मध्यप्रदेश में कोरोना वायरस (Coronavirus) से संक्रमित सबसे ज्यादा मरीज इंदौर में हैं, शहर में अभी तक कोरोना पीड़ित 27 मरीजों की मौत हो चुकी है. इंदौर में कोरोना की मृत्यु दर देश से तिगुनी है. एक और चौंकाने वाला मामला है इंदौर और भोपाल के कब्रिस्तानों में दफनाए जाने वाले शवों का सामने आया है. शवों की संख्या अप्रैल के शुरुआती दिनों में ही पूरे मार्च के बराबर है.
मध्यप्रदेश में कोरोना वायरस के 451 मामलों में इंदौर में कोरोना से संक्रमित 235 मरीज़ हैं. कोरोना संक्रमित लगभग 11 फीसद मरीज़ों की मौत हो चुकी है, जो राष्ट्रीय औसत से लगभग तिगुनी है. इससे भी ज्यादा चौंकाने वाले आंकड़े शहर के कब्रिस्तानों में दफन हो रहे लोगों के हैं.
इंदौर में छोटे-बड़े मिलाकर 10 से ज्यादा कब्रिस्तान हैं, लेकिन कंटेनमेंट जोन में तब्दील किए गए अल्पसंख्यक बहुल इलाके के कब्रिस्तानों के आंकड़ों पर गौर करें तो महू नाका कब्रिस्तान में 1 से 9 अप्रैल तक 64 शव दफन किए गए. खजराना में 34, सिरपुर में 29 और लुनियापुरा में 56, यानी कुल 183 शव महीने के नौ दिनों में दफन हुए. जबकि पूरे मार्च में इन कब्रिस्तानों में 130 जनाजे पहुंचे थे. फरवरी में 98 और जनवरी में 113 शवों को इन चार कब्रिस्तानों में दफन किया गया था.
इस राज़ को समझने के लिए हम खजराना कब्रिस्तान पहुंचे. रजिस्टर के पन्ने पलटे एंट्री में ज्यादातर लोगों की मौत की वजह बीपी, डाइबिटीज ही लिखी थी.इशराख खान वहां नायब सदर हैं. उन्होंने बताया कि ये आंकड़ा इसलिए बढ़ा है क्योंकि मोहल्लों में जो डॉक्टर हैं वे शुगर, बीपी भी नहीं देख रहे. उन्होंने क्लीनिक बंद कर रखे हैं. हमारी बस गुजारिश है कि किसी के यहां मैयत होती है तो वो छिपाएं नहीं इसकी वजह से कौम, समाज, देश का नुकसान है. कब्र खोदने का काम करने वाले रशीद शाह कहते हैं कि एक तारीख से संख्या बढ़ी है, एक दिन में 4-5 भी हो जाती है, 6 भी हो जाती है. कल दस मौतें हुई हैं. हम तो कब्र खोदकर दूर हो जाते हैं.
डॉक्टरों ने क्लीनिक बंद कर रखे हैं, ये एक वजह तो है, लेकिन कई परिजन मान रहे हैं जो अस्पताल खुले हैं वहां भी लोगों का आरोप है कि डॉक्टर मरीज को ठीक से देख तक नहीं रहे. अपने पिता का शव लेकर आए अफजल अंसारी कहते हैं कि अस्पताल में सारे मरीज़ों को कोरोना का ही मरीज़ मान रहे हैं. मेरे पिता को ऑक्सीजन की जरूरत थी वो भी कोई लगाने नहीं आया... किसी वार्ड ब्वॉय, किसी नर्स ने छुआ तक नहीं. उनके भाई अरशद अंसारी ने बताया मेरे पिता की तबियत डायबिटीज और ब्लडप्रेशर से बिगड़ रही थी, वेंटिलेशन की जरूरत थी, वो नहीं दिया. प्रोटोकॉल के हिसाब से घर नहीं ले जाने दिया जो गुसल और दफनाने को यहीं कब्रिस्तान में अरेंज किया.
इंदौर के कलेक्टर मनीष सिंह से जब इस मामले में हमने सवाल किया तो उन्होंने कहा कि मेरे संज्ञान में ये मामला आया है., लेकिन पिछले साल का आंकड़ा क्या था वो अभी है नहीं. पांच सालों से इसकी तुलना करनी पड़ेगी. फिलहाल इसके लिए वक्त नहीं है.
वैसे शहर के जूनी इंदौर मुक्तिधाम में आम दिनों की तरह ही शवयात्रा पहुंच रही हैं. बहरहाल सरकार जांच करवाने की बात कह रही है लेकिन एक तथ्य ये भी है कि इन मृतकों में ज्यादातर की उम्र 50 से 70 वर्ष के बीच रही है और इंदौर में कोरोना संक्रमितों की मृत्यु दर ने सबको परेशानी में डाल रखा है. वैसे हम ये नहीं कह रहे कि सारे आंकड़ों का संबंध कोरोना से है लेकिन कंटेनमेंट जोन के इन क्रबिस्तानों में रोज दफन हो रही लाशों ने कुछ गंभीर सवाल तो खड़े किए ही हैं.
VIDEO : इंदौर में स्वास्थ्य विभाग मुस्तैद
(इंदौर से समीर खान के इनपुट के साथ)
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