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फिल्म में अच्छाइयां बहुत हैं... पहले नंबर पर है फरहान की एक्टिंग, फिर बिनोद प्रधान की बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी, फिर 'अलिफ अल्लाह...' और 'हवनकुंड...' जैसे जुबान पर चढ़ने वाले गाने...
कहानी शुरू होती है मिल्खा सिंह के पाकिस्तान दौरे को न कहे जाने से... और फिर शुरू होता है फ्लैशबैक... जिसमें एक और फ्लैशबैक है, जो दर्शकों को उलझाता है... इस फ्लैशबैक की कहानी सुना रहे हैं, फिल्म में मिल्खा के कोच बने पवन मल्होत्रा, लेकिन कहानी के कुछ हिस्से देखकर लगता है कि जिन किस्सों से कोच का कोई लेना-देना नहीं था, वह भला उन्हें पता कैसे चले...
दूसरी बात यह है कि शायद राकेश ओमप्रकाश मेहरा के पास फिल्म में इतना कुछ कहने को था कि वह तय नहीं कर पाए कि क्या रखें और क्या काटें, जिसकी वजह से फिल्म काफी लंबी हो गई... 'भाग मिल्खा भाग' तीन घंटे आठ मिनट की फिल्म है... कुछ सीन्स देखकर आपको लग सकता है कि ये सीन्स नहीं भी होते तो फर्क नहीं पड़ता...
फिल्म में जवाहरलाल नेहरू के किरदार में नज़र आए दिलीप ताहिल, जो अपने किरदार में फिट नहीं बैठे, और मुझे तो उन्हें देखकर भी हंसी आ गई... कहानी के कुछ हिस्सों में झटका लगता है - मसलन, अपने जीजा पर हमला करने के बाद वापस उनके घर मिल्खा सिंह कब और कैसे पहुंचे, और उनके बीच रिश्ते कैसे ठीक हुए... साथ ही यह भी समझ नहीं आया कि मिल्खा सिंह को आर्मी में चुना कैसे गया...
एक लिविंग लीजेंड पर फिल्म बनाना मुश्किल काम काम है, क्योंकि हम ऐसे लोगों के बारे में अक्सर पूरी जानकारी रखते हैं... आपमें से कइयों को शायद इनसे जुड़ा हर छोटा-बड़ा किस्सा मालूम हो, और बतौर डायरेक्टर शायद आप उन किस्सों में से चुनिंदा को ही याद करना चाहें, पर फिल्म के डायरेक्टर राकेश ओमप्रकाश मेहरा यहां मात खा गए... एक बार फिर से कहूंगा कि अपने सीन्स से प्यार होना अच्छी बात है, पर उन्हें कठोर दिल रखकर काट देना और भी अच्छी बात है, क्योंकि इससे फिल्म को फायदा ही होगा, नुकसान नहीं...
लेकिन ऐसा नहीं है कि फिल्म में सिर्फ खामियां हैं, अच्छाइयां भी बहुत हैं... जिनमें सबसे पहले नंबर पर है फरहान की एक्टिंग और उनकी मेहनत किरदार में उतरने के लिए... दूसरे नंबर पर है बिनोद प्रधान की बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी... तीसरे नंबर पर 'अलिफ अल्लाह...' और 'हवनकुंड...' जैसे जुबान पर चढ़ने वाले गाने... इनके अलावा फिल्म में पवन मल्होत्रा और दिव्या दत्ता की शानदार अदाकारी भी बांधे रखती है... जो भी सीन्स हैं, वे हमें छूने में कामयाब होते हैं, और हम लिविंग लीजेंड की कहानी से जुड़े रहे...
हां, कहीं-कहीं यह ज़रूर लगा कि कुछ सीन खत्म क्यों नहीं हो रहे, लेकिन वैसे, ऐसे सीन्स भी आपको बहुत ज़्यादा परेशान नहीं करेंगे... और सबसे अच्छी बात यह है कि 'भाग मिल्खा भाग' प्रेरणा से भरी कहानी है, जिससे जुड़े कुछ पहलू शायद दर्शकों को पता न हों, और इस फिल्म के जरिये दर्शक मिल्खा सिंह को और करीब से जान पाएंगे... मेरी ओर से फिल्म की रेटिंग है - 3.5 स्टार...
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