फाइल फोटो
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व प्रमुख रंजीत सिन्हा के खिलाफ पद के दुरुपयोग के मामले में जांच होनी ही चाहिए।
रंजीत सिन्हा ने देश के दो सबसे बड़े घोटालों - मोबाइल नेटवर्क लाइसेंसों तथा कोयला ब्लॉकों के आवंटन - में आपराधिक षडयंत्र रचने तथा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों से अपने घर पर मुलाकातें की थीं।
सिन्हा पर आरोप है कि उन्होने पद पर रहते हुए न केवल कोयला घोटाले से जुड़े आरोपियों से मुलाकात की, बल्कि उनके साथ जांच से जुड़ी जानकारियां भी साझा कीं।
जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस एके सीकरी की पीठ ने इस मामले में 13 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। रंजीत सिन्हा ने दावा किया था कि इसके पीछे एक छिपा हुआ हाथ और इसके पीछे अधिवक्ता प्रशांत भूषण का दिमाग था। भूषण ने एक एनजीओ की तरफ से याचिका दायर की थी और सिन्हा पर कोयला घोटाला मामले में जांच को प्रभावित करने का आरोप लगाया था।
याचिका में एनजीओ कॉमन कॉज ने आरोप लगाया कि पूर्व सीबीआई निदेशक के विजिटर्स रजिस्टर में इंट्री ने साफ कर दिया कि वह हाई प्रोफाइल आरोपियों से मिल रहे थे। याचिका में यह भी कहा गया था कि अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच की आवश्यकता है, ताकि इस बात का पता लगाया जा सके कि क्या धन का लेन-देन हुआ। एनजीओ ने अपने आवेदन में कहा था कि चूंकि दिल्ली पुलिस के एंटी करप्शन ब्यूरो ने उसकी 25 नवंबर 2014 की शिकायत पर कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की, इसलिए रंजीत सिन्हा द्वारा सीबीआई के तत्कालीन निदेशक के तौर पर अपने अधिकार का कथित तौर पर दुरुपयोग करने की अदालत की निगरानी में जांच की आवश्यकता है।
(इनपुट्स एजेंसी से भी)
रंजीत सिन्हा ने देश के दो सबसे बड़े घोटालों - मोबाइल नेटवर्क लाइसेंसों तथा कोयला ब्लॉकों के आवंटन - में आपराधिक षडयंत्र रचने तथा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों से अपने घर पर मुलाकातें की थीं।
सिन्हा पर आरोप है कि उन्होने पद पर रहते हुए न केवल कोयला घोटाले से जुड़े आरोपियों से मुलाकात की, बल्कि उनके साथ जांच से जुड़ी जानकारियां भी साझा कीं।
जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस एके सीकरी की पीठ ने इस मामले में 13 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। रंजीत सिन्हा ने दावा किया था कि इसके पीछे एक छिपा हुआ हाथ और इसके पीछे अधिवक्ता प्रशांत भूषण का दिमाग था। भूषण ने एक एनजीओ की तरफ से याचिका दायर की थी और सिन्हा पर कोयला घोटाला मामले में जांच को प्रभावित करने का आरोप लगाया था।
याचिका में एनजीओ कॉमन कॉज ने आरोप लगाया कि पूर्व सीबीआई निदेशक के विजिटर्स रजिस्टर में इंट्री ने साफ कर दिया कि वह हाई प्रोफाइल आरोपियों से मिल रहे थे। याचिका में यह भी कहा गया था कि अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच की आवश्यकता है, ताकि इस बात का पता लगाया जा सके कि क्या धन का लेन-देन हुआ। एनजीओ ने अपने आवेदन में कहा था कि चूंकि दिल्ली पुलिस के एंटी करप्शन ब्यूरो ने उसकी 25 नवंबर 2014 की शिकायत पर कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की, इसलिए रंजीत सिन्हा द्वारा सीबीआई के तत्कालीन निदेशक के तौर पर अपने अधिकार का कथित तौर पर दुरुपयोग करने की अदालत की निगरानी में जांच की आवश्यकता है।
(इनपुट्स एजेंसी से भी)
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