फाइल फोटो
सियाचिन:
दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध के मैदान सियाचिन चोटी पर सैन्य बलों के जवानों को अपनी चौकियों (पोस्ट) के स्थान को बदलना पड़ रहा है। दरअसल तापमान में लगातार बदलाव के चलते ग्लेशियर के सबसे सुरक्षित स्थानों पर भी हिमस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। उल्लेखनीय है कि यहां युद्ध की तुलना में अति मौसमी दशाओं के कारण जवानों की मौतें अधिक हुई हैं।
कश्मीर के उत्तरी हिस्से में स्थित सियाचिन में मौजूद हजारों जवानों के ऊपर स्थायी रूप से अत्यधिक ठंड और ऑक्सीजन की कमी के चलते दम घुटने का खतरा मंडराता रहता है। हिमस्खलनों के अलावा 'समय से पहले ही' हिम-दरार की स्थिति उत्पन्न होने से जवानों का आवागमन बेहद जोखिम-भरा हो गया है। इससे सेनाओं की आवाजाही पर प्रभाव पड़ा है।
इस पर रक्षा मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि इस क्षेत्र में जवानों के मूवमेंट पर नई पाबंदियां लगाई गई हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हमने जवानों से कहा है कि वह तब तक मूव नहीं करें जब तक बेहद जरूरी नहीं हो।'
रक्षा मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के मुताबिक ग्लेशियर पर हिमस्खलन की घटनाओं में 20 फीसदी तक इजाफा हुआ है।
इस साल की शुरुआत में बर्फ की मोटी चादर के ढहने से अत्यंत महत्वपूर्ण सोनम पोस्ट नष्ट हो गई थी और उसमें 10 जवानों की मौत हो गई थी। वह पोस्ट पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी) के निकट स्थिति थी। वहां पर बर्फ के 30 फीट नीचे दबे लांस नायक हनुमनथप्पा को छह दिन बाद बाहर निकाला गया हालांकि उन्हें बचाया नहीं जा सका। सोनम पोस्ट 19,600 फीट ऊंचाई पर स्थिति थी। अब इस क्षेत्र के अस्थिर होने के चलते यहां की कई चौकियों को दूसरे स्थान पर हस्तांतरित किया गया है।
मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच सालों में यहां 12 डिग्री तापमान में तब्दीली पाई गई है। ग्लेशियर के न्यूनतम औसत तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 2012 में यह न्यूनतम औसत तापमान माइनस 40 डिग्री था। 2014 में यह बढ़कर माइनस 37 डिग्री और इस साल यह माइनस 30 डिग्री तक पहुंच गया है। इसी तरह अधिकतम औसत तापमान में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। NDTV के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 2012 में अधिकतम औसत तापमान 13 डिग्री सेल्सियस था जोकि अब बढ़कर 15.5 डिग्री सेल्सियस हो गया है।
इस संबंध में 19 मद्रास रेजीमेंट (सोनम में इसी रेजीमेंट के 10 जवान मारे गए थे) के कमांडर कर्नल यूबी गुरुंग के मुताबिक ''सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सर्दियां देर से शुरू रही हैं, इसके चलते बर्फ सख्त नहीं हो पाती, नतीजतन हिमस्खलन की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है।''
उल्लेखनीय है कि पहले उत्तरी ग्लेशियर को स्थिर माना जाता था लेकिन अब इस क्षेत्र में लगातार हिमस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। इन सबके चलते रक्षा मंत्रालय ने चंडीगढ़ स्थित स्नो एवलैंच स्टडी ऑर्गेनाइजेशन (एसएएसई) को मौसम में हो रहे बदलावों की प्रवृत्ति का अध्ययन करने को कहा है।
जिन क्षेत्रों को असुरक्षित माना जा रहा है वहां पर भारतीय सेना पोस्ट के चारों तरफ गहरी खुदाई कर रही है ताकि कोई हिमस्खलन पूरी चौकी को नष्ट नहीं कर सके। जवानों की सुरक्षा के लिए आवागमन पर पाबंदी लगाने के साथ ही सेना ने नई तकनीकियों को भी शामिल किया है। सेक्टर विशेष से संबंधित चेतावनियों के लिए रोजाना हिमस्खलन चेतावनी बुलेटिन देने के साथ असुरक्षित क्षेत्रों में हिमस्खलन बचाव दल तैनात किए जा रहे हैं। इसके साथ ही ऐसे एवलैंच ब्योआंस तंत्र-एयर बैग उपकरण प्रदान किए जा रहे हैं जो हिमस्खलन की स्थिति में बचाव के काम आते हैं।
