एक समय था, जब समुद्र से पेटी भर के मछलियां मिलती थी। टुना, मैकेरल, पॉम्फ्रेट से भरा समुद्र, जहां सभी के लिए बहुत-सी वैरायटी थी। लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, मछली के लिए हमारी भूख और डिमांड भी बढ़ती गई, प्रगति और विकास के पहिए बदलाव की ओर मुड़ गए और चीजें बदलने लगी। मछली पकड़ने के लिए जाल का नहीं, बल्कि मशीनों का इस्तेमाल होने लगा और मछली को ज़्यादा मात्रा में पकड़ा जाने लगा।
150 हॉर्सपावर के डीजल इंजन के साथ बड़ी नेट (जाल) उसके पीछे-पीछे चलती है और जाल पानी में रहने वाले जीवों की कई किस्म को घेर लेता है, इनमें वह जलीय जीव भी मौजूद होते हैं, जिन्हें कोई खाना नहीं चाहता। ट्रालर के द्वारा पैदा किए गए मंथन (हिलाना) का नुकसान भी इसमें जुड़ जाता है, जैसे- इस दौरान निकाले गए जीवों में मछली के अंडे भी आ जाते हैं, जो किसी काम के नहीं होते और मछुआरे उन्हें नष्ट करके फेंक देते हैं।
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ऐसा करना जरूरत से ज़्यादा निकालना कहते हैं। बाहर लाए गए अंडे या अनवांछित चीजों को रिप्लेस नहीं किया जा सकता। सर्दी हो या गर्मी लोग मछली पकड़ना और उन्हें खाना नहीं छोड़ते। यहां तक की मॉनसून में भी, जो कि समुद्री जीवों के अंडे देने और खुद की पूर्ति करने का टाइम होता है। एन्वायरनमेंटल एक्टिविस्ट ऑर्गेनाइजेशन ग्रीनपीस के मुताबिक, विश्वभर में तकरीबन 80 प्रतिशत मछली शोषित की जाती हैं।
कानूनी लगाम
मुंबई की छोटा स्वदेशी फिशिंग कॉम्यूनिटी द कोलिस, मॉनसून के दिनों में नार्ली पूर्णिमा तक (इस बार 29 अगस्त को है) मछली पकड़ना बंद कर देती है। मछली को खुद की पूर्ति करते रहने देने का यह सबसे अच्छा तरीका है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों द्वारा इस पर कैसे कंट्रोल किया जा सकता हैं।
2007 में सी-फूड की कमी के चलते, केंद्र सरकार ने पश्चिम तट से मछली पालन पर 15 जून से 31 जुलाई तक रोक लगा दी थी। भारत सरकार ने अब 61 दिनों के लिए मछली पकड़ने पर रोक लगाई है - न सिर्फ उनके अंडे देने के समय में उनकी रक्षा करने के लिए, बल्कि मछुआरों को इस मौसम में होने वाले जोखिम से बचाने के लिए भी किया गया है।
इससे पहले, ये नियम राज्यों के हिसाब से बदल जाते थे जैसे- मछली पकड़े की सीमा, जाल का आकार, बोट साइज और हर प्रजाति के अनुसार अलग कोटा आदि। कृषि मंत्रालय द्वारा 12 मई को प्रकाशित की गई प्रेस रिलीज में बताया गया है कि,“विभिन्न राज्यों और ईईजेड (एक्सक्लूजीव इकोनॉमिक ज़ोन) के मछली पालन पर लगाए गए प्रतिबंध की अवधि के बीच में अंतर होने से, एक राज्य की बोट दूसरे राज्य के क्षेत्र में दाखिल हो जाती थी और यही विवादों का कारण बन रहा था। दूसरी स्थिति पर ध्यान देते हुए, यह निर्णय लिया गया कि 61 दिनों के लिए लगाए गए यूनिफॉर्म प्रतिबंध, भारतीय ईईजेड क्षेत्र (12 समुद्री मील की दूरी से परे) में लागू होंगे। ऊपर दिए गए प्रस्ताव पर केरल को छोड़कर सभी यूनियन टेरेटरिज और तटीय राज्यों ने अपनी सहमति व्यक्त की।”
