 
                                            
                                        
                                        
                                                                                नई दिल्ली: 
                                        देखा गया है कि अक्सर बच्चे ही नहीं बड़े भी दूध, सब्जी और फल खाने से बचते हैं, लेकिन अगर उनके सामने चॉकलेट का नाम आ जाए, तो इसे खाने के लिए वह एक दूसरे के पीछे दौड़ लगा सकते हैं. इसका शानदार रंग, मख़मली चिकनी बनावट, महक और स्वाद जैसे गुण बहुत आसानी से सबको अपनी ओर खींच लेते हैं. प्राचीन मेसोअमेरिकन में तो इसे 'देवताओं का खाना' भी कहा जाता था.
बाज़ार में मिलने वाली तरह-तरह के स्वाद की चॉकलेट जैसे नट्स, कैरेमल और चॉकलेट-बार के अलावा चॉकलेट-वेफर तक केवल 10 रुपये में आसानी से मिल जाते हैं. लेकिन यहां ये बात जाननी जरूरी है कि चॉकलेट दरअसल कोको बीन्स से बनती है, जिसका उत्पादन मांग की तुलना में काफी कम हो रहा है. ऐसे में अब सवाल यह है कि कोको बीन्स का उत्पादन कम होने के बावजूद भी बाजार हमेशा चॉकलेट से कैसे खचाखच भरे रहते हैं?
चॉकलेट का मुंह में डालते ही पिघल जाना
असल में चॉकलेट की महक और स्वाद के अलावा उसकी क्रीमी बनावट उसे और भी स्पेशल बना देती है और ये खास बात इसमें 'कोको बटर' या 'दओब्रोमा ऑयल' की वजह से आती है.
हालांकि, चॉकलेट बनाने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है, फिर भी इसका नतीजा मीठा होता है. कोको की फलियों को कई तरह की तकनीक जैसे पहले खमीर उठाना, फिर सूखा भूनना, इसके बाद इसे दबाकर निकालना आदि प्रक्रिया से कोको बटर निकला जाता है. यह हल्के पीले रंग का होता है, जो ख़ासतौर से चॉकलेट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
कोको बटर में काफी मात्रा में प्राकृतिक सैचूरेटिड फैट होता है, जो कमरे के तापमान पर स्थिर रहता है, लेकिन जैसे ही तापमान थोड़ा भी बढ़ता है और गर्मी पहले से ज़्यादा हो जाती है, तो यह पिघलना शुरू हो जाता है, जो कि एक अच्छी चॉकलेट होने की निशानी बिलकुल नहीं है.
एक अलग तरह का है ये कोको बटर
एक कहावत में कहा गया है, 'प्रसिद्ध चीज के साथ कई बुरी बातें भी आती हैं.' चॉकलेट लोकप्रियता हासिल कर कई लोगों के चहरे पर मुस्कान तो लाई, लेकिन इसकी सामग्री में मौजूद अशुद्ध मिलावट के बुरे अनुभव का भी सामना करना पड़ा. खाद्य उद्योग में यह असाधारण घटना नहीं है. इसके अलावा दूध, क्रीम, चीज, तेल और शराब जैसी कई खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में भी यह गिरावट देखी गई है.
कोको बटर के महंगे होने की वजह से कई उत्पादकों ने चॉकलेट में इसकी बजाय वनस्पति तेल जैसे नारियल का तेल, ताड़ का तेल,सफेद सरसों का तेल, सोयाबीन का तेल के अलावा कई तरह के तेल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. बाज़ार में मौजूद चॉकलेट खरीदते समय अगर आप उसके पीछे लिखे लेबल पर ध्यान दें, तो आपको हाईड्रोजनीकृत वनस्पति तेल नामक सामग्री का पता चलेगा. यह सामग्री न तो सिर्फ स्वाद, बल्कि असली चॉकलेट के महक को भी खत्म करती है. साथ ही यह सेहत को भी नुकसान पहुंचा सकती है.
वनस्पति तेल कमरे के तापमान पर स्थिर रहता है, जो हाईड्रोजिनेशन की प्रक्रिया के बाद सख़्त बनता है. ऐसा करने से चॉकलेट के उपयोग होने तक की अवधि बढ़ जाती है. लेकिन इसमें सैचूरेटिड फैट या ट्रांस फैट भी बनते हैं, जो सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. इसके प्रयोग से शरीर में डायबिटीज़, हृदय संबंधी रोग और मोटापे की परेशानी भी हो सकती है.
फूड से संबंधित अन्य ख़बरों के लिए यहां क्लिक करें.
                                                                        
