केंद्रीय जांच ब्यूरो के पूर्व चीफ 68 साल के रंजीत सिन्हा का शुक्रवार का सुबह निधन हो गया. वो गुरुवार को ही कोविड से संक्रमित पाए गए थे. सीबीआई में उनके कार्यकाल के कुछ साल बहुत विवादस्पद रहे और वो कई मसलों को लेकर चर्चा में आते रहे थे. वो बिहार काडर के आईपीएस ऑफिसर थे और 1974 के बैच से थे.
2012 में उन्हें सीबीआई का चीफ बनाया गया था. इसके पहले वो इंडो-तिबतन पुलिस फोर्स, रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स और पटना सीबीआई में कई वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके थे.
सिन्हा ही उस वक्त सीबीआई चीफ थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय एजेंसी को 'अपने मालिक की बोली बोलने वाला पिंजरे का तोता' बताया था. सीबीआई पर सालों तक यह ठप्पा लगा रहा है. कोर्ट के इस आदेश पर सिन्हा ने कहा था कि 'सुप्रीम कोर्ट ने जो भी कहा है वो सही है.'
उनके खिलाफ शक्ति के दुरुपयोग के एक मामले पर जांच भी चली थी, जिसमें उनके खिलाफ आरोप लगा था कि उन्होंने निजी कंपनियों को कोल क्षेत्र के आवंटन में घूस दिए जाने के भ्रष्टाचार के एक मामले में जांच को रोकने की कोशिश की थी. यह मामला तब हुआ था, जब मनमोहन सिंह की सरकार थी.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने 2017 में अपने ही पूर्व बॉस पर केस रजिस्टर किया. उनपर कोल स्कैम मामलों में आरोपी के साथ अपने घर पर मीटिंगें करने का आरोप था.
वो एक और मामले को लेकर चर्चा में आए थे. उन्होंने आय से अधिक संपत्ति मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के खिलाफ एक क्लोजर रिपोर्ट को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था और फिर से जांच के आदेश दिए थे. हालांकि, बाद वो जांच भी बंद हो गई थी. उस वक्त 132 पन्नों की एक गुप्त जांच रिपोर्ट लीक हो गई थी और इस लीक के जांच के आदेश दिए गए थे.
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