यह कानून लोगों को अव्यवहारिक और पेचीदा लगता है, लेकिन मछलियों के प्रजनन और उनका आकार बढ़ाने के लिए यह कानून महत्वपूर्ण है (जिसका मतलब है एक बार प्रतिबंध खत्म होने पर मछुआरों को इनकी ऊंची कीमत मिलना)। साथ ही, जैसा की मंत्रालय की प्रेस रिलीज़ में कहा गया है, उनके प्रजनन के दिनों में फिश को बचाना ही मुख्य उद्देश्य नहीं है, बल्कि मछुआरों को फायदा पहुंचाना भी है ताकि वह इनका ज़्यादा लाभ उठा सकें। अन्यथा, मछलियों की संख्या कम होगी, जिसके पीछे पारंपरिक मछुआरों का ही हाथ होगा।'
ऐसा ही प्रतिबंध पूर्वी तट पर भी 61 दिनों के लिए लगाया है - लेकिन यह प्रतिबंध 15 अप्रैल से लगाया गया है। यही कारण है कि हमारे बाजार आज भी मछली से परिपूर्ण हैं। ज़्यादातर मछली पूर्वी तट से आती हैं और कुछ अन्य देशों से आयात की जाती हैं। प्रतिबंध के बावजूद बहुत से मछुआरे आज भी गैर-कानूनी तरीके से मछली पालन कर रहे हैं।
हम क्या कर सकते हैं?
तो क्या हम मॉनसून के दिनों में मछली खा सकते है? इसका साधारण-सा जवाब है- एक, ताज़गी और दूसरा, नैतिकता। पहले हम ताज़गी के पहलू के साथ डील करते हैं। ज़्यादातर फिश दूसरे देशों से आयात होती हैं। कुछ ट्रेन का रास्ता तय करके हम तक पहुंचती हैं, तो कुछ पानी के रास्ते। हाल ही में, कन्याकुमारी में सी-फूड परिवहन के लिए एक सोलर-पॉवर वातानुकूलित ट्रक का उद्घाटन किया गया है। जाहिर है, परिवहन सुविधाओं में व्यापक सुधार किया जा रहा है, जो यह सुनिश्चित कराता है कि आपकी थाली में परोसी जाने वाली फिश फ्रेश हो, लेकिन इस पर हमेशा यकीन नहीं किया जा सकता। इस कारण, फिश के टुकड़े खरीदने से अच्छा है साबुत फिश खरीदना। यहां मछली की ताज़गी जांचने का आसान तरीका है उसकी आंख देखना। मछली की आंख साफ होनी चाहिए, न की धुंधली। मछली के गिल्स लाल होने चाहिए, और आखिर में बदबू वाली फिश कभी भी फ्रेश नहीं होती।
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अब हम आते हैं अपने दूसरे पॉइंट नैतिकता पर- यह निर्णय आपके कंधों पर टिका हुआ है। मेरे परिवार ने मॉनसून के आखिर तक फिश न खाने का फैसला लिया है। लेकिन आपको इतना कठिन कदम उठाने की जरूरत नहीं है। इसका एक आसान तरीका यह भी है कि आपकी प्लेट में परोसी जाने वाली मछली लीगल होनी चाहिए, और इसका पता लगाने के लिए आपको सी-फूड पर थोड़ी-सी रिसर्च करनी पड़ेगी। अपने मछली बेचने वाले से पूछना होगा कि उसने मछलियां कहां से ली हैं। अगर आप मछली खरीद रहे हैं, तो उसका साइज जरूर चेक कर लें- वह पूरा विकसित होना चाहिए। हालांकि, मछली के आकार को लेकर सरकार ने कई नियम बनाए हुए हैं, लेकिन कई मछुआरे इन्हें नहीं मानते। इस मौसम में प्रॉन्स आदि भी मौजूद होते हैं, जिन्हें खाना सुरक्षित होता है।