नई दिल्ली:
सेना के उत्तरी कमांड में नियमों को ताकपर रखकर ऊंचे दाम कोट करने वाली कंपनियों को बिना जांच किए फ्रोजेन चिकेन सप्लाई का ठेका दे दिया गया है। सेना के पूर्व जनरल जवानों को फ्रोजेन चिकेन खिलाने के सख्त खिलाफ हैं और तीन सांसदों ने भी इस सिलसिले में रक्षा मंत्री को चिट्ठी लिखी है। हालांकि इस मसले पर सेना का कहना है कि ठेके से पहले सारी प्रक्रिया पूरी की गई और इस तरह के आरोप गलत मंशा और वेंडरों की आपसी दुश्मनी की वजह से लगाए जा रहे हैं।
रक्षा मंत्रालय ने पिछले साल सेना के पांच कमांड में फ्रोजेन चिकेन सप्लाई का एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जो एक साल के लिए था लेकिन इसी फैसले का गलत इस्तेमाल कर उत्तरी कमांड के लद्दाख और करगिल सेक्टर में भी फ्रोजेन चिकेन की सप्लाई शुरू हो गई। ऐसे मुश्किल इलाकों में फ्रोज़ेन चिकेन सप्लाई के लिए सेना ने अलग से मानक तय किए हैं जबकि उत्तरी कमांड ने हाल ही में तमिलनाडु की कंपनी सुगुना फूड्स के साथ जो शार्ट टर्म करार किया उसमें नियमों को ताक पर रख दिया गया।
उत्तरी कमांड ने 15 नवंबर से 14 दिसंबर तक के लिए चिकेन सप्लाई के लिए टेंडर मंगाया लेकिन टेंडर जमा करने के आखिरी दिन बाकी फर्मों को कहा गया कि एक महीने का टेंडर रद्द हो गया है। ऐसे में सुगुना फूड्स को ठेका कैसे मिला इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
सुगुना फूड्स के 117 रुपये प्रति किलो के टेंडर को मंजूरी मिली जबकि इन्ही शर्तो पर पश्चिमी कमांड को दूसरे सप्लायर सिर्फ 96 रुपये की रेट पर चिकेन सप्लाई कर रहे हैं। लिहाजा इस ठेके में सेना को करीब 28 लाख रुपयों का चूना लगा। कायदे से जिस कंपनी को ठेका दिया जाता है सेना के अफसर उसकी जांच करते हैं लेकिन सुगुना फूड्स को जांच से पहले ही फ्रोजेन चिकेन सप्लाई की इजाज़त मिल गई।
सुगुना फूड्स की फैक्टरी तमिलनाडु में है जिसे ठेका ऐसे वक़्त मिला जब कर्नाटक में बर्ड फ्लू की आशंका के चलते केरल ने तमिलनाडु से चिकेन मंगाने पर रोक लगा रखी है।
सुगुना फूड्स 100 फीसदी हलाल चिकेन तैयार करती है जबकि सेना में मजहब को लेकर बेहद एहतियात बरती जाती है और 80 फीसदी झटका चिकेन इस्तेमाल होता है।
उत्तरी कमांड के प्रमुख रह चुके लेफ्टिनेंट जनरल जसवाल का भी कहना है कि फ्रोजेन चिकेन लद्दाख और करगिल जैसे मुश्किल इलाकों के लिए मुफीद नहीं हैं।
इतना ही नहीं, जनरल जसवाल के मुताबिक निजी कंपनियों के हाथ सप्लाई की क्वालिटी और रखरखाव देकर सेना भारी गलती कर रही है।
पश्चिमी कमांड के प्रमुख रह चुके एक पूर्व जनरल भी जवानों को ताजा चिकेन की बजाय फ्रोजेन चिकेन देने के खिलाफ हैं। जनरल हूण सियाचिन की जंग में हिंदुस्तानी फौज़ के कमांडर थे और उनका कहना है कि उत्तरी कमांड में सिर्फ सियाचिन में ही फ्रोजेन चिकेन दिया जाना चाहिए बाकी इलाकों में नहीं।
सेना में फ्रोजेन चिकेन सप्लाई के खिलाफ तीन सांसदों ने भी रक्षा मंत्री एके एंटनी को खत लिखा है।
आंध्र प्रदेश से कांग्रेस सांसद सर्व सत्यनारायण इस फैसले के पीछे बड़ी कंपनियों की लॉबी को मानते हैं जबकि मध्यप्रदेश से सांसद गजेंद्र सिंह ने सेना को हो रहे नुकसान का सवाल उठाया है। बीजेपी सांसद शाहनवाज़ हुसैन ने इसे जवानों की सेहत के लिए नुकसानदेह बताया है।
