विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत का जश्न मनाते पार्टी कार्यकर्ता
नई दिल्ली:
गुजरात का चुनावी मैच वाकई कांटे की टक्कर साबित हुआ. सौराष्ट्र में बीजेपी का स्ट्राइक रेट गिरा तो यह साउथ गुजरात था, जिसने मैच बचा लिया. सबसे पहले आपको गुजरात के अलग-अलग क्षेत्रों से बताते हैं कि बीजेपी के लिए आखिर साउथ गुजरात और उसमें भी खासतौर से सूरत कैसे गेमचेंजर या कहें कि मैच बचाने वाला साबित हुआ. दक्षिण गुजरात में बीजेपी ने जहां 2012 के प्रदर्शन को दोहराया है, वहीं सौराष्ट्र में उसे काफी नुकसान उठाना पड़ा है. यहां पहले दौर में वोट पड़े थे. कांग्रेस दक्षिण गुजरात में बेहतर नहीं कर पाई, हालांकि उसने सौराष्ट्र में बीजेपी को नुकसान पहुंचाया. सौराष्ट्र में 'पास' और 'कपास' यानी पटेल और किसान दोनों बीजेपी पर भारी पड़े, लेकिन दक्षिण गुजरात में सूरत जिले में बीजेपी ने 16 में सें 14 सीटें जीती हैं. सूरत में जीएसटी के विरोध में कपड़ा व्यापारियों का विरोध प्रदर्शन हुआ था. सूरत की वारछा रोड से बीजेपी बड़े अंतर से जीती है. ये पाटीदार आंदोलन के केंद्र में से एक रहा.
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3 दिसंबर को वारछा में हार्दिक पटेल ने मेगा रोड शो किया था, इसके बावजूद बीजेपी ने यहां जीत दर्ज की. इसी तरह सूरत की कतारगाम सीट भी बीजेपी ने जीत ली है. ये भी पाटीदार आंदोलन का गढ़ रहा था. सूरत जिले की माजुरा सीट भी पाटीदार बहुल है और यहां से बीजेपी के हर्ष सांघवी ने बड़े अंतर से जीत हासिल की.
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सूरत में बीजेपी की जीत ने दिखाया कि वह दक्षिण गुजरात में पाटीदारों और कारोबारियों की नाराजगी को मैनेज करने में कामयाब रही और जीएसटी बेअसर रहा, जिसे राहुल गांधी ने गब्बर सिंह टैक्स कहा था. सूरत में तो इसके लिए बकायादा शोले के किरदार सड़कों पर उतारे गए थे.
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साफ है कि सूरत ने बीजेपी को बचा लिया, नहीं तो उसकी सूरत बिगड़ सकती थी.
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3 दिसंबर को वारछा में हार्दिक पटेल ने मेगा रोड शो किया था, इसके बावजूद बीजेपी ने यहां जीत दर्ज की. इसी तरह सूरत की कतारगाम सीट भी बीजेपी ने जीत ली है. ये भी पाटीदार आंदोलन का गढ़ रहा था. सूरत जिले की माजुरा सीट भी पाटीदार बहुल है और यहां से बीजेपी के हर्ष सांघवी ने बड़े अंतर से जीत हासिल की.
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साफ है कि सूरत ने बीजेपी को बचा लिया, नहीं तो उसकी सूरत बिगड़ सकती थी.
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