नगालैंड के दीमापुर में कथित बलात्कार के आरोपी को भीड़ द्वारा जेल से निकाल पीट-पीटकर मार दिए जाने की घटना को लेकर राज्य सरकार ने एक न्यायिक जांच के भी आदेश दे दिए हैं, हालांकि इसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है लेकिन अब ये सवाल उठ रहा है कि क्या दीमापुर में हुई हिंसा के पीछे सिर्फ भीड़ का गुस्सा था? जिस तरह की खबरें गृह मंत्रालय पहुंच रही हैं उससे तो लगता है कि मामला ज्यादा बड़ा था।
जानकारी के मुताबिक इस पूरी वारदात के पीछे सर्वाइवल नगालैंड और नगालैंड स्पीयर नाम से जाने जाने वाले दो समूह हैं। ये समूह बांग्लादेशी इमिग्रेंट्स के खिलाफ एक मुहीम छेड़े हुए हैं। जिस लड़की का कथित रूप से बलात्कार हुआ वह सेमा ट्राइब की थी और ज्यादातर सेमा ट्राइब के लोग दीमापुर में बसे हुए हैं। इन समूहों में ज्यादातर सेमाट्राइब्स के बेरोजगार नौजवान हैं। ये लोग बहार से आए नौजवानों से कम्पीट नहीं कर पा रहे हैं। जिस दिन हादसा हुआ, इस ग्रुप के ज्यादातर लोग उस भीड़ का हिस्सा थे। एक अधिकारी ने बताया कि मामले में निशानदेही शुरू हो गई है और कुछ गिरफ्तारियां भी की गई हैं।
वैसे दीमापुर की घटना ने कई चौंका देने वाले तथ्य हमारे सामने रखे हैं। गृह मंत्रालय तक पहुंच रही खबरों के मुताबिक पुलिस पूरे मामले में मूक दर्शक बनी देखती रही। गुस्से में आई भीड़ ने जेल का दरवाज़ा तोड़कर कथित आरोपी को निकला, उसे इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई। फिर भी भीड़ की बर्बरता ख़त्म नहीं हुई, उसने लाश को शहर के चौराहे में लटका दिया।
अब सवाल पूछे जा रहे हैं कि पुलिस ने बैकअप फ़ोर्स क्यों नहीं मंगवाई, क्यों पांच घंटे वो कुछ नहीं कर पाई? गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'पुलिस की लापरवाही तो है ही क्योंकि वो चुपचाप देखती रही। यही नहीं ये भी लग रहा है कि कहीं न कहीं वो उन्हें समर्थन दे रही थी, नहीं तो एक आरोपी को जेल से निकलना आसान नहीं है। इतने सारे जेल में कैदियों में से उस आरोपी की पहचान करना साफ़ दिखता है कि पुलिस की मिली भगत रही।' वबंग जमीर(आईजी) ने कहा, 'अभी तक पुलिस की मिलीभगत की कोई बात सामने नहीं आई है, लेकिन कुछ नए तथ्य सामने आए हैं और हम इसके बारे में और जांच कर रहे हैं।'
असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने मेडिकल रिपोर्ट पर सवाल उठाए की मेडिकल रिपोर्ट साबित नहीं करती की लड़की का बलात्कार हुआ है। उधर नागालैंड पुलिस का कहना है कि रिपोर्ट में लिखा है कि बलात्कार हुआ है। यहां सवाल ये भी लाज़मी है कि क्या मेडिकल रिपोर्ट को लेकर इतने सवेंदनशील मसले पर बहस करना जरूरी है? उधर आरोपी का भाई अब इस मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रहा है। (पढ़ें- मृतक के भाई ने लगाया साजिश का आरोप)
जहां दिल्ली में हुए गैंगरेप के बाद लड़कियां-महिलाएं ज्यादातर सड़कों पर आई थीं, दीमापुर में ज्यादातर आदमी और लड़के थे। दिल्ली में जहां लोगों को गुस्सा निर्भया के साथ हुए अपराध को लेकर गुस्सा था, वहीं दीमापुर में लोकल और आउटसाइडर होने का ज़्यादा बड़ा मसला था। मुद्दा बना कि कोई बाहरी शख्स हमारी लड़कियों के साथ ऐसे कैसे कर सकता है। अपने अलग-थलग रहने के रवैये के चलते ये लोग बाकी देश में हो रहे विकास का हिस्सा नहीं बन सके। बहार के लोग आकर उनके शहर में बसे और एक जरिया बने उनके और बाकि के देश के बीच। अब जब बहार वाले ज़्यादा रसूख वाले बन गए हैं तो उसे लेकर इन नौजवानों में रोष है।
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