मोहम्मद रफी की फाइल फोटो।
नई दिल्ली:
भारतीय संगीत जगत के चमकते सितारे मोहम्मद रफी ने 36 साल पहले 31 जुलाई 1980 को इस दुनिया को अलविदा कहा था। रफ़ी एक ऐसे गायक थे कि उनके बिना भारतीय संगीत जगत की कल्पना नहीं की जा सकती है। उनके प्रति लोगों की दीवानगी ऐसी थी कि उनके जनाज़े में भारी बारिश के बावजूद करीब 10 हजार लोग शामिल हुए थे।
मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को पंजाब कोटला सुल्तान सिंह नाम के एक गांव में हुआ था। बचपन से संगीत के शौकीन रहे रफी 20 साल की उम्र में हिंदी फिल्म जगत में अपनी किस्मत आज़माने मुंबई पहुंचे थे। इससे पहले वे पंजाबी फिल्मों के लिए गा चुके थे। 1945 में फिल्म 'गांव की गोरी' में उन्होंने अपना पहला हिंदी गाना गाया और इसके बाद उनके पास ऑफर आते रहे और उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
साल 1950 से 1970 के बीच रफी संगीतकारों के सबसे पसंदीदा गायक हुआ करते थे। रफी की एक खासियत यह भी थी कि वे जिस अभिनेता पर गाना फिल्माया जाना है उनकी पर्सनैलिटी को ध्यान में रखते थे। और उस हिसाब से अपने आवाज में बदलाव करते थे। अपने सिंगिंग करियर में रफी ने 6 फिल्मफेयर और एक राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड जीता था।
मौत के 36 साल बाद भी रफी अपने गीतों के जरिए हमारी जिंदगी को छूते हैं। पुण्यतिथि के मौके पर आइए सुनते हैं उनके गाए 5 सदाबहार नगमें...
साल 1970 में रिलीज हुई शक्ति समंता की फिल्म 'पगला कहीं का' का गीत 'तुम मुझे यूं भुला न पाओगे...' सिनेमा जगत के अमर गीतों में शामिल है। इस गाने को शम्मी कपूर और आशा पारेख पर फिल्माया गया है।
साल 1960 में आई विजय आनंद निर्देशित 'काला बाज़ार' के गीत 'खोया खोया चांद...' को देव आनंद और वहीदा रहमान पर फिल्माया गया है।
साल 1961 में आई 'हम दोनों' का 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया...' गीत बेहद लोकप्रिय है।
राजेश खन्ना अभिनीत 'द ट्रेन' की 'गुलाबी आंखें जो तेरी देखी...' गीत को आरडी बर्मन ने संगीतबद्ध किया था।
साल 1977 में आई नासिर हुसैन की 'हम किसी से कम नहीं' का 'क्या हुआ तेरा वादा...' गीत बेहद लाकप्रिय हुआ। इस फिल्म में ऋषि कपूर, अमजद खान, जीनत अमान जैसे सितारों ने काम किया था।
मोहम्मद रफी ने लगभग 700 फिल्मों के लिए विभिन्न भारतीय भाषाओं में 26,000 से भी ज़्यादा गीत गाए हैं। उन्हों ने अंग्रेज़ी और अन्य यूरोपीय भाषाओं के गानों में भी अपनी आवाज दी। वर्ष 1965 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा था।
मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को पंजाब कोटला सुल्तान सिंह नाम के एक गांव में हुआ था। बचपन से संगीत के शौकीन रहे रफी 20 साल की उम्र में हिंदी फिल्म जगत में अपनी किस्मत आज़माने मुंबई पहुंचे थे। इससे पहले वे पंजाबी फिल्मों के लिए गा चुके थे। 1945 में फिल्म 'गांव की गोरी' में उन्होंने अपना पहला हिंदी गाना गाया और इसके बाद उनके पास ऑफर आते रहे और उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
साल 1950 से 1970 के बीच रफी संगीतकारों के सबसे पसंदीदा गायक हुआ करते थे। रफी की एक खासियत यह भी थी कि वे जिस अभिनेता पर गाना फिल्माया जाना है उनकी पर्सनैलिटी को ध्यान में रखते थे। और उस हिसाब से अपने आवाज में बदलाव करते थे। अपने सिंगिंग करियर में रफी ने 6 फिल्मफेयर और एक राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड जीता था।
मौत के 36 साल बाद भी रफी अपने गीतों के जरिए हमारी जिंदगी को छूते हैं। पुण्यतिथि के मौके पर आइए सुनते हैं उनके गाए 5 सदाबहार नगमें...
साल 1970 में रिलीज हुई शक्ति समंता की फिल्म 'पगला कहीं का' का गीत 'तुम मुझे यूं भुला न पाओगे...' सिनेमा जगत के अमर गीतों में शामिल है। इस गाने को शम्मी कपूर और आशा पारेख पर फिल्माया गया है।
साल 1960 में आई विजय आनंद निर्देशित 'काला बाज़ार' के गीत 'खोया खोया चांद...' को देव आनंद और वहीदा रहमान पर फिल्माया गया है।
साल 1961 में आई 'हम दोनों' का 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया...' गीत बेहद लोकप्रिय है।
राजेश खन्ना अभिनीत 'द ट्रेन' की 'गुलाबी आंखें जो तेरी देखी...' गीत को आरडी बर्मन ने संगीतबद्ध किया था।
साल 1977 में आई नासिर हुसैन की 'हम किसी से कम नहीं' का 'क्या हुआ तेरा वादा...' गीत बेहद लाकप्रिय हुआ। इस फिल्म में ऋषि कपूर, अमजद खान, जीनत अमान जैसे सितारों ने काम किया था।
मोहम्मद रफी ने लगभग 700 फिल्मों के लिए विभिन्न भारतीय भाषाओं में 26,000 से भी ज़्यादा गीत गाए हैं। उन्हों ने अंग्रेज़ी और अन्य यूरोपीय भाषाओं के गानों में भी अपनी आवाज दी। वर्ष 1965 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा था।
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