सांसदों के खत के जवाब में रक्षा मंत्री ने मामले की जांच का भरोसा दिया है पर सवाल है कि इस दौरान जो जवान फ्रोजेन चिकेन खाएंगे उनकी सेहत की गारंटी कौन लेगा।
रक्षा मंत्रालय ने पिछले साल सेना के पांच कमांड में फ्रोजेन चिकेन सप्लाई का एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जो एक साल के लिए था लेकिन इसी फैसले का गलत इस्तेमाल कर उत्तरी कमांड के लद्दाख और करगिल सेक्टर में भी फ्रोजेन चिकेन की सप्लाई शुरू हो गई। ऐसे मुश्किल इलाकों में फ्रोज़ेन चिकेन सप्लाई के लिए सेना ने अलग से मानक तय किए हैं जबकि उत्तरी कमांड ने हाल ही में तमिलनाडु की कंपनी सुगुना फूड्स के साथ जो शार्ट टर्म करार किया उसमें नियमों को ताक पर रख दिया गया।
उत्तरी कमांड ने 15 नवंबर से 14 दिसंबर तक के लिए चिकेन सप्लाई के लिए टेंडर मंगाया लेकिन टेंडर जमा करने के आखिरी दिन बाकी फर्मों को कहा गया कि एक महीने का टेंडर रद्द हो गया है। ऐसे में सुगुना फूड्स को ठेका कैसे मिला इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
सुगुना फूड्स के 117 रुपये प्रति किलो के टेंडर को मंजूरी मिली जबकि इन्ही शर्तो पर पश्चिमी कमांड को दूसरे सप्लायर सिर्फ 96 रुपये की रेट पर चिकेन सप्लाई कर रहे हैं। लिहाजा इस ठेके में सेना को करीब 28 लाख रुपयों का चूना लगा। कायदे से जिस कंपनी को ठेका दिया जाता है सेना के अफसर उसकी जांच करते हैं लेकिन सुगुना फूड्स को जांच से पहले ही फ्रोजेन चिकेन सप्लाई की इजाज़त मिल गई।
सुगुना फूड्स की फैक्टरी तमिलनाडु में है जिसे ठेका ऐसे वक़्त मिला जब कर्नाटक में बर्ड फ्लू की आशंका के चलते केरल ने तमिलनाडु से चिकेन मंगाने पर रोक लगा रखी है।
सुगुना फूड्स 100 फीसदी हलाल चिकेन तैयार करती है जबकि सेना में मजहब को लेकर बेहद एहतियात बरती जाती है और 80 फीसदी झटका चिकेन इस्तेमाल होता है।
उत्तरी कमांड के प्रमुख रह चुके लेफ्टिनेंट जनरल जसवाल का भी कहना है कि फ्रोजेन चिकेन लद्दाख और करगिल जैसे मुश्किल इलाकों के लिए मुफीद नहीं हैं।
इतना ही नहीं, जनरल जसवाल के मुताबिक निजी कंपनियों के हाथ सप्लाई की क्वालिटी और रखरखाव देकर सेना भारी गलती कर रही है।
पश्चिमी कमांड के प्रमुख रह चुके एक पूर्व जनरल भी जवानों को ताजा चिकेन की बजाय फ्रोजेन चिकेन देने के खिलाफ हैं। जनरल हूण सियाचिन की जंग में हिंदुस्तानी फौज़ के कमांडर थे और उनका कहना है कि उत्तरी कमांड में सिर्फ सियाचिन में ही फ्रोजेन चिकेन दिया जाना चाहिए बाकी इलाकों में नहीं।
सेना में फ्रोजेन चिकेन सप्लाई के खिलाफ तीन सांसदों ने भी रक्षा मंत्री एके एंटनी को खत लिखा है।
आंध्र प्रदेश से कांग्रेस सांसद सर्व सत्यनारायण इस फैसले के पीछे बड़ी कंपनियों की लॉबी को मानते हैं जबकि मध्यप्रदेश से सांसद गजेंद्र सिंह ने सेना को हो रहे नुकसान का सवाल उठाया है। बीजेपी सांसद शाहनवाज़ हुसैन ने इसे जवानों की सेहत के लिए नुकसानदेह बताया है।
सांसदों के खत के जवाब में रक्षा मंत्री ने मामले की जांच का भरोसा दिया है पर सवाल है कि इस दौरान जो जवान फ्रोजेन चिकेन खाएंगे उनकी सेहत की गारंटी कौन लेगा।
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