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खास बातें
- दिबाकर बनर्जी की पॉलिटिकल थ्रिलर 'शंघाई' में राजनैतिक सभाएं, जुलूस, इसका ग्लैमर, दांवपेंच, आईएएस-आईपीएस लॉबिंग और हिंसा के सीन्स बड़ी खूबसूरती से फिल्माए गए हैं।
मुंबई: प्रोग्रेस के नाम पर एक बस्ती को तोड़कर आईबीपी यानी इंटरनेशनल बिज़नेस पार्क बनाने की योजना पर आधारित है फिल्म 'शंघाई'। सोशल वर्कर डॉक्टर अहमदी प्रोसेनजीत इस सरकारी योजना का विरोध करते हैं और उन्हें जान गंवानी पड़ती है। जांच का जिम्मा ईमानदार आईएएस ऑफिसर कृष्णन यानि अभय देओल को सौंपा जाता है, लेकिन पूरी सरकारी मशीनरी इस अफसर को रोकने और हत्या को एक्सीडेंट करार देने पर तुल जाती है।
डायरेक्टर दिबाकर बनर्जी की 'शंघाई' पॉलिटिकल थ्रिलर है, जिसमें बड़ी खूबसूरती से राजनैतिक दलों की सभाएं, जुलूस, राजनीति का ग्लैमर, इसके दांवपेंच, आईएएस−आईपीएस अफसरों की लॉबिंग और सड़क पर हिंसा करते कार्यकर्ताओं के सीन्स फिल्माए गए हैं। एक ही वक्त में सोशल एक्टिविस्ट की हत्या और आइटम नंबर का कंट्रास्ट भी क्या खूब है।
ऑर्केस्ट्रा और पटाखों के शोर में ’भारत माता की जय’ जैसे गीत में जबर्दस्त एनर्जी है और देश की हालत पर कटाक्ष भी। अभय देओल, इमरान हाशमी, पीतोबाश त्रिपाठी ने दमदार एक्टिंग की है, लेकिन कुछ कमियां भी हैं।
कहीं भी यह साफ नहीं है कि फिल्म देश के कौन-से राज्य और शहर में सेट है। राजनैतिक दलों के नाम और उनके जश्न मनाने की वजहें खुलकर सामने नहीं आतीं। आईबीपी जैसे शब्द का लगातार इस्तेमाल आम जनता को कन्फ्यूज कर देगा। अंत जल्दबाजी में समेटा गया है, जो मुंबईया मसाला फिल्म जैसा है, लेकिन आसान-सी कहानी पर टिकी 'शंघाई' दिलचस्प फिल्म है और इसके लिए हमारी रेटिंग है 3.5 स्टार।