पीएम नरेंद्र मोदी की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
सांसद आदर्श ग्राम योजना को सही तरीके से लागू करना एनडीए सरकार के लिए एक चुनौती बना हुआ है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक इस वक्त 112 सांसद ऐसे हैं जिन्होंने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत किसी ग्राम पंचायत का चयन आज तक नहीं किया है।
पिछले साल 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना लॉन्च की थी। उस वक्त ये तय किया गया था कि सभी सांसद एक महीने के अंदर 11 नवंबर (2014) तक अपने-अपने इलाके में एक ग्राम पंचायत का चयन करेंगे जिसे 2016 तक आदर्श ग्राम के तौर पर विकसित किया जाएगा।
लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक इस वक्त 112 सांसद ऐसे हैं जिन्होंने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत किसी ग्राम पंचायत का चयन नहीं किया है। कुछ सांसदों को डर है कि अगर उन्होंने अपने इलाके में किसी एक गांव ता चयन किया तो इलाके में पड़ने वाले दूसरे गांवों के लोग उनके नाराज़ हो जाएंगे।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सांसद आदर्श ग्राम योजना का सबसे बुरा हाल पश्चिम बंगाल में है। राज्य में 42 में से 39 सांसदों ने ग्राम पंचायत का चुनाव अब तक नहीं किया है। त्रिणमूल सांसद और पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने एनडीटीवी से कहा, 'मैं पक्षपात नहीं कर सकता। मुझे नहीं पता कि गांव के चयन की प्रक्रिया क्या है? मेरी नजर में मेरे संसदीय क्षेत्र में हर गांव को आदर्श गांव की तरह विकसित करना ज़रूरी है।'
कुछ सांसद इस योजना को व्यवहारिक नहीं मानते। जेडी-यू के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्य सभा सांसद के सी त्यागी ने कहा कि सांसदों के पास इतने फंड्स नहीं होते कि वो सारा पैसा किसी एक गांव में लगा दें। साथ ही, किसी एक गांव पर ज़्यादा ध्यान देने से दूसरे गांव वाले नाराज़ हो सकते हैं, उनमें ईर्ष्या की भावना पैदा हो सकती है।
ऐसा करना राजनीतिक दृष्टिकोण से उचित नहीं होगा। गांव ना चुनने वाले हर सांसद की अपनी दलील है - कहीं वजह राजनीतिक है, तो कहीं प्रशासनिक। लेकिन इसका नतीजा ये हुआ है कि इस योजना को लागू करने के लिए जो डेडलाइन थी वो पीछे छूटी जा रही है और इसके टार्गेट को पूरा करना मुश्किल होता जा रहा है।
पिछले साल 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना लॉन्च की थी। उस वक्त ये तय किया गया था कि सभी सांसद एक महीने के अंदर 11 नवंबर (2014) तक अपने-अपने इलाके में एक ग्राम पंचायत का चयन करेंगे जिसे 2016 तक आदर्श ग्राम के तौर पर विकसित किया जाएगा।
लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक इस वक्त 112 सांसद ऐसे हैं जिन्होंने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत किसी ग्राम पंचायत का चयन नहीं किया है। कुछ सांसदों को डर है कि अगर उन्होंने अपने इलाके में किसी एक गांव ता चयन किया तो इलाके में पड़ने वाले दूसरे गांवों के लोग उनके नाराज़ हो जाएंगे।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सांसद आदर्श ग्राम योजना का सबसे बुरा हाल पश्चिम बंगाल में है। राज्य में 42 में से 39 सांसदों ने ग्राम पंचायत का चुनाव अब तक नहीं किया है। त्रिणमूल सांसद और पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने एनडीटीवी से कहा, 'मैं पक्षपात नहीं कर सकता। मुझे नहीं पता कि गांव के चयन की प्रक्रिया क्या है? मेरी नजर में मेरे संसदीय क्षेत्र में हर गांव को आदर्श गांव की तरह विकसित करना ज़रूरी है।'
कुछ सांसद इस योजना को व्यवहारिक नहीं मानते। जेडी-यू के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्य सभा सांसद के सी त्यागी ने कहा कि सांसदों के पास इतने फंड्स नहीं होते कि वो सारा पैसा किसी एक गांव में लगा दें। साथ ही, किसी एक गांव पर ज़्यादा ध्यान देने से दूसरे गांव वाले नाराज़ हो सकते हैं, उनमें ईर्ष्या की भावना पैदा हो सकती है।
ऐसा करना राजनीतिक दृष्टिकोण से उचित नहीं होगा। गांव ना चुनने वाले हर सांसद की अपनी दलील है - कहीं वजह राजनीतिक है, तो कहीं प्रशासनिक। लेकिन इसका नतीजा ये हुआ है कि इस योजना को लागू करने के लिए जो डेडलाइन थी वो पीछे छूटी जा रही है और इसके टार्गेट को पूरा करना मुश्किल होता जा रहा है।
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