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This Article is From Feb 19, 2013

नर्सरी की प्रवेश प्रक्रिया पर असर नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को अपने खुद के मानक तय करने के लिए अधिकार देने वाली दो सरकारी अधिसूचनाओं की वैधता को आज मंजूर किया, जिसके बाद दिल्ली में नर्सरी में प्रवेश की चल रही प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

मुख्य न्यायाधीश डी मुरुगसेन और न्यायमूर्ति वीके जैन की पीठ ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय और शिक्षा निदेशालय द्वारा क्रमश: जारी अधिसूचनाओं को रद्द करने की मांग वाली जनहित याचिका को निपटाते हुए कहा, हम अधिसूचनाओं का समर्थन करते हैं। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि नर्सरी प्रवेश के लिए चल रही प्रक्रिया अप्रभावित रहेगी।

अदालत ने केंद्र सरकार की इस दलील को मंजूर कर लिया कि बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीआई कानून) 6 साल से 14 साल की आयुवर्ग के बच्चों पर लागू है और राज्य नर्सरी में प्रवेश के लिए नीतियां बनाने के लिए स्वतंत्र हैं।

हालांकि पीठ ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से कहा कि कानून में संशोधन कर इसमें प्रि.स्कूल कक्षाओं में प्रवेश के लाभ के दायरे में छह साल से कम उम्र के बच्चों को लाने पर विचार किया जाए।

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अगर नर्सरी प्रवेश के विषय को आरटीई कानून में शामिल नहीं किया जाता तो यह कानून को निर्थक बना देगा। गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सोशल ज्यूरिस्ट ने जनहित याचिका दाखिल कर मानव संसाधन विकास मंत्रालय और दिल्ली सरकार की दो अधिसूचनाओं को चुनौती दी थी।

एनजीओ का कहना था कि मंत्रालय ने 23 नवंबर, 2010 को आरटीई कानून के तहत दिशानिर्देश जारी किये थे, जिसमें स्कूलों को अपने प्रवेश मानक बनाने की अनुमति दी गई थी। संगठन के अनुसार, दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय ने भी बाद में इसी तरह के दिशानिर्देश जारी किए।

जनहित याचिका में आरोप लगाया था कि अधिसूचनाओं में सभी गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को बच्चों के वर्गीकरण के आधार पर अपने खुद के नर्सरी प्रवेश मानक बनाने की पूरी तरह स्वतंत्रता दी गई है।

संगठन ने कहा कि लेकिन आरटीई कानून में प्रवेश में बच्चों के वर्गीकरण पर विशेष रूप से पाबंदी है। संगठन का कहना है कि कुछ स्कूल अब भी धर्म, पूर्व छात्र या भाई, बहन के मानकों के आधार पर प्रवेश में तरजीह देते हैं।

हालांकि निजी स्कूलों के एक संघ ने जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि निजी स्कूलों को प्रवेश प्रक्रिया के संबंध में आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

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