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This Article is From Aug 17, 2015

मोदी सरकार के तहत अकादमिक मामलों में काफी हस्तक्षेप : अमर्त्य सेन

मोदी सरकार के तहत अकादमिक मामलों में काफी हस्तक्षेप : अमर्त्य सेन
अमर्त्य सेन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा है कि मोदी सरकार के दौरान अकादमिक मामलों में सरकारी दखलअंदाजी 'असाधारण रूप से आम चीज' और अक्सर 'राजनीतिक रूप से अत्यधिक' हो गई है।

बहरहाल, उन्होंने कहा कि यह कोई पहला मौका नहीं है, जब किसी सरकार ने अकादमिक मामलों में अपने विचारों से हस्तक्षेप किया हो, क्योंकि पिछली यूपीए सरकार की गैर-दखलअंदाजी भी 'त्रुटिहीनता से काफी दूर' थी।

सेन ने अपनी नई किताब 'द कंट्री ऑफ फर्स्ट ब्वाय' में लिखा है, लेकिन मौजूदा सरकार के तहत दखलअंदाजी असाधारण रूप से आम और अक्सर राजनीतिक रूप से अत्यधिक हो गई है। सेन ने इस किताब में भारत के इतिहास और इसके भविष्य की मांगों को समझने की कोशिश की है।

वह लिखते हैं, ...और अक्सर, राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों की अध्यक्षता के लिए चुने गए लोग हिंदुत्व की प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के प्रति असाधारण रूप से प्रतिबद्ध रहे हैं।

इसके बाद वह भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के नवनियुक्त प्रमुख, सुदर्शन राव की मिसाल पेश करते हैं और कहते हैं कि भले ही वह इतिहास में शोध के लिए नहीं जाने जाते हों, उनका हिंदुत्व केंद्रित नजरिया जगजाहिर है। सेन कहते हैं कि इसी तरह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के नए मुखिया लोकेश चंद्रा ने हमसे अपना यह विचार साझा किया है कि मोदी वास्तव में 'ईश्वर के अवतार हैं।'

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित इस किताब में न्याय, शिनाख्त, गरीबी, गैर-बराबरी, लैंगिक राजनीति, शिक्षा, मीडिया और नालंदा विश्वविद्यालय की भी चर्चा की गई है। सेन ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार अनेक अकादमिक संस्थानों पर अपने विचार थोपने की कोशिश में सक्रिय रही है और नालंदा विश्वविद्यालय अकेली ऐसी संस्था नहीं है, जिसकी बौद्धिक स्वतंत्रता हाल के महीनों के दौरान खासे खतरे में है।

सरकार ने 30 मई को घोषणा की कि सिंगापुर के पूर्व विदेश मंत्री जार्ज येओ नालंदा विश्वविद्यालय के नए चांसलर होंगे। उससे तकरीबन दो महीना पहले सेन ने यह दावा करते हुए दूसरे कार्यकाल के लिए अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली कि मोदी सरकार नहीं चाहती कि वह अपने पद पर बने रहें।

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