मथुरा:
भारत के विशाल रेलवे नेटवर्क में अक्सर यात्रियों को ख़राब खाने की शिकायत करते हुए देखा गया है लेकिन फास्ट फुड से जुड़ी कुछ नई सेवाएं शायद इस अनुभव में कुछ बदलाव लेकर आए. केनटकी फ्राइड चिकन से लेकर डोमिनोज़ पिज्ज़ा तक अलग अलग तरह के व्यंजन आजकल यात्रियों की पहुंच में आ चुके हैं, वो भी सिर्फ एक स्मार्टफोन एप के ज़रिए.
अमित वी जैसे यात्री के लिए इस तरह की सेवाएं मानो भगवान की भेजी हुई हैं क्योंकि वह सालों से ट्रेन का वह खाना खाकर थक गए थे जिसमें उन्हें बिल्कुल स्वाद नहीं आता था. पेशे से शिक्षक अमित 19 घंटे की यात्रा करके मथुरा से पश्चिम भारत की ओर जा रहे हैं. वह बताते हैं 'यह खाना रेलवे के खाने से 100 गुना ज्यादा बेहतर है.' मथुरा स्टेशन पर डिलीवरी करने वाले अमन सिंह बधौरी भीड़ को चीरते हुए अपने कस्टमर की सीट पर खाना पहुंचाते हैं और पेमेंट लेकर ट्रेन छूटने से एक मिनट पहले उतर जाते हैं.
हालांकि कुछ साल पहले यात्रियों के लिए खाने को लेकर इतने विकल्प मौजूद नहीं थे. खाने में कॉकरोच मिलने जैसी शिकायत जैसे काफी आम सी बात हो गई थी, यहां तक की एक अंदरूनी रिपोर्ट के लीक होने से यह बात भी सामने आई कि 'गंदी, बदबूदार और पानी से भरी पैंट्री कार' में खाना पकाया जाता है. एक मामले में तो समोसे को पोछा लगाने वाली बालटी में रखा देखा गया था.
यही नहीं खाने में विविधता की मांग भी बढ़ रही थी जिसमें यात्री अंतरराष्ट्रीय और फास्ट फूड खाने के साथ ही स्थानीय स्वाद को भी आज़माना चाह रहे थे. यह नई सेवा दरअसल भारत के उस रेलवे नेटवर्क को आधुनिक बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है जिसमें हर दिन दो करोड़ से ज्यादा लोग सफर करते हैं.
बता दें कि एशिया का यह सबसे पुराना रेल नेटवर्क दरअसल भारत के 100 करोड़ बीस लाख लोगों की जीवन रेखा है लेकिन पिछले कुछ दशकों से इसकी सेवाओं की काफी अनदेखी हो रही है. पिछले साल सरकार ने दस हज़ार करोड़ डॉलर से ज्यादा की एक पांच साल की आधुनिकीकरण योजना की घोषणा की थी जिसमें कुछ स्टेशनों पर गूगल के साथ मिलकर मुफ्त वाई फाई लगाना भी शामिल है.
पिछले साल भारतीय रेलवे ने केएफसी जैसी फूड चेन को ई-केटरिंग सेवाओं के लिए अनुबंधित करने के लिए न्यौता दिया था ताकि यात्री अहम स्टेशनों पर फोन या ऑनलाइन के जरिए पहले ही खाने का ऑर्डर दे सकें. रेल मंत्रालय के प्रवक्ता अनिल कुमार सक्सेना ने बताया कि अगला कदम प्रमुख स्टेशनों पर बेस किचन स्थापित करना होगा ताकि कंपनियां ताज़ा खाना पकाकर ट्रेनों में डिलेविरी दे सकें.
इस अवसर का लाभ कई निजी उद्यमी भी उठाना चाहते हैं जैसे कि पुषपिंदर सिंह जिन्होंने 2012 में अपनी पत्नी के साथ मिलकर (ट्रैवल खाना) की शुरूआत की थी. यह कंपनी स्टेशन के पास के रेस्त्रां के साथ अनुबंध करती है और फीस के बदले उनसे डिलीवरी सेवाएं लेती है.
