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This Article is From Dec 22, 2016

जानें डिब्बाबंद मांस खाने से क्यों बढ़ सकती अस्थमा की शिकायत

जानें डिब्बाबंद मांस खाने से क्यों बढ़ सकती अस्थमा की शिकायत
लंदन: समय की कमी के चलते कई बार हम में से कई लोग डिब्बाबंद फूड लाकर खाने में शामिल कर लेते हैं। ज़्यादा काम और थकान के कारण लोग ऐसा करते हैं। हालांकि डिब्बाबंद खाना निश्चित ही सभी के लिए सहज विकल्प है, साथ ही डिब्बाबंद मांस तो नॉन-वेजिटेरियन लोगों के मुंह में पानी ला देता है। लेकिन अब आप सावधान हो जाइए! एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि डिब्बाबंद प्रसंस्कृत मांस के सेवन से अस्थमा की समस्या और बढ़ सकती है।

क्या हो सकती हैं समस्याएं

अध्ययन में कहा गया है कि डिब्बाबंद प्रसंस्कृत मांस में नाइट्राइट की मात्रा ज़्यादा होती है, जिससे श्वास नली में सूजन हो सकती है, जो अस्थमा का प्रारंभिक लक्षण है। निष्कर्षों से पता चलता है कि ऐसे व्यक्ति, जो हफ्ते में चार या इससे अधिक बार डिब्बाबंद मांस का सेवन करते हैं, उनमें अस्थमा की समस्या के गंभीर होने का खतरा 76 फीसदी अधिक होता है। इससे सांस लेने में दिक्कत, सीने में जकड़न और दूसरी परेशानियां हो सकती हैं।

पेरिस के पॉल ब्रोउसे अस्पताल के जेन ली ने कहा कि “यह शोध प्रसंस्कृत मांस के सेवन से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव और अस्थमा के वयस्क मरीजों में आहार के प्रभाव के बारे में बताता है। यह आहार से अस्थमा के जुड़े होने की भूमिका और बीएमआई के संदर्भ में एक नया विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण देता है”। अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 971 अस्थमा के वयस्क मरीजों (49 प्रतिशत पुरुष) पर परीक्षण किया। इन मरीजों से उनके द्वारा लिए जाने वाले आहार के संबंध में कई चरणों में प्रश्न पूछे गए। इन प्रश्नों में 46 खाद्य समूहों की 118 खाद्य सामग्रियों को शामिल किया गया था।

मांस खाने के सेवन को तीन हिस्सों में बांटा गया

इसमें प्रसंस्कृत मांस के सेवन को कम (हफ्ते में एक बार), मध्यम (हफ्ते में चार बार) और उच्च (हफ्ते में चार या उससे अधिक) तीन हिस्सों में बांटा गया। रोचक बात यह है कि अस्थमा के लिए अधिक वज़न या मोटापा को प्रतिकूल प्रभाव वाला माना जाता रहा है, लेकिन इस अध्ययन के अनुसार मांस के सेवन और अस्थमा की शिकायत बढ़ने में यह सिर्फ 14 फीसदी मामलों में ही सही साबित हुआ। इससे स्पष्ट हो गया कि अस्थमा की शिकायत बढ़ने में मांस के सेवन का सीधा प्रभाव होता है।

यह अध्ययन ऑनलाइन शोध पत्रिका जर्नल ‘थोरेक्स’ के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है।

(इनपुट्स आईएएनएस से)

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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