विज्ञापन
This Article is From Aug 06, 2021

Madhya Pradesh: शिवराज सरकार में प्रसूताओं को एंबुलेंस मुहैया नहीं, खाट पर तय करनी पड़ रही लंबी दूरी

मध्यप्रदेश में सरकारी सेवाओं का बुरा हाल है. गर्भवती महिलाओं के लिए एंबुलेंस सेवा तक मुहैया नहीं हो पा रही है. जर्जर सड़क पर गर्भवती महिलाओं को खाट पर लिटाकर अस्पताल तक ले जाना पड़ रहा है.

Madhya Pradesh: शिवराज सरकार में प्रसूताओं को एंबुलेंस मुहैया नहीं, खाट पर तय करनी पड़ रही लंबी दूरी
मध्यप्रदेश में एंबुलेंस सेवा का बुरा हाल.
भोपाल:

गांव-गांव तक सड़क, बिजली और शौचालय पहुंचाने का दावा करने वाली शिवराज सरकार में कई जिलों से प्रसूताओं को खाट पर ले जाने की तस्वीरें आम हैं. कहीं सड़क की वजह से जननी एक्सप्रेस नहीं पहुंच पाती, तो कहीं जननी एक्सप्रेस ही नहीं है. महामारी के दौर में भी एंबुलेंस को लेकर ये तस्वीरें बदली नहीं हैं, जबकि सबसे ज्यादा बजट स्वास्थ्य विभाग पर ही खर्च हो रहा है.

कुछ दिनों पहले बालाघाट के नकटाटोला गांव में एक आदिवासी प्रसूता महिला को खाट पर लिटाकर तीन किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी. प्रसव पीड़ा होने पर परिजनों ने एम्बुलेंस को सूचना दी, लेकिन हुडडीटोला से नकटाटोला के बीच तीन किलोमीटर तक सड़क थी ही नहीं. परिजन खाट में लिटाकर रजनी मरकाम को मुख्य मार्ग तक ले गये और फिर वो अस्पताल पहुंचीं. उनके पति सुनील मरकाम ने कहा एंबुलेंस को फोन लगाया था वो आ नहीं पाया कीचड़ था, कोई साधन नहीं था खटिया में ले गये मेन रोड तक वहां गाड़ी आई... 10-15 साल से रोड नहीं है. नकटाटोला गांव में बैगा आदिवासी रहते हैं. यहां सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य केन्द्र, राशन, आवास योजना, उज्जवला टाइप सारी चमचमाती सरकारी स्कीम मिट्टी में सनी नज़र आती हैं.

यहां रहने वाले सोनसिंह बैगा कहते हैं, यहां रोड कीचड़ से सन जाती है, कोई बीमार हो गया तो धीरे धीरे पैदल जाते हैं. पिछले साल ही अगस्त में बालाघाट के ही गणखेड़ा में एक आदिवासी बैगा तक जननी एक्सप्रेस नहीं पहुंच पाई और प्रसूता की डिलीवरी बैलगाड़ी में हुई जिसकी तस्वीरें सुर्खियों में रही थीं.

बालाघाट कलेक्टर दीपक आर्य ने कहा  ज्यादातार गांव जोड़े जा चुके हैं, कुछ गांव अगर बचे हैं तो यथाशीघ्र कारण पता करके तत्काल रोड बनाया जाएगा. ऐसी ही तस्वीरें 30 जुलाई को बड़वानी जिला मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर दूर अजराड़ा से आईं. यहां भी लोग मरीजों को कपड़े की झोली में डाल कर अस्पताल ले जाने को मजबूर हैं. गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं हैं, एंबुलेंस बुलाने के लिये भी 4 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.

वहां रहने वाले शिवराम नरगावे कहते हैं जिला के पास होने के बावजूद रोड नहीं बन पाया है. 23 जुलाई को बड़वानी जिले के खामघाट गांव में 20 साल की गर्भवती महिला को कपड़े में लेकर 8 किलोमीटर तक परिजनों को पैदल चलना पड़ा तब जाकर एंबुलेंस मिली थी. मध्यप्रदेश में संजीवनी-108 एंबुलेंस सेवाओं में 554 बीएलएस और 50 एडवांस्ड लाइफ सपोर्ट यानी एएलएस एंबुलेंस हैं. सितंबर से 1002 एंबुलेंस चलाने की योजना है जिससे शहरी क्षेत्र में अधिकतम 17 मिनट में, ग्रामीण क्षेत्रों में 27 मिनट में एंबुलेंस पहुंच जाएगी. फिलहाल शहरी इलाके में 20 मिनट और ग्रामीण इलाकों में ये सीमा 30 मिनट तय है, प्रसूताओं को घर से अस्पताल और अस्पताल से घर पहुंचाने के लिए अभी 820 एंबुलेंस चल रही हैं. योजना सितंबर तक 1050 एंबुलेंस चलाने की है.

डब्लूएचओ के मानकों के मुताबिक शहरी आबादी पर एक लाख लोगों पर एक एंबुलेंस, पहाड़ी और आदिवासी इलाकों में 70000 की आबादी पर एक एंबुलेंस होना चाहिये. मौजूदा उपलब्धता के आधार पर मध्यप्रदेश में लगभग 6 लाख लोगों पर एक एंबुलेंस है. हालांकि इन घोषणाओं के बावजूद हालात क्या हैं, इन तस्वीरों से साफ दिखता है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com