मुंबई:
चार साल पहले मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले में जिंदा गिरफ्तार किए गए एकमात्र पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को बुधवार सुबह 7.30 बजे पुणे की ऐतिहासिक यरवडा जेल में फांसी दे दी गई।
कसाब 26 नवंबर, 2008 की रात मुम्बई में आतंकवादी हमला करने वाले 10 पाकिस्तानी आतंकवादियों में शामिल था। इस आतंकवादी घटना में 26 से 29 नवंबर के बीच 166 लोग मारे गए और 300 घायल हुए थे।
कसाब ने जब इस जघन्य कृत्य को अंजाम दिया था तब वह महज 21 साल का था। कसाब स्वतंत्र भारत में पहला विदेशी नागरिक है जिसे फांसी दी गई।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा पांच नवंबर को कसाब की दया याचिका खारिज किए जाने के बाद ही उसे फांसी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी।
इसके लिए एक टीम का चयन किया गया, जिसे 25 वर्षीय कसाब को गोपनीय तरीके से पुणे की यरवडा केंद्रीय कारा लाने और यहां फांसी देने तथा दफन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके लिए कसाब को मुम्बई की आर्थर रोड जेल से पुणे लाया गया।
राष्ट्रपति कार्यालय से मिली फाइल पर केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सात नवंबर को हस्ताक्षर कर दिए, जिसके बाद अगले ही दिन इसे महाराष्ट्र सरकार के पास भेज दिया गया।
केवल कुछ ही लोगों को मालूम था कि उसे 21 नवंबर को सुबह फांसी दी जाएगी। इनमें महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक संजीव दयाल, मुम्बई के पुलिस आयुक्त सत्यपाल सिंह, यरवडा जेल के प्रमुख मीरान बोरवंकर शामिल थे। इसके अतिरिक्त राज्य में कानून-व्यवस्था एवं खुफिया विभाग के शीर्ष अधिकारियों, मुम्बई सीआईडी और पुणे के कुछ पुलिस अधिकारियों को ही इसकी जानकारी थी।
महाराष्ट्र में नागपुर केंद्रीय कारा के अतिरिक्त केवल पुणे की यरवडा जेल में ही फांसी दिए जाने की सुविधा है। मुम्बई से पुणे के नजदीक होने के कारण ही यहां कसाब को लाया गया और एक विशेष जल्लाद को बुलाया गया। जेल के अधिकारियों ने कसाब को 12 नवंबर को बताया कि उसे फांसी दी जानी है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के अनुसार, कसाब को मुम्बई की आर्थर रोड जेल से 19 नवंबर को पुणे लाया गया।
कसाब को सोमवार देर रात विशेष विमान से पुणे लाया गया और यरवडा जेल ले जाया गया। उसने अनुरोध किया कि उसकी मां को उसे फांसी देने के बारे में बता दिया जाए। उसने यह भी कहा कि उसकी कोई आखिरी इच्छा नहीं है और वह कोई बयान जारी नहीं करना चाहता।
महाराष्ट्र के गृह मंत्री आरआर पाटील ने संवाददाताओं को बताया कि सभी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी किए जाने के बाद कसाब को बुधवार सुबह 7.30 बजे फांसी दे दी गई।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने यहां पत्रकारों को बताया कि फांसी के बाद कसाब का शव पुणे की यरवडा जेल के परिसर में दफनाया गया।
गौरतलब है कि यह फांसी संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने से एक दिन पहले और दिसम्बर में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव से कुछ सप्ताह पहले दी गई।
कसाब ने जब इस हमले को अंजाम दिया तब वह 21 साल का था। उसे हत्या, भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने व हथियार रखने सहित चार जुर्मो में फांसी और पांच जुर्मों में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। उसे सबसे पहले छह मई, 2010 को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी।
बम्बई उच्च न्यायालय ने पिछले साल 21 फरवरी को निचली अदालत के इस फैसले को बरकरार रखा। सर्वोच्च न्यायालय ने भी 29 अगस्त को ऐसा ही निर्णय दिया। राष्ट्रपति मुखर्जी ने पांच नवंबर को उसकी दया याचिका खारिज कर दी थी।
केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने दिल्ली में कहा, "राष्ट्रपति के पांच नवंबर को कसाब की दया याचिका खारिज करने के बाद महाराष्ट्र सरकार को उसे फांसी देने में दो सप्ताह से भी कम समय लगा। मैंने आठ नवंबर को इसे महाराष्ट्र सरकार के पास भेज दिया था।" उन्होंने कहा, "पाकिस्तान को इस सम्बंध में सूचित किया गया था लेकिन उसने कसाब के शव की मांग नहीं की।" शिंदे ने कहा कि यह पूरा मामला बेहद संवेदनशील था इसलिए कसाब को फांसी गोपनीय तरीके से दी गई।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा, "यह देर से उठाया गया सही कदम है। कसाब को फांसी मुम्बई के लोगों के जख्मों पर मरहम का काम करेगी लेकिन उनके घाव अब भी ताजा हैं।" उन्होंने कहा, "उन्हें केवल तभी राहत मिलेगी जब कसाब को बाहर से संचालित करने वालों को सजा मिलेगी।"