सिंह ने बताया कि 'लंबे रूट की करीब 5000 ट्रेनें हैं जो औसतन 770 किलोमीटर का सफर करती हैं लेकिन इनमें से सिर्फ छह प्रतिशत ही ऐसी हैं जो खाने की अच्छी सेवाएं मुहैया करवा पाती हैं. हम इसी सेक्शन पर ध्यान दे रहे हैं.' हालांकि इन सेवाओं के सफल होने से पहले रफ्तार ही अहम भूमिका निभाएगी - डिलीवरी सेवाओं के पास सिर्फ कुछ ही मिनट होते हैं जिसमें उन्हें अपने कस्टमर को ढूंढकर ट्रेन के छूटने से पहले डिलीवरी देनी होती है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
अमित वी जैसे यात्री के लिए इस तरह की सेवाएं मानो भगवान की भेजी हुई हैं क्योंकि वह सालों से ट्रेन का वह खाना खाकर थक गए थे जिसमें उन्हें बिल्कुल स्वाद नहीं आता था. पेशे से शिक्षक अमित 19 घंटे की यात्रा करके मथुरा से पश्चिम भारत की ओर जा रहे हैं. वह बताते हैं 'यह खाना रेलवे के खाने से 100 गुना ज्यादा बेहतर है.' मथुरा स्टेशन पर डिलीवरी करने वाले अमन सिंह बधौरी भीड़ को चीरते हुए अपने कस्टमर की सीट पर खाना पहुंचाते हैं और पेमेंट लेकर ट्रेन छूटने से एक मिनट पहले उतर जाते हैं.
हालांकि कुछ साल पहले यात्रियों के लिए खाने को लेकर इतने विकल्प मौजूद नहीं थे. खाने में कॉकरोच मिलने जैसी शिकायत जैसे काफी आम सी बात हो गई थी, यहां तक की एक अंदरूनी रिपोर्ट के लीक होने से यह बात भी सामने आई कि 'गंदी, बदबूदार और पानी से भरी पैंट्री कार' में खाना पकाया जाता है. एक मामले में तो समोसे को पोछा लगाने वाली बालटी में रखा देखा गया था.
यही नहीं खाने में विविधता की मांग भी बढ़ रही थी जिसमें यात्री अंतरराष्ट्रीय और फास्ट फूड खाने के साथ ही स्थानीय स्वाद को भी आज़माना चाह रहे थे. यह नई सेवा दरअसल भारत के उस रेलवे नेटवर्क को आधुनिक बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है जिसमें हर दिन दो करोड़ से ज्यादा लोग सफर करते हैं.
बता दें कि एशिया का यह सबसे पुराना रेल नेटवर्क दरअसल भारत के 100 करोड़ बीस लाख लोगों की जीवन रेखा है लेकिन पिछले कुछ दशकों से इसकी सेवाओं की काफी अनदेखी हो रही है. पिछले साल सरकार ने दस हज़ार करोड़ डॉलर से ज्यादा की एक पांच साल की आधुनिकीकरण योजना की घोषणा की थी जिसमें कुछ स्टेशनों पर गूगल के साथ मिलकर मुफ्त वाई फाई लगाना भी शामिल है.
पिछले साल भारतीय रेलवे ने केएफसी जैसी फूड चेन को ई-केटरिंग सेवाओं के लिए अनुबंधित करने के लिए न्यौता दिया था ताकि यात्री अहम स्टेशनों पर फोन या ऑनलाइन के जरिए पहले ही खाने का ऑर्डर दे सकें. रेल मंत्रालय के प्रवक्ता अनिल कुमार सक्सेना ने बताया कि अगला कदम प्रमुख स्टेशनों पर बेस किचन स्थापित करना होगा ताकि कंपनियां ताज़ा खाना पकाकर ट्रेनों में डिलेविरी दे सकें.
इस अवसर का लाभ कई निजी उद्यमी भी उठाना चाहते हैं जैसे कि पुषपिंदर सिंह जिन्होंने 2012 में अपनी पत्नी के साथ मिलकर (ट्रैवल खाना) की शुरूआत की थी. यह कंपनी स्टेशन के पास के रेस्त्रां के साथ अनुबंध करती है और फीस के बदले उनसे डिलीवरी सेवाएं लेती है.
सिंह ने बताया कि 'लंबे रूट की करीब 5000 ट्रेनें हैं जो औसतन 770 किलोमीटर का सफर करती हैं लेकिन इनमें से सिर्फ छह प्रतिशत ही ऐसी हैं जो खाने की अच्छी सेवाएं मुहैया करवा पाती हैं. हम इसी सेक्शन पर ध्यान दे रहे हैं.' हालांकि इन सेवाओं के सफल होने से पहले रफ्तार ही अहम भूमिका निभाएगी - डिलीवरी सेवाओं के पास सिर्फ कुछ ही मिनट होते हैं जिसमें उन्हें अपने कस्टमर को ढूंढकर ट्रेन के छूटने से पहले डिलीवरी देनी होती है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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