                                    
                                बाज़ार में मिलने वाली तरह-तरह के स्वाद की चॉकलेट जैसे नट्स, कैरेमल और चॉकलेट-बार के अलावा चॉकलेट-वेफर तक केवल 10 रुपये में आसानी से मिल जाते हैं. लेकिन यहां ये बात जाननी जरूरी है कि चॉकलेट दरअसल कोको बीन्स से बनती है, जिसका उत्पादन मांग की तुलना में काफी कम हो रहा है. ऐसे में अब सवाल यह है कि कोको बीन्स का उत्पादन कम होने के बावजूद भी बाजार हमेशा चॉकलेट से कैसे खचाखच भरे रहते हैं?
चॉकलेट का मुंह में डालते ही पिघल जाना
असल में चॉकलेट की महक और स्वाद के अलावा उसकी क्रीमी बनावट उसे और भी स्पेशल बना देती है और ये खास बात इसमें 'कोको बटर' या 'दओब्रोमा ऑयल' की वजह से आती है.
हालांकि, चॉकलेट बनाने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है, फिर भी इसका नतीजा मीठा होता है. कोको की फलियों को कई तरह की तकनीक जैसे पहले खमीर उठाना, फिर सूखा भूनना, इसके बाद इसे दबाकर निकालना आदि प्रक्रिया से कोको बटर निकला जाता है. यह हल्के पीले रंग का होता है, जो ख़ासतौर से चॉकलेट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
कोको बटर में काफी मात्रा में प्राकृतिक सैचूरेटिड फैट होता है, जो कमरे के तापमान पर स्थिर रहता है, लेकिन जैसे ही तापमान थोड़ा भी बढ़ता है और गर्मी पहले से ज़्यादा हो जाती है, तो यह पिघलना शुरू हो जाता है, जो कि एक अच्छी चॉकलेट होने की निशानी बिलकुल नहीं है.
एक अलग तरह का है ये कोको बटर
एक कहावत में कहा गया है, 'प्रसिद्ध चीज के साथ कई बुरी बातें भी आती हैं.' चॉकलेट लोकप्रियता हासिल कर कई लोगों के चहरे पर मुस्कान तो लाई, लेकिन इसकी सामग्री में मौजूद अशुद्ध मिलावट के बुरे अनुभव का भी सामना करना पड़ा. खाद्य उद्योग में यह असाधारण घटना नहीं है. इसके अलावा दूध, क्रीम, चीज, तेल और शराब जैसी कई खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में भी यह गिरावट देखी गई है.
कोको बटर के महंगे होने की वजह से कई उत्पादकों ने चॉकलेट में इसकी बजाय वनस्पति तेल जैसे नारियल का तेल, ताड़ का तेल,सफेद सरसों का तेल, सोयाबीन का तेल के अलावा कई तरह के तेल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. बाज़ार में मौजूद चॉकलेट खरीदते समय अगर आप उसके पीछे लिखे लेबल पर ध्यान दें, तो आपको हाईड्रोजनीकृत वनस्पति तेल नामक सामग्री का पता चलेगा. यह सामग्री न तो सिर्फ स्वाद, बल्कि असली चॉकलेट के महक को भी खत्म करती है. साथ ही यह सेहत को भी नुकसान पहुंचा सकती है.
वनस्पति तेल कमरे के तापमान पर स्थिर रहता है, जो हाईड्रोजिनेशन की प्रक्रिया के बाद सख़्त बनता है. ऐसा करने से चॉकलेट के उपयोग होने तक की अवधि बढ़ जाती है. लेकिन इसमें सैचूरेटिड फैट या ट्रांस फैट भी बनते हैं, जो सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. इसके प्रयोग से शरीर में डायबिटीज़, हृदय संबंधी रोग और मोटापे की परेशानी भी हो सकती है.
फूड से संबंधित अन्य ख़बरों के लिए यहां क्लिक करें.