कसाब 26 नवंबर, 2008 की रात मुम्बई में आतंकवादी हमला करने वाले 10 पाकिस्तानी आतंकवादियों में शामिल था। इस आतंकवादी घटना में 26 से 29 नवंबर के बीच 166 लोग मारे गए और 300 घायल हुए थे।
कसाब ने जब इस जघन्य कृत्य को अंजाम दिया था तब वह महज 21 साल का था। कसाब स्वतंत्र भारत में पहला विदेशी नागरिक है जिसे फांसी दी गई।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा पांच नवंबर को कसाब की दया याचिका खारिज किए जाने के बाद ही उसे फांसी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी।
इसके लिए एक टीम का चयन किया गया, जिसे 25 वर्षीय कसाब को गोपनीय तरीके से पुणे की यरवडा केंद्रीय कारा लाने और यहां फांसी देने तथा दफन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके लिए कसाब को मुम्बई की आर्थर रोड जेल से पुणे लाया गया।
राष्ट्रपति कार्यालय से मिली फाइल पर केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सात नवंबर को हस्ताक्षर कर दिए, जिसके बाद अगले ही दिन इसे महाराष्ट्र सरकार के पास भेज दिया गया।
केवल कुछ ही लोगों को मालूम था कि उसे 21 नवंबर को सुबह फांसी दी जाएगी। इनमें महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक संजीव दयाल, मुम्बई के पुलिस आयुक्त सत्यपाल सिंह, यरवडा जेल के प्रमुख मीरान बोरवंकर शामिल थे। इसके अतिरिक्त राज्य में कानून-व्यवस्था एवं खुफिया विभाग के शीर्ष अधिकारियों, मुम्बई सीआईडी और पुणे के कुछ पुलिस अधिकारियों को ही इसकी जानकारी थी।
महाराष्ट्र में नागपुर केंद्रीय कारा के अतिरिक्त केवल पुणे की यरवडा जेल में ही फांसी दिए जाने की सुविधा है। मुम्बई से पुणे के नजदीक होने के कारण ही यहां कसाब को लाया गया और एक विशेष जल्लाद को बुलाया गया। जेल के अधिकारियों ने कसाब को 12 नवंबर को बताया कि उसे फांसी दी जानी है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के अनुसार, कसाब को मुम्बई की आर्थर रोड जेल से 19 नवंबर को पुणे लाया गया।
कसाब को सोमवार देर रात विशेष विमान से पुणे लाया गया और यरवडा जेल ले जाया गया। उसने अनुरोध किया कि उसकी मां को उसे फांसी देने के बारे में बता दिया जाए। उसने यह भी कहा कि उसकी कोई आखिरी इच्छा नहीं है और वह कोई बयान जारी नहीं करना चाहता।
महाराष्ट्र के गृह मंत्री आरआर पाटील ने संवाददाताओं को बताया कि सभी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी किए जाने के बाद कसाब को बुधवार सुबह 7.30 बजे फांसी दे दी गई।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने यहां पत्रकारों को बताया कि फांसी के बाद कसाब का शव पुणे की यरवडा जेल के परिसर में दफनाया गया।
गौरतलब है कि यह फांसी संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने से एक दिन पहले और दिसम्बर में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव से कुछ सप्ताह पहले दी गई।
कसाब ने जब इस हमले को अंजाम दिया तब वह 21 साल का था। उसे हत्या, भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने व हथियार रखने सहित चार जुर्मो में फांसी और पांच जुर्मों में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। उसे सबसे पहले छह मई, 2010 को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी।
बम्बई उच्च न्यायालय ने पिछले साल 21 फरवरी को निचली अदालत के इस फैसले को बरकरार रखा। सर्वोच्च न्यायालय ने भी 29 अगस्त को ऐसा ही निर्णय दिया। राष्ट्रपति मुखर्जी ने पांच नवंबर को उसकी दया याचिका खारिज कर दी थी।
केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने दिल्ली में कहा, "राष्ट्रपति के पांच नवंबर को कसाब की दया याचिका खारिज करने के बाद महाराष्ट्र सरकार को उसे फांसी देने में दो सप्ताह से भी कम समय लगा। मैंने आठ नवंबर को इसे महाराष्ट्र सरकार के पास भेज दिया था।" उन्होंने कहा, "पाकिस्तान को इस सम्बंध में सूचित किया गया था लेकिन उसने कसाब के शव की मांग नहीं की।" शिंदे ने कहा कि यह पूरा मामला बेहद संवेदनशील था इसलिए कसाब को फांसी गोपनीय तरीके से दी गई।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा, "यह देर से उठाया गया सही कदम है। कसाब को फांसी मुम्बई के लोगों के जख्मों पर मरहम का काम करेगी लेकिन उनके घाव अब भी ताजा हैं।" उन्होंने कहा, "उन्हें केवल तभी राहत मिलेगी जब कसाब को बाहर से संचालित करने वालों को सजा मिलेगी।"
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