रही है. उनका कहना है कि बीजेपी ने इस तरह संकेत दे दिया है कि वह दलितों के एक उप-समूह का समर्थन कर रही है, जिसका झुकाव उसकी ओर है, जबकि विपक्ष ने प्रतिस्पर्धी उप-जाति से उम्मीदवार खड़ा कर एक भूल की है.
बीते शाम को नीतीश कुमार ने लालू यादव द्वारा आयोजित की गई इफ्तार पार्टी में शिरकत की. दोनों अगल- बगल ही बैठे थे और मुख्यमंत्री के विदा होने से पहले दोनों गले भी मिले. हो सकता है यह राष्ट्रपति चुनाव को लेकर पैदा हुई दूरी को कम करने का प्रयास रहा हो.
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