मामले की अगली सुनवाई को 11 जुलाई को होगी....
कोलकाता:
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को हैरानी जताई कि क्या केंद्र सरकार ऐसा नहीं सोचती कि पृथक गोरखालैंड की मांग को लेकर दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र में चल रहे आंदोलन को इस इलाके की भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए जल्द शांत करने की जरूरत है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश निशिता म्हात्रे ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा, "भूराजनीतिक क्षेत्र को देखते हुए क्या केंद्र सरकार यह नहीं सोचती है कि इस आंदोलन को तत्काल शांत किए जाने की जरूरत है?" इस बीच केन्द्रीय गृहमंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि केंद्र गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और पश्चिम बंगाल सरकार के साथ द्विपक्षीय वार्ता करने के लिए उत्सुक है ताकि दार्जीलिंग में हालात सामान्य हो सके.
अदालत का यह सवाल और केन्द्र का यह रूख पर्वतीय क्षेत्र में अनिश्चितकालीन बंद जारी रखने के पर्वतीय पार्टियों के फैसले के एक दिन बाद आया. इस दौरान दार्जीलिंग के विभिन्न हिस्सों में रैलियां और विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए.
न्यायमूर्त म्हात्रे और न्यायमूर्त तिपब्रत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने कहा, "इसके भूराजनीतिक महत्च को देखते हुए क्या केन्द्र यह नहीं समझता कि इस आंदोलन को जल्द शांत किया जाना चाहिए." अदालत ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार के अधिकारियों को निर्देश दिया कि गृह मंत्रालय के साथ बैठकर जमीनी हकीकत के हिसाब से अर्धसैनिक बलों की जरूरत के बारे में निर्णय करे.
केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की जरूरत को लेकर राज्य एवं केंद्र के बीच कलह को लेकर नाखुशी जाहिर करते हुए पीठ ने कहा, "हालात तभी सुधर सकते हैं जब दोनों साथ बैठें और मतभेदों को सुलझाएं." अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार से कहा कि वे 11 जुलाई से पहले सीएपीएफ की जरूरत को लेकर सहमति बना लें. मामले की अगली सुनवाई को 11 जुलाई को होगी.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश निशिता म्हात्रे ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा, "भूराजनीतिक क्षेत्र को देखते हुए क्या केंद्र सरकार यह नहीं सोचती है कि इस आंदोलन को तत्काल शांत किए जाने की जरूरत है?" इस बीच केन्द्रीय गृहमंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि केंद्र गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और पश्चिम बंगाल सरकार के साथ द्विपक्षीय वार्ता करने के लिए उत्सुक है ताकि दार्जीलिंग में हालात सामान्य हो सके.
अदालत का यह सवाल और केन्द्र का यह रूख पर्वतीय क्षेत्र में अनिश्चितकालीन बंद जारी रखने के पर्वतीय पार्टियों के फैसले के एक दिन बाद आया. इस दौरान दार्जीलिंग के विभिन्न हिस्सों में रैलियां और विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए.
न्यायमूर्त म्हात्रे और न्यायमूर्त तिपब्रत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने कहा, "इसके भूराजनीतिक महत्च को देखते हुए क्या केन्द्र यह नहीं समझता कि इस आंदोलन को जल्द शांत किया जाना चाहिए." अदालत ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार के अधिकारियों को निर्देश दिया कि गृह मंत्रालय के साथ बैठकर जमीनी हकीकत के हिसाब से अर्धसैनिक बलों की जरूरत के बारे में निर्णय करे.
केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की जरूरत को लेकर राज्य एवं केंद्र के बीच कलह को लेकर नाखुशी जाहिर करते हुए पीठ ने कहा, "हालात तभी सुधर सकते हैं जब दोनों साथ बैठें और मतभेदों को सुलझाएं." अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार से कहा कि वे 11 जुलाई से पहले सीएपीएफ की जरूरत को लेकर सहमति बना लें. मामले की अगली सुनवाई को 11 जुलाई को होगी.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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