कश्मीर के उत्तरी हिस्से में स्थित सियाचिन में मौजूद हजारों जवानों के ऊपर स्थायी रूप से अत्यधिक ठंड और ऑक्सीजन की कमी के चलते दम घुटने का खतरा मंडराता रहता है। हिमस्खलनों के अलावा 'समय से पहले ही' हिम-दरार की स्थिति उत्पन्न होने से जवानों का आवागमन बेहद जोखिम-भरा हो गया है। इससे सेनाओं की आवाजाही पर प्रभाव पड़ा है।
इस पर रक्षा मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि इस क्षेत्र में जवानों के मूवमेंट पर नई पाबंदियां लगाई गई हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हमने जवानों से कहा है कि वह तब तक मूव नहीं करें जब तक बेहद जरूरी नहीं हो।'
रक्षा मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के मुताबिक ग्लेशियर पर हिमस्खलन की घटनाओं में 20 फीसदी तक इजाफा हुआ है।
इस साल की शुरुआत में बर्फ की मोटी चादर के ढहने से अत्यंत महत्वपूर्ण सोनम पोस्ट नष्ट हो गई थी और उसमें 10 जवानों की मौत हो गई थी। वह पोस्ट पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी) के निकट स्थिति थी। वहां पर बर्फ के 30 फीट नीचे दबे लांस नायक हनुमनथप्पा को छह दिन बाद बाहर निकाला गया हालांकि उन्हें बचाया नहीं जा सका। सोनम पोस्ट 19,600 फीट ऊंचाई पर स्थिति थी। अब इस क्षेत्र के अस्थिर होने के चलते यहां की कई चौकियों को दूसरे स्थान पर हस्तांतरित किया गया है।
मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच सालों में यहां 12 डिग्री तापमान में तब्दीली पाई गई है। ग्लेशियर के न्यूनतम औसत तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 2012 में यह न्यूनतम औसत तापमान माइनस 40 डिग्री था। 2014 में यह बढ़कर माइनस 37 डिग्री और इस साल यह माइनस 30 डिग्री तक पहुंच गया है। इसी तरह अधिकतम औसत तापमान में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। NDTV के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 2012 में अधिकतम औसत तापमान 13 डिग्री सेल्सियस था जोकि अब बढ़कर 15.5 डिग्री सेल्सियस हो गया है।
इस संबंध में 19 मद्रास रेजीमेंट (सोनम में इसी रेजीमेंट के 10 जवान मारे गए थे) के कमांडर कर्नल यूबी गुरुंग के मुताबिक ''सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सर्दियां देर से शुरू रही हैं, इसके चलते बर्फ सख्त नहीं हो पाती, नतीजतन हिमस्खलन की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है।''
उल्लेखनीय है कि पहले उत्तरी ग्लेशियर को स्थिर माना जाता था लेकिन अब इस क्षेत्र में लगातार हिमस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। इन सबके चलते रक्षा मंत्रालय ने चंडीगढ़ स्थित स्नो एवलैंच स्टडी ऑर्गेनाइजेशन (एसएएसई) को मौसम में हो रहे बदलावों की प्रवृत्ति का अध्ययन करने को कहा है।
जिन क्षेत्रों को असुरक्षित माना जा रहा है वहां पर भारतीय सेना पोस्ट के चारों तरफ गहरी खुदाई कर रही है ताकि कोई हिमस्खलन पूरी चौकी को नष्ट नहीं कर सके। जवानों की सुरक्षा के लिए आवागमन पर पाबंदी लगाने के साथ ही सेना ने नई तकनीकियों को भी शामिल किया है। सेक्टर विशेष से संबंधित चेतावनियों के लिए रोजाना हिमस्खलन चेतावनी बुलेटिन देने के साथ असुरक्षित क्षेत्रों में हिमस्खलन बचाव दल तैनात किए जा रहे हैं। इसके साथ ही ऐसे एवलैंच ब्योआंस तंत्र-एयर बैग उपकरण प्रदान किए जा रहे हैं जो हिमस्खलन की स्थिति में बचाव के काम आते हैं।
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