आखिरकार वायुसेना में शामिल होगा स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमान

आखिरकार वायुसेना में शामिल होगा स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमान

तेजस लड़ाकू विमान।

नई दिल्ली:

वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने कहा है कि अगले साल से देश में बने युद्धक विमान तेजस को वायुसेना में शामिल किया जाने लगेगा। पहले यह कहा जा रहा था कि तेजस के शुरुआती संस्करण में कुछ खामियां हैं, खासकर मार्क-1 में। मगर अब वायुसेना ने साफ कर दिया है कि इन खामियों को जल्द दूर कर लिया जाएगा। इनको लेकर तेजस बनाने वाली कंपनी हिंदुस्तान एरोनेटिक्स लिमिटेड से वायुसेना की बात हो गई है। वायुसेना ने यह फैसला सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत भी लिया है।


अगले साल एचएएल सिर्फ चार तेजस वायुसेना को दे सकेगी
वायुसेना पहले चाहती थी कि सरकार फ्रांस से 36  रफाल के अलावा और भी रफाल खरीदे लेकिन सरकार ने वायुसेना की मांग ठुकरा दी और कहा कि वायुसेना एचएएल के साथ मिलकर तेजस की खामियां दूर करे। वायुसेना ने तेजस में मौजूद 51 खामियां गिनाईं। वायुसेना ने कहा है कि अगर तेजस मार्क 1 में एलसीए 43 खामियां ही दूर कर ले तो वह इसे लेने को तैयार है। वायुसेना ने कहा है कि इसके बाद वह 100 तेजस विमान ले सकती है। रक्षा मंत्रालय ने एचएएल से तेजस के निर्माण कार्य में प्राथमिकता के साथ तेजी लाने को कहा है। एचएएल को 2022 तक 40 तेजस वायुसेना को देने है और 2028 तक करीब 100 तेजस, लेकिन अभी जो हालात है उसके अनुसार अगले साल एचएएल सिर्फ चार ही तेजस वायुसेना को दे पाएगी। 2018 तक पहले 20 तेजस वायुसेना को मिल पाएंगे।

वायुसेना चाहती है हर चुनौती का सामना कर सके तेजस
वायुसेना चाहती है कि तेजस में आसमान में ही ईंधन भरने की क्षमता हो। इससे इसकी मारक क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी। इसके अलावा उसे इसमें आइसा रडार चाहिए, साथ ही एडवांस्ड इलेक्ट्रानिक वेपंस सिस्टम भी ताकि आसमान में मिलने वाली हर चुनौती का सामना किया जा सके। यही नहीं, वायुसेना चाहती है कि एक बार उतरने के बाद वह एक घंटे के भीतर दुबारा उड़ान के लिए तैयार हो जाए। फिलहाल इसमें कम से कम ढाई-तीन घंटे लग जाते हैं।  इस बारे में NDTV इंडिया को एचएएल के सीएमडी टी सुवर्णा  राजू ने बताया कि “भारतीय वायुसेना हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है और हम उनकी एलसीए एमके आई से जुड़ी हुई जरूरतों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। बेंगलुरु में इसके लिए हमारे पास एक समर्पित विभाग और उत्पाद यूनिट है। जैसे और जब जरूरत हो  हम उत्पादन बढ़ा सकते हैं।”    
 

32 साल पहले शुरू हुआ था निर्माण
वैसे तेजस के निर्माण का काम 32 साल पहले शुरू हुआ था। 1983 में तेजस के डिजाइन को सरकार ने मंजूरी दी थी। तभी से एचएएल इसे बनाने में जुटा है। फिर तकनीकी दिक्कतों और अमेरिकी बैन की वजह से इसमें दिक्कत आती चली गई। विमान के लिए कावेरी इंजन तैयार नहीं हो पाया। अब जाकर इसमें अमेरिकी इंजन जीई लगाया गया है लेकिन अभी इसे अंतिम ऑपरेशनल क्लियरेंस नहीं मिल सका है। वैसे इसके निर्माण के समय इसमें 560 करोड़ रुपए की लागत का अनुमान लगाया गया था लेकिन अब 32 साल बाद जब यह बनकर तैयार हुआ है तो इस पर 8000 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। दिसंबर 2013 में सिंगल इंजन वाले तेजस को शुरुआती ऑपरेशनल क्लीयरेंस मिली है वही 2015 में पहला तेजस वायुसेना में शामिल हुआ है। फिलहाल जो योजना है उसके मुताबिक वायुसेना तो तेजस मार्क -1 से ही काम चलाएगी लेकिन नौसेना के तेजस मार्क-2 कैटेगरी के होंगे। मार्क-2 में और जीई का ही ज्यादा पवरफुल इंजन होगा।

