मुंबई:
पेरिस आतंकी हमले के बाद आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के खिलाफ आवाज बुलंद होनी शुरू हो गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मुस्लिम समाज से भी उसकी पुरजोर निंदा करने का आह्वान किया है। आरोप लग रहा है कि मुस्लिम समाज इस्लामिक स्टेट के खिलाफ उतना मुखर होकर नहीं बोल रहा जितना बोलना चाहिये।
लेकिन इस्लामिक डिफेन्स साइबर सेल के मुखिया डॉक्टर ए.आर. अंजारिया का दावा है कि वो तो सितंबर महीने में ही इस्लामिक स्टेट के खिलाफ फतवा जारी कर चुके हैं और फतवा बाकायदा अमेरिका से जारी किया गया था ताकि इस्लाम को जो आतंक से जोड़ा जा रहा है उसके खिलाफ पूरे विश्व में संदेश जा सके।
अंजारिया की माने तो फतवे पर भारत के 1070 मुफ़्ती और ईमाम ने दस्तखत किया है। दस्तखत करने वालों में दिल्ली जामा मस्जिद के ईमाम भी हैं। फतवे की कॉपी 50 देशों के हुक्मरानों को भेजी गई थी। जिसमें से कनाडा, न्यूजीलैंड और जॉर्डन सरकार से बदले में पत्र भी मिला है।
अंजारिया के मुताबिक हमें बहुत उम्मीद थी कि पाकिस्तान में भी हमारे इस कदम का स्वागत होगा लेकिन वहां की सरकार की तरफ से फतवा मिलने का एक औपचारिक पत्र भी नहीं आया। जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अलगाववादी कश्मीरी नेता के पत्र का जवाब तुरंत देते हैं।
अंजरिया भारत सरकार के ठंढे रवये से भी नाखुश हैं। अंजारिया के मुताबिक सरकार को हमारे फतवे को आगे बढ़ाते हुए इस पूरे मामले में नेतृत्व करना चहिये था। लेकिन उसने सिर्फ हमारे पत्र को गृहमंत्रालय के पास भेज कर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया।
अंजारिया के मुताबिक पाकिस्तान की तरह इस्लामिक देशों की तरफ से भी कोई जवाब नहीं मिला।
मुंबई दारूल उलूम के मुख्य मुफ़्ती और फतवा देने वाले मोहम्मद मंजर हसन अशरफी का कहना है कि इस्लाम में कत्लेगारद और जुल्म-ओ-सितम के लिए कोई जगह नहीं है। बल्कि कुरान शरीफ़ बड़ी शख्ति से मना करता है। अगर किसी बेकसूर इंसान का क़त्ल किया जाता है तो वो पूरे इंसानियत का क़त्ल है। इसलिए इस्लामिक स्टेट के खिलाफ फतवा देना जरूरी था।
लेकिन इस्लामिक डिफेन्स साइबर सेल के मुखिया डॉक्टर ए.आर. अंजारिया का दावा है कि वो तो सितंबर महीने में ही इस्लामिक स्टेट के खिलाफ फतवा जारी कर चुके हैं और फतवा बाकायदा अमेरिका से जारी किया गया था ताकि इस्लाम को जो आतंक से जोड़ा जा रहा है उसके खिलाफ पूरे विश्व में संदेश जा सके।
अंजारिया की माने तो फतवे पर भारत के 1070 मुफ़्ती और ईमाम ने दस्तखत किया है। दस्तखत करने वालों में दिल्ली जामा मस्जिद के ईमाम भी हैं। फतवे की कॉपी 50 देशों के हुक्मरानों को भेजी गई थी। जिसमें से कनाडा, न्यूजीलैंड और जॉर्डन सरकार से बदले में पत्र भी मिला है।
अंजारिया के मुताबिक हमें बहुत उम्मीद थी कि पाकिस्तान में भी हमारे इस कदम का स्वागत होगा लेकिन वहां की सरकार की तरफ से फतवा मिलने का एक औपचारिक पत्र भी नहीं आया। जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अलगाववादी कश्मीरी नेता के पत्र का जवाब तुरंत देते हैं।
अंजरिया भारत सरकार के ठंढे रवये से भी नाखुश हैं। अंजारिया के मुताबिक सरकार को हमारे फतवे को आगे बढ़ाते हुए इस पूरे मामले में नेतृत्व करना चहिये था। लेकिन उसने सिर्फ हमारे पत्र को गृहमंत्रालय के पास भेज कर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया।
अंजारिया के मुताबिक पाकिस्तान की तरह इस्लामिक देशों की तरफ से भी कोई जवाब नहीं मिला।
मुंबई दारूल उलूम के मुख्य मुफ़्ती और फतवा देने वाले मोहम्मद मंजर हसन अशरफी का कहना है कि इस्लाम में कत्लेगारद और जुल्म-ओ-सितम के लिए कोई जगह नहीं है। बल्कि कुरान शरीफ़ बड़ी शख्ति से मना करता है। अगर किसी बेकसूर इंसान का क़त्ल किया जाता है तो वो पूरे इंसानियत का क़त्ल है। इसलिए इस्लामिक स्टेट के खिलाफ फतवा देना जरूरी था।
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