हरियाणा राज्य के करनाल जिले के नीलोखेड़ी क्षेत्र में एक गांव है पूजम. यह गांव महाभारत की यादें समेटे हुए है. कहा जाता है कि यह वह ऐतिहासिक गांव है, जहां महाभारत युद्ध से पहले पांडवों ने कौरवों पर विजय हासिल करने के लिए अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र की पूजा की थी. उनकी उसी पूजा से ही गांव का नामकरण हुआ है पूजम. इस गांव में स्थित एक मंदिर में स्थापित शिवलिंग के प्रति लोगों की गहरी आस्था है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह स्वयंभू है.
महाभारत काल की स्मृतियों से जुड़ा होने के कारण यह शिवलिंग काफी पूजनीय माना जाता है. यहां पहले एक प्राचीन तालाब था, जिसने अब आधुनिक रूप ले लिया है. यहां ग्रामीण बड़े गर्व से बताते हैं, कि इस गांव की धरती पर कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों का युद्ध शुरू होने से पहले पांडवों ने अपने अस्त्रों और शस्त्रों की पूजा की थी.
ऊपर जिस शिवलिंग की बात की गई है, उसके बारे में यहां के ग्रामीण बताते हैं, कि यह शिवलिंग गांव के बाहर तालाब के पास स्वयं प्रकट हुआ. बाद में उसे उखाड़ने की अनेक लोगों ने कोशिश की, लेकिन वह टस-से-मस नहीं हुआ. ग्रामीणों का कहना है कि प्राचीनकाल में यहां आसपास के कुम्हार लोग मिट्टी लेने आया करते थे. एक दिन मिट्टी निकालते समय यहां शिवलिंग निकला. तब किसी ने कुल्हाड़ी, कुदाल और फावड़े से शिवलिंग को काटने का प्रयास किया किंतु सफल नहीं हुआ. आज भी उन औजारों के लगने के निशान शिवलिंग पर दिखाई देते हैं. कहते हैं, इस जगह पर भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपने श्री चरण रखे थे.
यहां के लोग यह भी बताते हैं, कि इस स्थान पर कई साल पहले बाबा रामगिर आकर रहने लगे थे. बाबा रामगिर सर्दियों में तालाब में पूजा करते थे और गर्मियों में अपने चारों ओर धुना लगाकर तपस्या करते थे. बाद में गांववालों ने इस जहग पर मंदिर बनवाया, जहां मंदिर के साथ ही महाभारत कालीन प्राचीन तालाब भी है, जिसे जीर्णोद्धार कर आधुनिक रूप दिया गया है. अब यहां बाबा रामगिर की याद में शिवरात्रि पर्व पर और अप्रैल महीने में विशाल मेला लगता है.
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महाभारत काल की स्मृतियों से जुड़ा होने के कारण यह शिवलिंग काफी पूजनीय माना जाता है. यहां पहले एक प्राचीन तालाब था, जिसने अब आधुनिक रूप ले लिया है. यहां ग्रामीण बड़े गर्व से बताते हैं, कि इस गांव की धरती पर कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों का युद्ध शुरू होने से पहले पांडवों ने अपने अस्त्रों और शस्त्रों की पूजा की थी.
ऊपर जिस शिवलिंग की बात की गई है, उसके बारे में यहां के ग्रामीण बताते हैं, कि यह शिवलिंग गांव के बाहर तालाब के पास स्वयं प्रकट हुआ. बाद में उसे उखाड़ने की अनेक लोगों ने कोशिश की, लेकिन वह टस-से-मस नहीं हुआ. ग्रामीणों का कहना है कि प्राचीनकाल में यहां आसपास के कुम्हार लोग मिट्टी लेने आया करते थे. एक दिन मिट्टी निकालते समय यहां शिवलिंग निकला. तब किसी ने कुल्हाड़ी, कुदाल और फावड़े से शिवलिंग को काटने का प्रयास किया किंतु सफल नहीं हुआ. आज भी उन औजारों के लगने के निशान शिवलिंग पर दिखाई देते हैं. कहते हैं, इस जगह पर भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपने श्री चरण रखे थे.
यहां के लोग यह भी बताते हैं, कि इस स्थान पर कई साल पहले बाबा रामगिर आकर रहने लगे थे. बाबा रामगिर सर्दियों में तालाब में पूजा करते थे और गर्मियों में अपने चारों ओर धुना लगाकर तपस्या करते थे. बाद में गांववालों ने इस जहग पर मंदिर बनवाया, जहां मंदिर के साथ ही महाभारत कालीन प्राचीन तालाब भी है, जिसे जीर्णोद्धार कर आधुनिक रूप दिया गया है. अब यहां बाबा रामगिर की याद में शिवरात्रि पर्व पर और अप्रैल महीने में विशाल मेला लगता है.
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