अपनी श्रेणी में दुनिया का सबसे छोटा लड़ाकू विमान
बेशक यह तय समय से देर में बना है लेकिन यह अपनी श्रेणी में दुनिया का सबसे छोटा लड़ाकू विमान है जो कुछेक कंपोनेंट को छोड़कर स्वदेशी है। इसके साथ ही भारत उन गिनती के देशों की कतार में शामिल हो गया है जो लड़ाकू विमान बनाते हैं। 2006 में पहली बार सुपरसोनिक तेजस ने उड़ान भरी। अब तक तेजस के 15 विमान बने हैं। तेजस का परीक्षण लेह से लेकर जैसलमेर जैसी जगहों पर किया जा चका हुआ है। वायुसेना के एक अभ्यास में इसने गोले भी दागे जो सटीक निशाने पर लगे। यह पुराने मिग-21 से कहीं बेहतर है। जब पूरी तरह से बन जाएगा तो चीन और पाकिस्तान से मिलकर जेएफ-17 पर भी भारी पड़ेगा। 5680 किलोग्राम वजनी यह सिंगल इंजन का विमान है जिसे चौथी- पांचवी पीढ़ी का विमान कहा जा सकता है। आसमान में दुश्मनों को चौंकाने वाले इस विमान का आकार त्रिभुज की तरह लगता है क्योंकि इसे डैनों का डिजाइन डेल्टा की तरह किया गया है।        

जे एफ-17 पर भारी पड़ेगा तेजस
फिलहाल वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की भारी कमी है। वायुसेना के पास करीब 30 ही लड़ाकू विमानों के स्क्वाड्रन हैं जिनमें से ज्यादातर विमान पुराने पड़ चुके हैं। वायुसेना को फिलहाल लड़ाकू विमानों के 45 स्क्वाड्रन चाहिए। एक स्क्वाड्रन में अमूमन 20 लड़ाकू विमान होते हैं। लेकिन आजकल एक स्काड्रवन में 16 विमान तक भी होते हैं। वायुसेना में जब तेजस शामिल होगा तो इसका मेन रोल एयरडिफेंस और ग्राउंड अटैक का होगा। यानी आसमान में हवाई सुरक्षा और जमीन पर बम बरसाना। यह चार सौ किलोमीटर के दायरे में आसमान का पहरेदार होगा जबकि 300 किलोमीटर तक मार कर सकेगा। माना जा रहा है कि वायुसेना में शामिल होने के बाद इसे पाकिस्तान से लगी सीमा पर तैनात किया जाएगा। रक्षा मंत्रालय की मानें तो जब तेजस बदलाव के बाद पूरी तरह तैयार हो जाएगा तो पाकिस्तान और चीन के सहयोग से बने जे एफ-17 पर भारी पड़ेगा। तेजस वायुसेना से रिटायर हो रहे लड़ाकू मिग-21 और मिग-27 की जगह लेगा।

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रक्षा जानकार मानते हैं कि फिलहाल सीमित संसाधनों को देखते हुए एलसीए तेजस वायुसेना के लिए सबसे बेहतर विकल्प है। उनके मुताबिक मौजूदा समय में सीमित संसाधनों को देखते हुए एलसीए तेजस वायुसेना के लिए सबसे बेहतर विकल्प है। रफ़ाल बढ़िया है पर मंहगा है। तेजस में रफाल वाली खूबियां नहीं हैं, मगर वह बहुत सस्ता है।