
Lockdown: सोनाली पुरी पिछले दिनों जब मुंबई-जम्मू उड़ान पर सवार थी तो उसके मन में मशहूर फिल्म ‘‘कभी खुशी कभी गम'' का एक दृश्य घूम रहा था. इस दृश्य में शाहरुख खान अपनी मां को हैरत में डालने के लिए हेलीकाप्टर से उतरकर अचानक अपने घर पहुंचता है किंतु उसकी मां की ममता को अपने बेटे के आने का अंदाजा लग जाता है और वह दरवाजे पर पूजा की थाली लिए उसका इंतजार करती मिलती है. सोनाली पुरी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उसकी माँ दरवाजे खड़ी उसका इंतजार तो कर रही थी किंतु उनके हाथ में ‘ पूजा की थाली' के बजाय हैंड सेनिटाइजर था. हंसते हुए 37 वर्षीय पुरी ने कहा, ‘‘मेरी मां ने मुझसे कहा, अच्छी स्वच्छता कोरोना वायरस के इस दौर में एक आशीर्वाद के समान ही है.''
यह बात मार्च माह के मध्य की है, जिसके कुछ ही दिनों बाद 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन लग गया. पुरी का जम्मू में ही घर है जहां वह अभी भी है. अल्प अवकाश का यह समय अचानक माँ-बेटी के लिए फुर्सत में के लंबे दौर में बदल गया. सालों बाद दोनों को अपनी पुरानी यादों को साथ साथ फिर से जीने का अवसर मिला. इस दौरान इस मदर्स डे पर भी पुरी को घर पर रहने का मौका मिला है. पिछले कई वर्षों में शायद पहली बार पुरी इस दिन घर पर है.
पुरी ने कहा कि वह बहुत खुश है कि वह इस तनावपूर्ण लॉकडाउन अवधि में अपनी मां के साथ हैं.
उसने बताया, ‘‘मुझे याद भी नहीं है कि पिछले 10 वर्षों में अपनी माँ के साथ इतना समय कब बिताया था. हम कार्ड खेलते हैं, वह अभी भी बेइमानी करती हैं. पुरानी फिल्में देखी, खाना बनाया, गाने गांए, नाचे और निश्चित रूप से लड़ाई भी की. सब कुछ वही पुराने समय की तरह...सब कुछ बिल्कुल उसी तरह....''
पुरी ने कहा, ‘‘सबसे अच्छी बात यह है कि उसके आस-पास होने के कारण मैं फिर से बच्ची बन जाती हूं और मेरे साथ होने से वह फिर से एक छोटी बच्ची की माँ बन जाती है. यहां तक कि उनके होने से घर से काम करना भी तनावपूर्ण नहीं लगता.''
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को पहले तीन मई तक और फिर बाद में 17 मई तक बढ़ा दिया गया है और बाद में इसमें कुछ छूट भी दी गई. व्यक्ति की भले ही कोई आय, आयु या लिंग हो, लॉकडाउन के इन अनिश्चितता भरे सप्ताहों के दौरान अधिकतर व्यक्ति उनके साथ रहना चाहते हैं जिन पर वे सबसे अधिक भरोसा करते हैं. जब इंसान को कहीं आसरा नहीं मिलता है, कहीं कोई उम्मीद नहीं बचती है, तो घर ही उसका आखिरी सहारा होता है, इसी लिए संकट के इस दौर में लाखों लोग प्रवासी श्रमिक अपने घर पहुंचने के लिए बहुत ज्यादा जोखिम उठा रहे हैं और हर हाल में अपने घर पहुंचना चाहते हैं.
पुरी और उनके जैसे कई लोगों के लिए, घर वही है जहां परिवार हो, या शायद जहां बस माँ हो. दिल्ली के 27 वर्षीय वकील रमांश बिलावरिया का कहना है, ‘‘इस महामारी में के दौरान वह अपनी मां के लड़ैते बन गए हैं. उनका कहना है, ‘‘चाहे किराने सामान की खरीदारी हो, व्यंजनों की बात हो, विक्रेताओं के साथ मोलभाव करने की बात हो और यहां तक कि पहले झाड़़ू लगाना हो या पोंछा मारना हो.. ऐसी छोटी-छोटी बातें भी उन्हें मां से पूछनी पड़ती है.''
रमांश ने कहा, ‘‘मैं हाल ही में अपनी नौकरी के लिए नई दिल्ली में आया था. बस जब मुझे लगा कि मैं इस शहर में खुद को ढाल पा रहा हूं, तो शहर के साथ-साथ देश भी सुप्तावस्था में चला गया.'' उन्होंने कहा, ‘‘मैं गिनती करना भूल गया कि लॉकडाउन के दौरान मैंने अपनी माँ को कितनी बार फोन किया होगा. अगर मैं उसकी जगह होती तो फोन उठाना बंद कर देता. भगवान का शुक्र है, वह मेरी तरह नहीं है. मैंने उनसे अगली मुलाकात पर उन्हें स्पैनिश अंडे खिलाने का वादा किया है, यही एक डिश है जिसे मैंने उसकी मदद के बिना सीखा है.
हरियाणा की 35 वर्षीय एक शिक्षिका सिमी गुप्ता इस जुलाई में एक बच्चे की मां बनने जा रही हैं. गर्भावस्था के आखिरी दो महीनों में अपनी मां के साथ नहीं होना उसके लिए बहुत ही कष्टकर है. लेकिन यह वास्तविकता है और वह उसका मुकाबला कर रही हैं. उम्मीद है कि जल्द ही लॉकडाउन हट जाएगा और उनकी मां बच्चे के जन्म के समय आगरा से उसके पास आ सकेंगी. गुप्ता ने कहा, ‘‘एक बेटी को गर्भावस्था के दौरान अपनी माँ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. ऐसे में किसी काम या चीज को लेकर नहीं होती. उसकी मात्र उपस्थिति भर से सब चीजें अच्छी लगने लगती हैं. मेरे पति और मैं उनसे कई बार वीडियो कॉल पर बात करते हैं, बच्चे से जुड़ी हर चीज की जानकारी उनसे लेते हैं.''
सभी उम्र के पुरुषों और महिलाओं का यही कहना है, घर पर मां के साथ होना ही अपने आप में एक सुखद एहसास होता है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं