
लोकसभा से नागरिकता संशोधन बिल पास कराने के बाद अब सरकार के सामने इस बिल को राज्यसभा में भी पारित कराने की चुनौती है. इन सब के बीच इस बिल को लेकर पूर्वोत्तर के कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन जारी है. दरअसल पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से गैर-मुस्लिम अवैध प्रवासियों को भारत की नगारिकता देने का सवाल पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को सबसे ज़्यादा डरा रहा है. इस विरोध के बीच सरकार राज्यसभा में अंक गणित को साधने में लगी है. 9 दिसंबर को राज्यसभा में सांसदों की कुल संख्या 240 थी. यानी बिल को पारित कराने के लिए एनडीए को 121 सांसदों के समर्थन की ज़रूरत होगी. फिलहाल एनडीए के पास 116 सांसदों का समर्थन है. बीजेडी के 7 सांसद अगर बिल का समर्थन करते हैं तो एनडीए बिल के ज़रूरी समर्थन हासिल करने में कामयाब हो सकती है. अभी राज्यसभा में यूपीए के 68 सांसद हैं और भाजपा-विरोधी दलों की संख्या 42 है. यानी विपक्षी खेमें में 110 सांसद हैं.
नागरिकता संशोधन बिल में मुस्लिम शरणार्थी क्यों नहीं?
बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्याय विनय सहस्रबुद्धे ने कहा, 'पाकिस्तान से जो हिंदू भागकर भारत आए थे उस पर हमने एक रिपोर्ट बनाई थी. आप रिपोर्ट पढ़िए आपकी आंखों में आंसू आ जाएंगे. उनकी अनदेखी कैसे हो सकती है? सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल किसी सामुदायिक भेदभाव के लिए नहीं लाया गया है.' शिव सेना ने संकेत दिया है कि राज्यसभा में उनके 3 सांसद बिल पर मतदान में हिस्सा नहीं लेंगे. सरकार की नजर जगन मोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस और TRS पर भी है जिनके पास कुल 8 सांसद हैं. राज्यसभा में सरकार को AIADMK की श्रीलंकाई तमिलों को भी बिल के दायरे में शामिल कर भारत की नागरिकता देने की मांग से भी निपटना होगा.
दिन भर चली बहस के बाद देर रात लोकसभा से पास हुआ नागरिकता संशोधन बिल, पक्ष में पड़े 311 वोट
AIADMK सांसद विजिला सत्यानंत ने NDTV से कहा, 'हम मांग करते हैं कि श्रीलंका के तमिलों को भी नागरिकता संशोधन विधेयक के तहत भारतीय नागरिकता दी जानी चाहिए. वे करीब 30 साल पहले भारत आए थे.' उधर कई विपक्षी दल बिल के खिलाफ कांग्रेस के साथ खड़े हैं. कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने NDTV से कहा, 'एक असंवैधानिक बिल को पास किया जा रहा है. मुझे संदेह नहीं है कि आज, कल, 6 महीने या एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट इसे असंवैधानिक करार देगा.' समजावादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा, 'हम राज्यसभा में इस बिल का विरोध करेंगे. ये संविधान के खिलाफ और एकता के अधिकार के खिलाफ है.' नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ देश के कुछ हिस्सों में जारी विरोध के बावजूद अगर संसद के दोनों सदनों में ये बिल पारित हो जाता है तो इसे संविधान की कसौटी से भी निपटना होगा.
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इससे पहले सोमवार को दिन भर चली बहस के बाद देर रात नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill) लोकसभा (Lok Sabha) से पास हो गया. बिल के पक्ष में 311, जबकि विरोध में 80 वोट पड़े. शिवसेना ने बिल के पक्ष में मतदान किया. इससे पहले बिल को लेकर सदन में दिन भर चली चर्चा के बाद गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने सभी सदस्यों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि मैंने पहले ही कहा था कि ये बिल लाखों- करोड़ों शरणार्थियों को यातनापूर्ण जीवन से मुक्ति दिलाने का जरिया बनने जा रहा है. इस बिल के माध्यम से उन शरणार्थियों को नागरिकता देने का काम होगा. उन्होंने कहा कि सदस्यों ने आर्टिकल-14 का हवाला देते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया. मैं कहना चाहता हूं कि किसी भी तरह से ये बिल गैर संवैधानिक नहीं है न ही ये आर्टिकल-14 का उल्लंघन करता है. अमित शाह ने कहा कि इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर न होता तो मुझे बिल लाने की जरूरत ही नहीं होती, सदन को ये स्वीकार करना होगा कि धर्म के आधार पर विभाजन हुआ है. जिस हिस्से में ज्यादा मुस्लिम रहते थे वो पाकिस्तान बना और दूसरा हिस्सा भारत बना.
गृह मंत्री ने कहा कि नेहरू-लियाकत समझौते में भारत और पाकिस्तान ने अपने अल्पसंख्यकों का ध्यान रखने का करार किया, लेकिन पाकिस्तान ने इस करार का पूरा पालन नहीं किया. उन्होंने कहा कि 3 देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के संविधान में इस्लाम को राज्य धर्म बताया है. वहां अल्पसंख्यकों को न्याय मिलने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है. 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23% थी. 2011 में ये 3.7% पर आ गई. बांग्लादेश में 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 22% थी जो 2011 में 7.8 % हो गई. आखिर कहां गए ये लोग?
उन्होंने कहा कि जो लोग विरोध करते हैं उन्हें मैं पूछना चाहता हूं कि अल्पसंख्यकों का क्या दोष है कि वो इस तरह क्षीण किए गये? 1951 में भारत में मुस्लिम 9.8 प्रतिशत थे. आज 14.23 प्रतिशत हैं, हमने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया. आगे भी किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा. ये कानून किसी एक धर्म के लोगों के लिए नहीं लाया गया है. ये सभी प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए है. इसलिए इसमें आर्टिकल-14 का उल्लंघन नहीं होता.
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