अलीगढ़ के सेट पर मनोज वाजपेयी और हंसल मेहता
नई दिल्ली:
अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भारतीय एंट्री का जिक्र हो या फिर और सामाजिक विषय पर संवेदनशील मूवी, एक नाम जो हमेशा नजर आ जाएगा, वह है हंसल मेहता का. पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने बॉलीवुड के उन उम्दा निर्देशकों में अपनी जगह बनाई है जिन्हें अपने संवेदनशील विषयों और सार्थक फिल्मों की वजह से पहचाना जाता है. हंसल मेहता ने 1998 में '...जयते' के साथ करियर की शुरुआत की थी. यह भारतीय न्यायपालिका और मेडिकल के धंधे में गड़बड़ी पर आधारित फिल्म थी. इस डार्क फिल्म के बाद वे कॉमेडी के साथ लौटे. 'दिल पे मत ले यार (2000)' में रिलीज हुई और हर किसी ने उनके काम को पहचान दी. मजेदार यह कि फिल्मों में दस्तक देने से पहले वे टीवी पर काफी सक्रिय थे. उन्होंने 1993 में कुकरी शो 'खाना खजाना' डायरेक्ट किया था, जिसमें शेफ संजीव कपूर थे. इसके अलावा उन्होंने 'अमृता (1994)', 'हाईवे (1995)', 'यादें (1995)' और 'लक्ष्य (1998)' जैसे कई शो डायरेक्ट किए.
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उसके बाद वे नए लोगों और नई कहानियों के साथ आजमाते रहे. कभी सफलता हाथ लगी तो कभी असफलता. लेकिन उन्हें अपना अलग ढंग का काम करना जारी रखी. लेकिन हंसल मेहता 'शाहिद (2012)' के साथ फिर से लाइमलाइट में आए. शाहिद ने उन्हें 61वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जितवाया. उन्हें बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड मिला तो उनके एक्टर राजकुमार राव को बेस्ट एक्टर का पुरस्कार मिला. राजकुमार का साथ उन्हें जमा तो उन्होंन उनके साथ 'सिटीलाइट्स (2014)' बनाई जो ब्रिटिश हिट फिल्म 'मेट्रो मनिला' का रीमेक थी. इसके गानों को पसंद किया गया तो फिल्म की कहानी को क्रिटिक्स और दर्शकों दोनों ने सराहा. उनकी कहानियों के विषय ज्यादा तो असल जिंदगी के करीब रहे या फिर असल जिंदगी से उठाए गए थे. फिर उन्होंने राजकुमार राव और मनोज वाजपेयी के साथ मिलकर “अलीगढ़ (2015)” बनाई. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिर्सिटी के एक समलैंगिक प्रोफेसर की कहानी थी. अब वे कंगना रनोट के साथ 'सिमरन 'लेकर आ रहे हैं जो एक बिंदास लड़की की कहानी है. इस कहानी को भी असल घटना से प्रेरित बताया जा रहा है. इसके बाद उनकी फिल्म 'उमर्ता' आएगी जो पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के लिए जिम्मेदार आतंकी उमर शेख पर आधारित है. इस फिल्म में भी राजकुमार राव हैं. हंसल का कहना है कि वे सेंसरशिप से कभी नहीं डरे. तभी तो उनकी हर फिल्म इतनी बेबाक होती है.
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उसके बाद वे नए लोगों और नई कहानियों के साथ आजमाते रहे. कभी सफलता हाथ लगी तो कभी असफलता. लेकिन उन्हें अपना अलग ढंग का काम करना जारी रखी. लेकिन हंसल मेहता 'शाहिद (2012)' के साथ फिर से लाइमलाइट में आए. शाहिद ने उन्हें 61वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जितवाया. उन्हें बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड मिला तो उनके एक्टर राजकुमार राव को बेस्ट एक्टर का पुरस्कार मिला. राजकुमार का साथ उन्हें जमा तो उन्होंन उनके साथ 'सिटीलाइट्स (2014)' बनाई जो ब्रिटिश हिट फिल्म 'मेट्रो मनिला' का रीमेक थी. इसके गानों को पसंद किया गया तो फिल्म की कहानी को क्रिटिक्स और दर्शकों दोनों ने सराहा.
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